अठारवां दिन: रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, पाठ करने से पहले रखें इन बातों का ध्यान
Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 11 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आज से आपके लिए लेकर आ रही हैं। आज से हम आपके लिए रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 11 चौपाई लेकर आते रहेंगे। आज से नववर्ष की शुरुआत हो रही हैं। इसलिए उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।
श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ।
आज श्रीरामचरित मानस की 11 चौपाईयां | Today 11 Chaupais of Ramcharit Manas
दोहा
निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार।
कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार॥23॥
भावार्थ: इस प्रकार नाम का प्रभाव भगवान् के निर्गुण स्वरूप से भी बहुत बड़ा है और उसकी महिमा अपार है, इससे मैं अपने विचार से कहता हूँ कि श्रीराम से भी उनका नाम बड़ा है।।23।।
चौपाई
राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी॥
नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा॥1॥
भावार्थ: श्रीरामचन्द्रजी ने अपने भक्तों को सुख देने के लिए नर शरीर धारणकर संकट सहते हुए साधु पुरुषों को सुखी किया, किन्तु प्रेमसहित नाम को जपनेवाले भक्तजन तो अनायास ही आनन्दमय मंगल रूप हो जाते हैं।
राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥
रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्हि बिबाकी॥2॥
भावार्थ: श्रीरामचन्द्रजी ने तो केवल एकमात्र तापस तिय अर्थात् महर्षि गौतम की स्त्री अहल्या का ही उद्धार किया था और उनके नाम ने तो कई करोड़ दुष्टों की बुद्धि को सुधार दिया है। श्रीरामचन्द्रजी ने तो ऋषि (विश्वामित्र) की यज्ञ-रक्षा के लिए सुकेतुपुत्री ताड़का और उसके पुत्रों सहित राक्षसों की सेना का ही वध किया था।
सहित दोष दुख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा॥
भंजेउ राम आपु भव चापू। भव भय भंजन नाम प्रतापू॥3॥
भावार्थ: किन्तु नाम तो भक्तजनों के समस्त दोष, दुःख और दुराशाओं का उसी प्रकार नाश कर देता है, जिस प्रकार सूर्य रात्रि के अन्धकार को दूर कर देते हैं। श्रीरामचन्द्रजी ने तो शिवजी के धनुष को ही तोड़ा था, किन्तु नाम के प्रताप से तो समस्त संसार के भय नष्ट हो जाते हैं।
दंडक बन प्रभु कीन्ह सुहावन। जन मन अमित नाम किए पावन॥
निसिचर निकर दले रघुनंदन। नामु सकल कलि कलुष निकंदन॥4॥
भावार्थ: श्रीरामचन्द्रजी ने तो केवल दण्डक-वन को ही पवित्र किया था, किन्तु नाम ने तो अनेक मनुष्यों के मन को पवित्र कर दिया है। माना कि श्रीरामचन्द्रजी ने राक्षसों की सेना का संहार किया है किन्तु नाम तो कलिकाल के समस्त पापों का विशेष रूप से नाश करनेवाला है।
दोहा
सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ।
नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ॥24॥
भावार्थ: श्रीरामचन्द्रजी ने तो केवल शबरी-भीलनी और गृद्धराज ऐसे सेवकों को ही सुगति दी है। परन्तु उनके नाम ने तो अमित (जिनका अन्त नहीं) खलों का उद्धार किया है। नाम के इस गुण की कथा वेद में विदित हैं।। 24।।
चौपाई
राम सुकंठ बिभीषन दोऊ। राखे सरन जान सबु कोऊ ॥
नाम गरीब अनेक नेवाजे। लोक बेद बर बिरिद बिराजे॥1॥
भावार्थ: यह सभी जानते हैं कि श्रीरामचन्द्रजी ने विभीषण और सुग्रीव को अपनी शरण में रखा था। परन्तु नाम ने तो अनेक गरीबों पर कृपा की है-यह कीर्ति संसार और श्रेष्ठ वेदों में विराजमान है।
राम भालु कपि कटुक बटोरा। सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा॥
नामु लेत भवसिन्धु सुखाहीं। करहु बिचारु सुजन मन माहीं॥2॥
भावार्थ: श्रीरामचन्द्रजी ने सेतु बाँधने के समय रीछ और बन्दरों की सेना एकत्र करके समुद्र में पुल बाँधने के लिए परिश्रम किया था। परन्तु नाम में तो इतना अधिक प्रभाव है कि, उसका स्मरण करते ही संसाररूपी समुद्र सूख जाता है अर्थात् मोक्ष हो जाता है।
राम सकुल रन रावनु मारा। सीय सहित निज पुर पगु धारा॥
राजा रामु अवध रजधानी। गावत गुन सुर मुनि बर बानी॥3॥
भावार्थ: श्रीरामचन्द्रजी तो परिवार सहित रावण को मारकर सीता के सहित अपनी पुरी अयोध्या में आये थे। वहाँ ये (श्रीरामचन्द्रजी) राजा हुए और अयोध्या उनकी राजधानी हुई, जिनके गुण का देवता और मुनीश्वर भी यशोगान करते हैं।
सेवक सुमिरत नामु सप्रीती। बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती॥
फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें। नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें॥4॥
भावार्थ: किन्तु उनके भक्त जो प्रेम सहित नाम की रट लगाते रहते हैं, वे तो बिना परिश्रम ही बलवान् से बलवान् मोहरूपी सेना पर विजय प्राप्त करते हैं। फिर तो वे आत्मसुख मग्न (मस्त) हो जहाँ चाहे विचरा करते हैं; क्योंकि नाम के प्रताप से उनके पास स्वप्न में भी चिन्ता नहीं आती।
दोहा
ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।
रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि॥25॥
भावार्थ: इसी कारण मैं कहता हूँ कि नाम ब्रह्म और श्रीरामचन्द्रजी से भी बड़ा है और वर देनेवाला बड़ा ही वरदानी है अथवा ब्रह्मादिक बड़े से बड़े वरदानियों को भी वर देनेवाला है। देखो, सौ करोड़ रामायण में से श्रीशिवजी ने इस ‘राम’ नाम को ग्रहण कर लिया है।।25।।
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श्रीरामचरित मानस कितने कांडों में विभक्त हैं?
