Astrology Tips: मंदिर में अर्पित करें पीतल का घंटा, मन शांत व कई व्याधियों से मिलेगी मुक्ति
Astrology Tips: अगर श्रद्धा पूर्वक मंदिर में घंटा अर्पित किया जाए तो यह आपको आने वाले कई मुसीबतों से बचा सकता है। बस जरूरत है तो श्रद्धा की। हालांकि हमारे हाथों से जो कुछ भी कर्म किया जाता है उसका फल जरूर मिलता है।

Astrology Tips: उज्जवल प्रदेश डेस्क. अगर श्रद्धा पूर्वक मंदिर में घंटा अर्पित किया जाए तो यह आपको आने वाले कई मुसीबतों से बचा सकता है। बस जरूरत है तो श्रद्धा की। हालांकि हमारे हाथों से जो कुछ भी कर्म किया जाता है उसका फल जरूर मिलता है। वहीं वास्तु क मानें तो मंदिर में पीतल का घंटा चढ़ाने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा का तेजी से संचार होता है. बता दें कि पीतल की घंटी को पवित्र और शुभ माना जाता है और इसकी ध्वनि बुरी शक्तियों को दूर भगाती है ।
मन में शांति लाने के लिए किया जाता है
बता दें कि पीतल की घंटी को पवित्रता, शांति और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। LoveNspire ने बताया है कि पीतल की घंटियाँ धार्मिक अनुष्ठानों में दिव्य के साथ आध्यात्मिक संबंध का प्रतीक होती हैं। इनका उपयोग हिंदू मंदिरों में पर्यावरण को शुद्ध करने और शांति लाने के लिए किया जाता है।
LoveNspire के अनुसार, शांत करने वाली घंटियाँ नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर भगाती हैं और आध्यात्मिक संबंधों को मजबूत करती हैं। बौद्ध समारोहों में, पीतल की घंटियों की गूंजती आवाज़ें ज्ञान और मन की शांति का प्रतिनिधित्व करती हैं।
शांत करने वाला होता है घंटा
वास्तु की मानें तो घंटियों की आवाज को शांत और मन को शांत करने वाला माना जाता है, और घर में आध्यात्मिक अभ्यास के लिए एक अच्छा माहौल बनाता है. पीतल की घंटियाँ आध्यात्मिक संबंधों को मजबूत करने और दिव्य के साथ संबंध स्थापित करने का प्रतीक हैं।
सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है
मंदिर में चढ़ाए गए घंटे को धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे देवता से प्रार्थना स्वीकार करने और मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति मांगने के लिए बजाया जाता है। घंटे की ध्वनि से मंदिर का वातावरण पवित्र होता है और यह सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।
जलेसर में 12 कारीगरों ने बनाया घंटा
बटेश्वर में चढ़ने वाले अब तक के सर्वाधिक वजन वाले इस 421 किग्रा. के पीतल घंटे को जलेसर में आर्डर देकर बनवाया गया है। 12 कारीगरों को इसे बनाने में 18 दिन का वक्त लगा, लागत लगभग पौने दो लाख रुपया आई है।