उन्नीसवां दिन: रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, पाठ करने से पहले रखें इन बातों का ध्यान

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 9 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आज से आपके लिए लेकर आ रही हैं। आज से हम आपके लिए रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 9 चौपाई लेकर आते रहेंगे। आज से नववर्ष की शुरुआत हो रही हैं। इसलिए उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।

श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ

आज श्रीरामचरित मानस की 9 चौपाईयां | Today 9 Chaupais of Ramcharit Manas

चौपाई
नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी॥
सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी। नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी॥1॥

भावार्थ: नाम के प्रभाव से शंकरजी अविनाशी हो गये हैं, साथ ही अमंगल वेशधारी होते हुए भी वे मङ्गल के राशि हो गये हैं। श्रीशुकदेवजी, सनक-सनन्दन आदि सिद्ध, मुनि और योगी ये सभी नाम के प्रसाद से ब्रह्म-सुख के भोगी हुए हैं।

नारद जानेउ नाम प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू॥
नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू। भगत सिरोमनि भे प्रहलादू॥2॥

भावार्थ: श्रीनारदजी ने भी नाम के प्रताप को जाना; क्योंकि जगत् को हरि तथा हरि को शिव प्यारे हैं और हरि तथा हर दोनों के प्यारे आप (नारदजी) हुए। फिर नाम के जपने से ही भगवान् ने बालक प्रह्लाद पर ऐसी कृपा की है कि वे भक्तों में शिरोमणि हो गये।

ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ। पायउ अचल अनूपम ठाऊँ॥
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥3॥

भावार्थ: कुमार-ध्रुव ने यद्यपि ग्लानिसहित भगवान् के नाम का जाप किया था तो भी उनको अनुपम (जिसकी कोई दूसरी उपमा न हो) और अचल (चलायमान न होनेवाले) स्थान की प्राप्ति हुई है। फिर पवन पुत्र श्रीहनुमान्‌जी ने नाम का ही सुमिरन (स्मरण) करके भगवान् श्रीरामचन्द्रजी को अपने वश में कर लिया है।

अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ। भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ॥
कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई। रामु न सकहिं नाम गुन गाई॥4॥

और दूसरे अजामिल तथा गणिका आदिक कितने ही ऐसे हो गये हैं, जो भगवान् के नाम के प्रभाव से मुक्त हो चुके हैं। सो मैं नाम की प्रशंसा कहाँ तक करूँ, श्रीरामचन्द्रजी भी नाम के प्रभाव को अथवा उसके गुण का अपार यश कहने में समर्थ नहीं हो सकते।

दोहा
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु॥26॥

भावार्थ: इस कारण कलिकाल में श्रीरामजी का नाम ही कल्पवृक्षरूप कल्याण का निवास है। जिसका सुमिरन करने से मैं भाँगरूपी ‘तुलसी’ आज तुलसीदासजी हो रहा हूँ।।26।।

चौपाई
चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका। भए नाम जपि जीव बिसोका॥
बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू॥1॥

भावार्थ: इस प्रकार चारों युगों, तीनों कालों और तीनों लोकों में जितने भी जीव मोक्ष को प्राप्त हुए हैं, वे सब केवल नाम को जपकर ही वैसे हुए हैं। वेद, पुराण और सज्जनों की सम्मति है कि श्रीरामचन्द्रजी में प्रेम होना ही समस्त पुण्यों का फल है।

ध्यानु प्रथम जुग मख बिधि दूजें। द्वापर परितोषत प्रभु पूजें॥
कलि केवल मल मूल मलीना। पाप पयोनिधि जन मन मीना॥2॥

भावार्थ: पहले युग (सतयुग) में ध्यान करने से, दूसरे युग (त्रेता) में यज्ञ करने से और द्वापर में पूजा द्वारा प्रभु सन्तुष्ट होते थे। किन्तु कलिकाल जो मलिन पापों का मूल है और पापरूपी सागर में मनुष्यों के मन मछली के समान लगे हुए हैं।

नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला॥
राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता॥3॥

भावार्थ: उसमें भगवान् का नाम ही कामरूपी वृक्ष के लिये भयानक काल है, जिसका सुमिरन करने से संसार की समस्त आपदाओं का हरण हो जाता है। इसलिये कलिकाल में श्रीरामचन्द्रजी का नाम ही अभीष्ट फल का देनेवाला है और यही इस संसार तथा परलोक में भी माता-पिता के समान हित करनेवाला है।

नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥
कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू॥4॥

भावार्थ: इस प्रकार मैं देखता हूँ तो, इस कलिकाल में सिवा राम नाम के कर्म-धर्म और विवेक (ज्ञान) का कोई प्रभाव होता नहीं दिखाई पड़ रहा है; क्योंकि यह कपट का भण्डार कलियुग तो कालनेमि राक्षस के समान है और उसका नाश करने के लिए केवल ‘नाम’ ही सुन्दर बुद्धि और सामर्थ्यवान् हनुमान् है।

Also Read: Hanuman Ji Mangal Vrat: मंगलवार के व्रत वालों को जान लेनी चाहिए ये जरूरी बातें

श्रीरामचरित मानस कितने कांडों में विभक्त हैं?