- श्रीरामचरितमानस को पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं इस प्रकार हैं।
- बालकाण्ड: रामचरितमानस का आरंभ बालकांड से होता है। इस कांड में श्री राम के जन्म और बाल्यकाल की कथा वर्णित है। शंकर-पार्वती का विवाह भी इसकी अन्य प्रमुख घटना है। इसमें कुल 361 दोहे हैं। बालकांड रामचरितमानस का सबसे बड़ा काण्ड है।
- अयोध्याकाण्ड: अयोध्या की कथा का वर्णन अयोध्या काण्ड के अंतर्गत हुआ है। राम का राज्याभिषेक, कैकेयी का कोपभवन जाना और वरदान के रूप में राजा दशरथ से भरत के लिए राजगद्दी और राम को वनवास माँगना और दशरथ के प्राण छूटना आदि घटनाएँ प्रमुख हैं। इस कांड में 326 दोहे हैं।
- अरण्यकाण्ड: राम का सीता लक्ष्मण सहित वन-गमन मारीचि-वध और सीता-हरण की कथा का वर्णन अरण्यकांड में हुआ है। इसमें 46 दोहे हैं।
- किष्किन्धाकाण्ड: राम का सीता को खोजते हुए किष्किंधा पर्वत पर आना, श्री हनुमानजी का मिलना, सुग्रीव से मित्रता और बालि का वध इत्यादि घटनाएँ किष्किंधा काण्ड में वर्णित हैं। इसमें 30 दोहे हैं। किष्किंधाकांड रामचरितमानस का सबसे छोटा काण्ड है।
- सुन्दरकाण्ड: सुंदरकांड का रामायण में विशेष महत्व है। इस कांड में सीता की खोज में हनुमानजी का समुद्र लाँघ कर लंका को जाना, सीताजी से मिलना और लंकादहन की कथा का वर्णन है।अशोक वाटिका सुंदर पर्वत के परिक्षेत्र में थी जहाँ हनुमानजी की सीताजी से भेंट होती है। इसलिए इस काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड है। सुंदरकांड सब प्रकार से सुंदर है। इसके पाठ का विशेष पुण्य है और इससे हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसमें कुल 60 दोहे हैं।
- लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड): सेतुबंध करते हुए राम का अपनी वानरी सेना के साथ लंका को प्रस्थान, रावण-वध और फिर सीता को लेकर लौटना यह सब कथा लंकाकाण्ड के अंतर्गत आती है। इसमें कुल 121 दोहे हैं।वाल्मीकीय रामायण में लंकाकांड का नाम युद्धकांड है।
- उत्तरकाण्ड: जीवनोपयोगी प्रश्नों के उत्तर इस उत्तरकाण्ड में मिलते हैं। इसका काकभुशुण्डि-गरुड़ संवाद विशेष है। इस कांड में 130 दोहे हैं। इसमें श्रीराम का चौदह वर्ष के वनवास के उपरांत परिवार वालों और अवधवासियों से पुनः मिलने का प्रसंग बहुत मार्मिक है।उत्तरकांड के साथ ही रामचरितमानस का समापन हो जाता है।
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श्रीरामचरित मानस का पाठ करने से पहले रखें इस बात का ध्यान
श्री रामचरितमानस (Shri Ramcharit Manas) का पाठ करने से पहले हमें श्री तुलसीदासजी, श्री वाल्मीकिजी, श्री शिवजी तथा श्रीहनुमानजी का आह्नान करना चाहिए तथा पूजन करने के बाद तीनो भाइयों सहित श्री सीतारामजी का आह्नान, षोडशोपचार ( अर्थात सोलह वस्तुओं का अर्पण करते हुए पूजन करना चाहिए लेकिन नित्य प्रति का पूजन पंचोपचार गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से संपन्न किया जा सकता है ) पूजन और ध्यान करना चाहिये। उसके उपरांत ही पाठ का आरम्भ करना चाहिये।
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