रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, आज ग्यारवां दिन
Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 7 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए बीते 10 दिनों से लेकर आ रही हैं। हम आपके लिए रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 7 चौपाई लेकर आते रहेंगे। उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।
श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ।
आज श्रीरामचरित मानस की 7 चौपाईयां | Today 7 Chaupais of Ramcharit Manas
दोहा
सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान।
नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान॥12॥
भावार्थ: सरस्वती, शेष, महेश, ब्रह्मा, शास्त्र, वेद तथा पुराण नेति-नेति (अन्त नहीं है) ऐसा कहकर जिस प्रभु के गुण का सदैव गान करते हैं ।।12।।
चौपाई
सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई॥
तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा॥1॥
भावार्थ: यद्यपि सब जानते हैं कि प्रभु (श्रीरामजी) की वही प्रभुता है कि जो नेति-नेति (अन्त नहीं है) कहकर गायी जाती है, तथापि कहे बिना कोई नहीं रहा। वहाँ ऐसा कारण है कि वेद में भजन का प्रभाव बहुत प्रकार से कहा गया है।
एक अनीह अरूप अनामा। अज सच्चिदानंद पर धामा॥
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना। तेहिं धरि देह चरित कृत नाना॥2॥
भावार्थ: जो अद्वितीय, इच्छारहित, निराकार, नामहीन, अजन्मा, सत्-चित् आनन्द और सबसे परे जिसका स्थान है तथा जो सबमें व्यापक विश्वरूप भगवान् हैं, वही अवतार लेकर अनेक चरित्र करते हैं।
सो केवल भगतन हित लागी। परम कृपाल प्रनत अनुरागी॥
जेहि जन पर ममता अति छोहू। जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू॥3॥
भावार्थ: वह केवल भक्तों के हित के लिए देह धारण करते हैं, जो परम दयालु और दीन हितकारी हैं। जिन भक्तों पर उनकी ममता और प्रीति है, उन पर करुणानिधान भगवान् ने क्रोध नहीं किया।
गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू॥
बुध बरनहिं हरि जस अस जानी। करहिं पुनीत सुफल निज बानी॥4॥
भावार्थ: वे गयी हुई वस्तु को फिर देनेवाले हैं। जैसे सुग्रीव का गया हुआ राज्य फिर दिला दिया, ऐसे गरीबनिवाज, सीधे बलवान् साहिब रघुराज (श्रीरामचन्द्रजी) हैं। ऐसा जानकर पंडितजन भगवान् श्रीहरि का यश वर्णनकर अपनी वाणी को पवित्र और सफल करते हैं।
तेहिं बल मैं रघुपति गुन गाथा। कहिहउँ नाइ राम पद माथा॥
मुनिन्ह प्रथम हरि कीरति गाई। तेहिं मग चलत सुगम मोहि भाई॥5॥
भावार्थ: उस बल से मैं ‘श्रीरामचन्द्रजी के चरणों में माथा नवाकर श्रीरघुनाथजी के गुणों की कथा कहूँगा। वाल्मीकि ऋषि और मुनियों ने जो पहले भगवान् श्रीहरि की कीर्ति गायी है, उसी मार्ग से चलने में हे भाई! मुझको सुगमता है।
दोहा
अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं।
चढ़ि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं॥13॥
भावार्थ: जैसे बड़ी नदियों में जब राजा लोग पुल बँधवा देते हैं, तो उन पर चढ़कर बहुत छोटी- छोटी चींटियाँ भी बिना थकावट के पार चली जाती हैं।।13।।
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