रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, आज अठतीसवां दिन

Ramcharit Manas: गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: रामाधीन परमपूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 2 दोहे 8 चौपाई और 1 सोरठा अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रहा हैं। हम रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 2 दोहे 8 चौपाई और 1 सोरठा लेकर आ रहे हैं । वही उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।

श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ

आज श्रीरामचरित मानस की 11 चौपाईयां | Today 11 Chaupais of Ramcharit Manas

दोहा
सतीं हृदयँ अनुमान किय सबु जानेउ सर्बग्य।
कीन्ह कपटु मैं संभु सन नारि सहज जड़ अग्य॥57 क॥

तब सतीजी ने अपने हृदय में यह अनुमान कर लिया कि इन सर्वज्ञ ने सब कुछ जान लिया है। मैंने महादेवजी से छल किया, मैं स्त्री की जाति जड़ और मूर्ख हूँ।। 57 (क)।।

सोरठा
जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि।
बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि॥57 ख॥

देखो, प्रीति की रीति कितनी उत्तम है कि जल भी दूध में मिलकर दूध के ही भाव बिकता है, किन्तु कपटरूपी खटाई से अलग हो जाता अर्थात् बिगड़ जाता है।।57 (ख)।।

चौपाई
हृदयँ सोचु समुझत निज करनी। चिंता अमित जाइ नहिं बरनी॥
कृपासिंधु सिव परम अगाधा। प्रगट न कहेउ मोर अपराधा॥1॥

इस प्रकार अपनी करतूत को मन में सोच-समझकर सतीजी को महान् सोच हुआ। श्रीमहादेवजी कृपा के समुद्र हैं, इसीलिये उन्होंने प्रकट में मेरा अपराध नहीं कहा-यह सतीजी सोचने लगीं।

संकर रुख अवलोकि भवानी। प्रभु मोहि तजेउ हृदयँ अकुलानी॥
निज अघ समुझि न कछु कहि जाई। तपइ अवाँ इव उर अधिकाई॥2॥

तब श्रीमहादेवजी का रुख देखकर सतीजी ने जान लिया कि स्वामी ने मुझे त्याग दिया, इससे नह व्याकुल हो गयीं। अपना पाप समझकर कुछ कह न सकीं, हृदय कुम्हार के आँवें की तरह बहुत तपने लगा।

सतिहि ससोच जानि बृषकेतू। कहीं कथा सुंदर सुख हेतू॥
बरनत पंथ बिबिध इतिहासा। बिस्वनाथ पहुँचे कैलासा॥3॥

तब सती को चिन्तित जानकर श्रीमहादेवजी सुखदायक अनेक ऐतिहासिक कथाएँ कहने लगे। इसी प्रकार मार्ग में अनेक इतिहासों का वर्णन करते हुए विश्वनाथ शंकरजी कैलास में जा पहुँचे।

तहँ पुनि संभु समुझि पन आपन। बैठे बट तर करि कमलासन॥
संकर सहज सरूपु सम्हारा। लागि समाधि अखंड अपारा॥4॥

फिर अपने प्रण को स्मरणकर श्रीमहादेवजी एक वट वृक्ष के नीचे कमलासन लगाकर बैठ गये। तब उनके इस प्रकार स्वरूप सँभालते ही सहज ही अखंड अपार समाधि लग गयी।

दोहा
सती बसहिं कैलास तब अधिक सोचु मन माहिं।
मरमु न कोऊ जान कछु जुग सम दिवस सिराहिं॥58॥

फिर तो मन में अत्यन्त चिन्ता करती हुई सतीजी कैलास में वास करने लगीं। इस भेद को कोई कुछ भी नहीं जान सका और उनका एक-एक दिन युग के समान बीतने लगा।।58।।

चौपाई
नित नव सोचु सती उर भारा। कब जैहउँ दुख सागर पारा॥
मैं जो कीन्ह रघुपति अपमाना। पुनि पतिबचनु मृषा करि जाना॥1॥

इस प्रकार सतीजी के मन में अधिकाधिक नवीन सोच होने लगा कि मैं कब इस दुःख सागर से पार होऊँगी। जो मैंने श्रीरामचन्द्रजी का अपमान किया और फिर पति के बचन को मिथ्या करके जाना।

सो फलु मोहि बिधाताँ दीन्हा। जो कछु उचित रहा सोइ कीन्हा॥
अब बिधि अस बूझिअ नहिं तोही। संकर बिमुख जिआवसि मोही॥2॥

अब वही फल विधाता ने मुझे दिया है और जो कुछ उचित था, वही किया है। हे विधाता ! तब तुमको ऐसा न करना चाहिए कि तुम मुझको शंकरजी से विमुख करके जिलाओ।

कहि न जाइ कछु हृदय गलानी। मन महुँ रामहि सुमिर सयानी॥
जौं प्रभु दीनदयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा॥3॥

उनके हृदय की ग्लानि कुछ कही नहीं जाती, चतुर सतीजी मन में श्रीरामचन्द्रजी का स्मरण कर कहने लगीं कि, हे प्रभो! यदि आप दीनदयालु कहलाते हैं और दुःखहरणकर्ता हैं, जैसा वेदों ने भी आपका यशोगान किया है।

तौ मैं बिनय करउँ कर जोरी। छूटउ बेगि देह यह मोरी॥
जौं मोरें सिव चरन सनेहू। मन क्रम बचन सत्य ब्रतु एहू॥4॥

तो मैं आपसे प्रार्थना करती हूँ कि मेरा यह शरीर शीघ्र ही छूट जाये। यदि शिवजी के चरणारविन्दों में मेरा सच्चा स्नेह है और अपने मन, वचन और शरीर से मेरा यह सच्चा व्रत है।

Deepak Vishwakarma

दीपक विश्वकर्मा एक अनुभवी समाचार संपादक और लेखक हैं, जिनके पास 13 वर्षों का गहरा अनुभव है। उन्होंने पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं में कार्य किया है, जिसमें समाचार लेखन, संपादन और कंटेंट निर्माण प्रमुख हैं। दीपक ने कई प्रमुख मीडिया संस्थानों में काम करते हुए संपादकीय टीमों का नेतृत्व किया और सटीक, निष्पक्ष, और प्रभावशाली खबरें तैयार कीं। वे अपनी लेखनी में समाजिक मुद्दों, राजनीति, और संस्कृति पर गहरी समझ और दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। दीपक का उद्देश्य हमेशा गुणवत्तापूर्ण और प्रामाणिक सामग्री का निर्माण करना रहा है, जिससे लोग सच्ची और सूचनात्मक खबरें प्राप्त कर सकें। वह हमेशा मीडिया की बदलती दुनिया में नई तकनीकों और ट्रेंड्स के साथ अपने काम को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं।

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