रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, आज उनचालीसवां दिन
Ramcharit Manas: गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: रामाधीन परमपूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 2 दोहे 8 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रहा हैं। हम रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 2 दोहे 8 चौपाई लेकर आ रहे हैं । वही उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।
श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ।
आज श्रीरामचरित मानस की 10 चौपाईयां | Today 10 Chaupais of Ramcharit Manas
दोहा
तौ सबदरसी सुनिअ प्रभु करउ सो बेगि उपाइ।
होइ मरनु जेहिं बिनहिं श्रम दुसह बिपत्ति बिहाइ॥59॥
तो हे समदर्शी प्रभु! मेरी यह विनती सुनकर वही उपाय करो कि जिससे बिना परिश्रम ही मेरी मृत्यु हो जाय और यह असह्य (कठिन) विपत्ति छूट जाय।।59।।
चौपाई
एहि बिधि दुखित प्रजेसकुमारी। अकथनीय दारुन दुखु भारी॥
बीतें संबत सहस सतासी। तजी समाधि संभु अबिनासी॥1॥
इस प्रकार दक्षकुमारी सतीजी को ऐसा दारुण दुःख हुआ, जो वर्णन नहीं किया जा सकता। उधर जब सत्तासी हजार वर्ष व्यतीत हो गये, तब अविनाशी श्रीमहादेवजी ने अपनी समाधि त्यागी।
राम नाम सिव सुमिरन लागे। जानेउ सतीं जगतपति जागे॥
जाइ संभु पद बंदनु कीन्हा। सनमुख संकर आसनु दीन्हा॥2॥
श्रीशिवजी राम-नाम जपने लगे, तब सतीजी ने जाना कि जगतपति समाधि से जाग गये हैं। वह शिवजी के चरणों में जा गिरीं तो शिवजी ने अपने सन्मुख आसन दिया।
लगे कहन हरि कथा रसाला। दच्छ प्रजेस भए तेहि काला॥
देखा बिधि बिचारि सब लायक। दच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक॥3॥
तब शिवजी फिर श्रीरामचन्द्रजी की सुन्दर कथा कहने लगे, उसी समय सतीजी के पिता राजा दक्ष को प्रजापति का पद प्राप्त हुआ; क्योंकि जब ब्रह्माजी ने उन्हें विचार कर सब प्रकार योग्य देखा तो उनको सम्पूर्ण प्रजापतियों का नायक कर दिया।
बड़ अधिकार दच्छ जब पावा। अति अभिनामु हृदयँ तब आवा॥
नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं॥4॥
जब दक्ष ने बड़ा अधिकार पाया, तब उनके मन में अत्यन्त अभिमान उत्पन्न हो गया। संसार में ऐसा कौन है, जिसको प्रभुता पाकर घमण्ड न हुआ हो?
दोहा
दच्छ लिए मुनि बोलि सब करन लगे बड़ जाग।
नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग॥60॥
तब दक्ष ने सब मुनियों को बुलाया और बड़ा यज्ञ करने लगे तथा जो यज्ञ में भाग पाया करते थे, उन सब देवताओं को भी आदर सहित न्योता दिया।।60।।
चौपाई
किंनर नाग सिद्ध गंधर्बा। बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा॥
बिष्नु बिरंचि महेसु बिहाई। चले सकल सुर जान बनाई॥1॥
किन्नर, नाग, सिद्ध, गन्धर्व और सभी देवता अपनी-अपनी स्त्रियों सहित दक्ष के घर को चले। ब्रह्मा, विष्णु और महादेवजी को छोड़ सब देवता अपने-अपने विमान सजाकर चले।
सतीं बिलोके ब्योम बिमाना। जात चले सुंदर बिधि नाना॥
सुर सुंदरी करहिं कल गाना। सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना॥2॥
तब सती ने अनेक भाँति के शोभायमान विमानों को आकाश में जाते हुए देखा, जिनमें सुर सुन्दरियाँ गान कर रही थीं और जिनके सुनने से मुनियों के भी ध्यान छूट जाते थे।
पूछेउ तब सिवँ कहेउ बखानी। पिता जग्य सुनि कछु हरषानी॥
जौं महेसु मोहि आयसु देहीं। कछु दिन जाइ रहौं मिस एहीं॥3॥
जब इस प्रकार आकाश-मार्ग में जाते हुए विमानों की भीड़ देखकर सतीजी ने श्रीमहादेवजो से पूछा तब श्रीमहादेवजी ने प्रशंसापूर्वक सब समाचार कहकर बतलाया कि तुम्हारे पिता के घर में यज्ञ है, तब वह समाचार सुनकर सतीजी कुछ प्रसन्न हुईं और उन्होंने अपने मन में विचार किया कि यदि महादेवजी मुझको आज्ञा दें तो मैं इसी बहाने से जाकर कुछ दिन पिता के घर रहूँ। परन्तु-
पति परित्याग हृदयँ दुखु भारी। कहइ न निज अपराध बिचारी॥
बोली सती मनोहर बानी। भय संकोच प्रेम रस सानी॥4॥
पति के परित्याग का मन में बड़ा दुःख था, वह अपना अपराध समझ कुछ कह न सकीं। फिर सतीजी भय, संकोच और प्रेम-रस से युक्त यह वचन बोलीं।