प्रीमियम भरने की प्रक्रिया को आसान बना देगा इरडा का ये प्लान! मसौदा हुआ तैयार

 नई दिल्ली
 
बीमा नियामक इरडा ने हाल के समय में बीमा की पहुंच आसान बनाने के लिए कई सुधार किए हैं। अब नई तैयारी के तहत इरडा बीमा पॉलिसी का प्रीमियम भरने के लिए कर्ज की सुविधा मुहैया कराने की योजना पर काम कर रहा है। नियामक का इरादा कर्ज के जरिये प्रीमियम भरने की सुविधा देकर पॉलिसी बीच में खत्म होने से बचाना और आम लोगों को उसका सही फायदा पहुंचाना है। बीमा नियामक ने इसके मद्देनजर मसौदा प्रस्ताव जारी किया है। इसके तहत इरडा की तैयारी है कि बीमा खरीदने के लिए रिटेल यानी व्यक्तिगत और कॉरपोरेट यानी कंपनियों की ओर से कर्मचारियों को मिलने वाली बीमा सुविधा के लिए ग्राहकों को कर्ज की सुविधा मिले। इरडा का मकसद है कि दोनों प्रकार के ग्राहक प्रीमियम भरने के लिए कर्ज ले सकें और धीरे-धीरे उसकी किस्तें भर दें। इसस उनके ऊपर एक ही बार में प्रीमियम की बड़ी रकम का भुगतान करने का बोझ नहीं आएगा। इस मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इसके लिए बीमा अधिनियम कानून में जरूरी बदलाव के लिए इस प्रस्ताव पर सरकार को सहमत करना भी जरूरी होगा। हालांकि, बीमा नियामक इरडा फिलहाल तमाम विकल्पों, जरूरी संशोधन आदि के बारे में विचार कर है।

 उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में भारत में बीमा खरीदने के लिए लोन की सुविधा नहीं है। जबकि अमेरिका और यूरोप समेत कई अन्य देशों में यह सुविधा पहले से उपलब्ध है। भारत में पीएफ खाते से कुछ खास शर्तों के साथ केवल एलआईसी का प्रीमियम भरने की छूट है। आईसीआईसीआई लोम्बार्ड के चीफ अंडराइटिंग एवं क्लेम संजय दत्ता का कहना है कि यह व्यवस्था लागू होने से इंश्योरेंस को रीन्यू नहीं कराने के मामलों में कमी आएगी जिससे बीमाधारकों को पॉलिसी का पूरा लाभ मिल सकेगा। इसके अलावा कम आमदनी वाले लोगों को भी बीमा पॉलिसी लेने में सुविधा होगी।

इस तरह भर सकेंगे कर्ज से प्रीमियम

इरडा के प्रस्ताव के मुताबिक अगर यह व्यवस्था अमल में आ जाती है तो कर्ज देने वाला बैंक या एनबीएफसी बीमा कंपनी को प्रीमियम का भुगतान करेगा। इसके बाद वह बीमाधारक से हर माह कर्ज की किस्तें (ईएमआई) वसूल करेगा। प्रस्ताव के तहत यदि बीमाधारक ईएमआई चुकाने में चूक जाता है तो बीमा कंपनी कर्ज की बाकी राशि कर्ज देने वाले बैंक को वापस लौटा देगी। इस स्थिति में बीमा पॉलिसी बीच में खत्म नहीं होगी।

बीच में पॉलिसी खत्म होने के मामले भारत में ज्यादा

भारत में जीवन बीमा पॉलिसी के बीच में खत्म (लैप्स) हो जाने यानी बीच में ही बंद हो जाने की दर दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले बहुत अधिक है। अगर पांच साल के समय को मानक बनाकर देखें तो हैंडबुक ऑफ इंडियन इंश्योरेंस स्टैटिस्क्सि के अनुसार इस दौरान पॉलिसियों के चालू रहने की दर 28 प्रतिशत है। यानी पांच साल बाद 72 फीसदी जीवन बीमा पॉलिसी बीच में खत्म हो जाती है।

कितने का हो बीमा

बीमा विशेषज्ञों का कहना है कि इसके लिए कोई तय मानक नहीं है और यह आपकी उम्र, आय और जिम्मेदारी पर निर्भर करती है। हालांकि, जीवन बीमा की स्थिति में अपनी सालाना कमाई का कम से कम 10 गुना बीमा कवर वाली पॉलिसी लेनी चाहिए। साथ ही इसका आकलन सालाना 10 फीसदी महंगाई के आधार पर करना चाहिए। वहीं स्वास्थ्य बीमा की स्थिति में पांच से 10 लाख लाख रुपये का कवर ले सकते हैं।

जेब पर बोझ घटाता है बीमा

जीवन बीमा में कई तरह के विकल्प मिलते हैं। यह आपके नहीं रहने की स्थिति में आश्रितों के लिए आमदनी का तत्काल सबसे बेहतर जरिया होती है। वहीं दुर्घटना की स्थिति में शारीरिक नुकसान होने की स्थिति में आपके खर्च की भरपाई भी करती है। जीवन बीमा पॉलिसी में टर्म इंश्योरेंस सबसे सस्ता होता है और कंपनियां पांच हजार रुपये से के प्रीमियम पर 50 लाख रुपये का बीमा दे रही हैं। जीवन बीमा में यूलिप का भी विकल्प होता है। स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी रहने से इलाज के लिए आपको अपनी जेब से कम खर्च करने पड़ते हैं या आपके पैसे नहीं भी खर्च होते हैं। यदि पॉलिसी में को-पेमेंट की शर्त नहीं है तो आपको एक रुपया भी अपनी जेब से नहीं लगाना पड़ता है। बीमा विशेषज्ञों का कहना है कि पॉलिसी खरीदते समय यह जरूर देख लें कि उसमें को-पेमेंट की शर्त नहीं हो। ऐसी पॉलिसी थोड़ी महंगी जरूर होती है लेकिन मुश्किल समय में आपकी जेब से एक रुपया भी खर्च नहीं होने देती है।

कर्ज से प्रीमियम भरने के 5 फायदे

यह व्यवस्था लागू होने से इंश्योरेंस रीन्यू नहीं कराने के मामले कम होंगे।
रिन्यू होने से बीमा पॉलिसी का लाभ मिल सकेगा।
कम आय वाले लोग भी आसानी से बीमा खरीद सकेंगे।
नई व्यवस्था इंश्योरेंस को किफायती बना देगी
प्रीमियम एक बार दे सकेंगे

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