रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, आज तीसवां दिन हैं

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 10 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रहा हैं। हम  रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 10 चौपाई लेकर आ रहे हैं। वहीं  उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।

श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ

आज श्रीरामचरित मानस की 10 चौपाईयां | Today 10 Chaupais of Ramcharit Manas

दोहा
समन अमित उतपात सब भरत चरित जपजाग।
कलि अघ खल अवगुन कथन ते जलमल बग काग॥41॥

भावार्थ: उन अनन्त उत्पातों को शान्त करनेवाला महात्मा भरतजी का चरित्र ही मानो जप-यज्ञ है और कलियुग के पापों तथा दुष्टों के अवगुणों का जो वर्णन है, वही मानो इस नदी के जल का मल और बगुले तथा कौवेरूपी दुष्ट पक्षी हैं।।४१।।

चौपाई
कीरति सरित छहूँ रितु रूरी। समय सुहावनि पावनि भूरी॥
हिम हिमसैलसुता सिव ब्याहू। सिसिर सुखद प्रभु जनम उछाहू॥1॥

भावार्थ: इस प्रकार प्रभु श्रीरामजी की यह कीर्तिरूपी नदी छहों ऋतुओं में बहुत अच्छी और समय-समय पर सुहावनी लगनेवाली अत्यन्त पवित्र है। इसमें जो श्रीशिव-पार्वतीजी के विवाह का वर्णन है, वही मानो हेमन्त ऋतु है और प्रभु के जन्म का जो उत्सव है, वही मानो सुखदाई शिशिर ऋतु है।

बरनब राम बिबाह समाजू। सो मुद मंगलमय रितुराजू॥
ग्रीषम दुसह राम बनगवनू। पंथकथा खर आतप पवनू॥2॥

भावार्थ: भगवान् श्रीरामचन्द्रजी के विवाह-समाज का जो वर्णन है, वही मानो आनन्द मंगल देनेवाला ऋतुओं का राजा बसन्त ऋतु है और श्रीरामचन्द्रजी के वनगमन का जो वर्णन है, वही मानो न सही जानेवाली ग्रीष्म ऋतु है और मार्ग की कथाएँ मानो प्रचण्ड धूप और आँधी के समान हैं।

बरषा घोर निसाचर रारी। सुरकुल सालि सुमंगलकारी॥
राम राज सुख बिनय बड़ाई। बिसद सुखद सोइ सरद सुहाई॥3॥

भावार्थ: और राक्षसों के साथ जो घोर युद्ध हुआ है, वही मानो देव-कुलरूपी शालि (धान) के लिये सुन्दर मंगल करनेवाली वर्षा ऋतु है और जो श्रीरामचन्द्रजी के राज्य का सुख, विनय और बड़ाई है, वही निर्मल सुखद शोभायमान शरद् ऋतु है।

सती सिरोमनि सिय गुन गाथा। सोइ गुन अमल अनूपम पाथा॥
भरत सुभाउ सुसीतलताई। सदा एकरस बरनि न जाई॥4॥

भावार्थ: पतिव्रता स्त्रियों में शिरोमणि जो श्रीसीताजी हैं, उनके गुणों की जो कथा है, वही मानो अनुपम और निर्मल गुणरूपी जल भरा हुआ है। फिर उस जल में जो महात्मा भरतजी का स्वभाव है, वही मानो उस जल की शीतलता है, जो सर्वदा एकरस रहा करती है, जिसका वर्णन नहीं हो सकता।

दोहा
अवलोकनि बोलनि मिलनि प्रीति परसपर हास।
भायप भलि चहु बंधु की जल माधुरी सुबास॥42॥

भावार्थ: चारों भाइयों का जो परस्पर देखना, बोलना और मिलना है, वही इस जल की विविध मधुरता है और जो उनकी परस्पर की प्रीति हँसना और अच्छा भाईपन है, वही इस जल की सुन्दर मधुरता और सुगन्धि है।।42।।

चौपाई
आरति बिनय दीनता मोरी। लघुता ललित सुबारि न थोरी॥
अदभुत सलिल सुनत गुनकारी। आस पिआस मनोमल हारी॥1॥

भावार्थ: (तुलसीदासजी कहते हैं) इसमें जो मेरी अत्यन्त विनती और दीनता है, वही इस जल में हल्कापन, सुन्दरता और निर्मलता है। इस प्रकार यह अद्भुत कथारूपी जल श्रवण करने में गुणकारी और आशारूपी प्यास तथा मन की मलिनता को मिटानेवाली है।

राम सुप्रेमहि पोषत पानी। हरत सकल कलि कलुष गलानी॥
भव श्रम सोषक तोषक तोषा। समन दुरित दुख दारिद दोषा॥2॥

यह जल श्रीरामचन्द्रजी के सुन्दर प्रेम को बढ़ानेवाला और कलियुग की समस्त पापरूप ग्लानियों को हरनेवाला है। फिर यह संसार के सब परिश्रमों का शोषणकर सन्तोष को भी संतुष्ट करनेवाला और दुःख, दारिद्र्य तथा कलियुग के समस्त दोषों को शान्त करनेवाला है।

काम कोह मद मोह नसावन। बिमल बिबेक बिराग बढ़ावन॥
सादर मज्जन पान किए तें। मिटहिं पाप परिताप हिए तें॥3॥

भावार्थ: यह काम, क्रोध, मद और मोह को नष्ट करनेवाला तथा पवित्र ज्ञान और वैराग्य को बढ़ाने वाला है। इसको प्रेमपूर्वक पान करने से हृदय के सारे पाप-संताप नष्ट हो जाते हैं।

जिन्ह एहिं बारि न मानस धोए। ते कायर कलिकाल बिगोए॥
तृषित निरखि रबि कर भव बारी। फिरिहहिं मृग जिमि जीव दुखारी॥4॥

भावार्थ: (तब यह जानकर भी) जो इस जल से अपने मन को स्वच्छ नहीं कर लेते उन कायर पुरुषों को मानो कलिकाल ने बिगाड़ दिया है, इसको छोड़कर जो दूसरे प्रसंगों में पड़ते हैं वे प्राणी तो ऐसे दुःख पाते हैं, जैसे हरिण मृग-तृष्णा के जल के लिये इधर-उधर भटकता फिरता है।

Deepak Vishwakarma

दीपक विश्वकर्मा एक अनुभवी समाचार संपादक और लेखक हैं, जिनके पास 13 वर्षों का गहरा अनुभव है। उन्होंने पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं में कार्य किया है, जिसमें समाचार लेखन, संपादन और कंटेंट निर्माण प्रमुख हैं। दीपक ने कई प्रमुख मीडिया संस्थानों में काम करते हुए संपादकीय टीमों का नेतृत्व किया और सटीक, निष्पक्ष, और प्रभावशाली खबरें तैयार कीं। वे अपनी लेखनी में समाजिक मुद्दों, राजनीति, और संस्कृति पर गहरी समझ और दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। दीपक का उद्देश्य हमेशा गुणवत्तापूर्ण और प्रामाणिक सामग्री का निर्माण करना रहा है, जिससे लोग सच्ची और सूचनात्मक खबरें प्राप्त कर सकें। वह हमेशा मीडिया की बदलती दुनिया में नई तकनीकों और ट्रेंड्स के साथ अपने काम को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं।

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