अखिलेश यादव का दांव विधानसभा में पड़ गया उलटा, ‘नंबर बढ़ाने’ की चाहत में टेंशन में इजाफा

लखनऊ
उत्तर प्रदेश में सोमवार को राज्यपाल के अभिभाषण के साथ विधानसभा के बजट सत्र की शुरुआत हुई। सत्र का पहला ही दिन बेहद हंगामेदार रहा और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को भारी शोर-शराबे के बीच अभिभाषण पढ़ना पड़ा। समाजवादी पार्टी के विधायकों ने हाथों में बैनर पोस्टर लेकर जमकर नारेबाजी की। हालांकि, महंगाई, कानून-व्यवस्था और आवारा पशु जैसे मुद्दे को लेकर जनता के बीच नंबर बढ़ाने की कोशिश में किया गया हंगामा अखिलेश यादव के लिए ही उलटा पड़ता दिखा। सरकार के खिलाफ इस प्रदर्शन में अखिलेश यादव काफी अलग-थलग पड़ गए।

अपनों ने छोड़ा साथ
विधानसभा में एक तरफ जहां सपा के विधायक हंगामा कर रहे थे तो गठबंधन के कई साथी शांत बैठे रहे। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के विधायक चुपचाप अभिभाषण सुनते रहे तो विधानसभा की कार्यवाही के बाद पार्टी प्रमुख ओपी राजभर ने सपा के हंगामे का खुलकर विरोध किया। उन्होंने इसे गलत परंपरा बताते हुए सपा प्रमुख के फैसले पर सवाल उठा दिए। वहीं, आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम और अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव भी बेहद खामोशी से बैठे रहे। उन्होंने इस हंगामे से खुद को पूरी तरह अलग रखा।

बीजेपी ने घेरा, अखिलेश ने दी सफाई
राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान हंगामे को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने जहां सपा को घेरा और इसे मर्यादा के खिलाफ बताया। वहीं, अखिलेश यादव ने विधानसभा की तस्वीरें साझा करते हुए इसे सशक्त और सक्रिय भूमिका के रूप में पेश किया। अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर लिखा, '' आज विधानसभा में सशक्त, सक्रिय और सार्थक प्रतिपक्ष की भूमिका में जनहित के मुद्दों के साथ।'' मंगलवार को सत्र के दूसरे दिन विधानसभा में प्रवेश करने से पहले अखिलेश यादव ने मीडिया से बातचीत में कहा कि जनता के मुद्दों को उठाना और अपनी बात रखने को हंगामा नहीं कहा जा सकता है।

पार्टी में फूट सतह पर आई, राज्यसभा चुनाव में बढ़ेंगी मुश्किलें?
अखिलेश यादव इन दिनों कई बड़े नेताओं के बागवती रुख से जूझ रहे हैं। इस बीच विधानसभा में जिस तरह सपा अलग-थलग पड़ती दिखी उससे राज्यसभा चुनाव में भी पार्टी की राह आसान नहीं मानी जा रही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव पर अपनों का दबाव काफी बढ़ चुका है और यदि समय रहते उन्होंने बागी सुरों को शांत नहीं किया तो आने वाले समय में मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।

 

Deepak Vishwakarma

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