  • श्रीरामचरितमानस को पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं इस प्रकार हैं।
  • बालकाण्ड: रामचरितमानस का आरंभ बालकांड से होता है। इस कांड में श्री राम के जन्म और बाल्यकाल की कथा वर्णित है। शंकर-पार्वती का विवाह भी इसकी अन्य प्रमुख घटना है। इसमें कुल 361 दोहे हैं। बालकांड रामचरितमानस का सबसे बड़ा काण्ड है।
  • अयोध्याकाण्ड: अयोध्या की कथा का वर्णन अयोध्या काण्ड के अंतर्गत हुआ है। राम का राज्याभिषेक, कैकेयी का कोपभवन जाना और वरदान के रूप में राजा दशरथ से भरत के लिए राजगद्दी और राम को वनवास माँगना और दशरथ के प्राण छूटना आदि घटनाएँ प्रमुख हैं। इस कांड में 326 दोहे हैं।
  • अरण्यकाण्ड: राम का सीता लक्ष्मण सहित वन-गमन मारीचि-वध और सीता-हरण की कथा का वर्णन अरण्यकांड में हुआ है। इसमें 46 दोहे हैं।
  • किष्किन्धाकाण्ड: राम का सीता को खोजते हुए किष्किंधा पर्वत पर आना, श्री हनुमानजी का मिलना, सुग्रीव से मित्रता और बालि का वध इत्यादि घटनाएँ किष्किंधा काण्ड में वर्णित हैं। इसमें 30 दोहे हैं। किष्किंधाकांड रामचरितमानस का सबसे छोटा काण्ड है।
  • सुन्दरकाण्ड: सुंदरकांड का रामायण में विशेष महत्व है। इस कांड में सीता की खोज में हनुमानजी का समुद्र लाँघ कर लंका को जाना, सीताजी से मिलना और लंकादहन की कथा का वर्णन है।अशोक वाटिका सुंदर पर्वत के परिक्षेत्र में थी जहाँ हनुमानजी की सीताजी से भेंट होती है। इसलिए इस काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड है। सुंदरकांड सब प्रकार से सुंदर है। इसके पाठ का विशेष पुण्य है और इससे हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसमें कुल 60 दोहे हैं।
  • लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड): सेतुबंध करते हुए राम का अपनी वानरी सेना के साथ लंका को प्रस्थान, रावण-वध और फिर सीता को लेकर लौटना यह सब कथा लंकाकाण्ड के अंतर्गत आती है। इसमें कुल 121 दोहे हैं।वाल्मीकीय रामायण में लंकाकांड का नाम युद्धकांड है।
  • उत्तरकाण्ड: जीवनोपयोगी प्रश्नों के उत्तर इस उत्तरकाण्ड में मिलते हैं। इसका काकभुशुण्डि-गरुड़ संवाद विशेष है। इस कांड में 130 दोहे हैं। इसमें श्रीराम का चौदह वर्ष के वनवास के उपरांत परिवार वालों और अवधवासियों से पुनः मिलने का प्रसंग बहुत मार्मिक है।उत्तरकांड के साथ ही रामचरितमानस का समापन हो जाता है।

Also Read: साल 2025 के लिए Dhirendra Krishna Shastri की चौकाने वाली भविष्यवाणी, वीडियो वायरल

श्रीरामचरित मानस का पाठ करने से पहले रखें इस बात का ध्यान

श्री रामचरितमानस (Shri Ramcharit Manas) का पाठ करने से पहले हमें श्री तुलसीदासजी, श्री वाल्मीकिजी, श्री शिवजी तथा श्रीहनुमानजी का आह्नान करना चाहिए तथा पूजन करने के बाद तीनो भाइयों सहित श्री सीतारामजी का आह्नान, षोडशोपचार ( अर्थात सोलह वस्तुओं का अर्पण करते हुए पूजन करना चाहिए लेकिन नित्य प्रति का पूजन पंचोपचार गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से संपन्न किया जा सकता है ) पूजन और ध्यान करना चाहिये। उसके उपरांत ही पाठ का आरम्भ करना चाहिये।

Grahan 2025: इस साल 4 ग्रहण, कब लगेगा पहला सूर्य और चंद्र ग्रहण? जानें सूतक काल…

Deepak Vishwakarma

दीपक विश्वकर्मा एक अनुभवी समाचार संपादक और लेखक हैं, जिनके पास 13 वर्षों का गहरा अनुभव है। उन्होंने पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं में कार्य किया है, जिसमें समाचार लेखन, संपादन और कंटेंट निर्माण प्रमुख हैं। दीपक ने कई प्रमुख मीडिया संस्थानों में काम करते हुए संपादकीय टीमों का नेतृत्व किया और सटीक, निष्पक्ष, और प्रभावशाली खबरें तैयार कीं। वे अपनी लेखनी में समाजिक मुद्दों, राजनीति, और संस्कृति पर गहरी समझ और दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। दीपक का उद्देश्य हमेशा गुणवत्तापूर्ण और प्रामाणिक सामग्री का निर्माण करना रहा है, जिससे लोग सच्ची और सूचनात्मक खबरें प्राप्त कर सकें। वह हमेशा मीडिया की बदलती दुनिया में नई तकनीकों और ट्रेंड्स के साथ अपने काम को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं।

Related Articles

Back to top button