छठवां दिन: रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, पाठ करने से पहले रखें इन बातों का ध्यान

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 13 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आज से आपके लिए लेकर आ रही हैं। आज से हम आपके लिए रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 13 चौपाई लेकर आते रहेंगे। आज से नववर्ष की शुरुआत हो रही हैं। इसलिए उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।

श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ

आज श्रीरामचरित मानस की 13 चौपाईयां | Today 13 Chaupais of Ramcharit Manas

दोहा
भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु।
सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु॥5॥

भावार्थ: भले भलाई से शोभा पाते हैं और नीच को उसकी नीचता ही शोभा देती है। जैसे अमृत अमरत्व प्रदान करता है और विष की सराहना इसीलिए है कि वह तत्काल मार डालता है।।5।।

चौपाई
खल अघ अगुन साधु गुन गाहा। उभय अपार उदधि अवगाहा॥
तेहि तें कछु गुन दोष बखाने। संग्रह त्याग न बिनु पहिचाने॥1॥

भावार्थ: दुष्टजन तो अवगुणों को और सन्तजन गुणों को ग्रहण करते हैं, परन्तु इन दोनों की गति को अथाह समुद्र के समान अपार समझना चाहिये। इसी से मैंने इनके गुण और दोष का थोड़ा विवेचन किया है; क्योंकि बिना पहिचाने इनका संग्रह और त्याग नहीं हो सकता॥1॥

भलेउ पोच सब बिधि उपजाए। गनि गुन दोष बेद बिलगाए॥
कहहिं बेद इतिहास पुराना। बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना॥2॥

भावार्थ: ब्रह्माजी ने ही सब भले-बुरे को उत्पन्न किया है और वेद ने गणना करके अर्थात् उनके गुण-दोषों का निश्चय करके अलग-अलग किया है। इस बात को वेद, इतिहास और पुराण भी कहते हैं कि विधाता का सारा प्रपञ्च गुण-अवगुण से मिला हुआ है॥2॥

दुख सुख पाप पुन्य दिन राती। साधु असाधु सुजाति कुजाती॥
दानव देव ऊँच अरु नीचू। अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू॥3॥

भावार्थ: सुख-दुःख, पुण्य-पाप, रात-दिन, साधु-असाधु, सुजाति-कुजाति, देवता-दानव, ऊँच-नीचए अमृत-विष, संजीवनी बूटी और मृत्यु॥3॥

माया ब्रह्म जीव जगदीसा। लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा॥
कासी मग सुरसरि क्रमनासा। मरु मारव महिदेव गवासा॥4॥
सरग नरक अनुराग बिरागा। निगमागम गुन दोष बिभागा॥5॥

भावार्थ: माया और ब्रह्म, जीव और ईश्वर, लक्ष्मी और दरिद्रता, दरिद्र और राजा, काशी और मगध देश, गंगा और कर्मनाशा, मरु देश और मालवा देश, ब्राह्मण और कसाई, स्वर्ग और नरक, प्रीति और वैराग्य-इन गुणों और दोषों का विभाग वेदों और शास्त्रों ने किया है॥4॥ ॥5॥

दोहा
जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥

भावार्थ: यह सब लोग भलीभाँति जानते हैं कि श्रीब्रह्माजी ने इस जड़-चेतनरूप जगत् को गुण-दोषमय बनाया है। तो भी जिस प्रकार हंस जल को त्यागकर दूध ही ग्रहण करता है, ऐसे ही सन्तजन दोष को त्यागकर गुण को ही ग्रहण करते हैं।।6।।

चौपाई
अस बिबेक जब देइ बिधाता। तब तजि दोष गुनहिं मनु राता॥
काल सुभाउ करम बरिआईं। भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाईं॥1॥

भावार्थ: परन्तु जब विधाता ऐसा ज्ञान देते हैं, तभी मन दोषों को त्याग गुणों को ग्रहण करता है। परंतु काल, कर्म और स्वभाव की प्रेरणा से कभी भले पुरुष भी प्रकृति के वश होकर सन्मार्ग से चूक जाते हैं।

सो सुधारि हरिजन जिमि लेहीं। दलि दुख दोष बिमल जसु देहीं॥
खलउ करहिं भल पाइ सुसंगू। मिटइ न मलिन सुभाउ अभंगू॥2॥

भावार्थ: किन्तु उसे भगवान् के भक्त सुधार लेते हैं तथा दुःखों और दोषों का दलनकर पवित्र यश देते हैं। वैसे ही दुष्टजन भला संग पाकर भलाई तो करते हैं, पर उनका जो भंग न होनेवाला मलिन स्वभाव है, वह नहीं मिटता।

लखि सुबेष जग बंचक जेऊ। बेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ॥
उघरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू॥3॥

भावार्थ: अच्छा वेश बनाकर वे भले ही जगत् को ठग लें, क्योंकि वेश के प्रताप से उनकी पूजा होती है। परन्तु अन्त में उनकी पोल अवश्य खुल जायेगी और उस पोल के खुलते ही उनका अन्त हो जायगा, निर्वाह नहीं होगा, जैसे कालनेमि, रावण और राहु का निर्वाह नहीं हुआ॥3॥

किएहुँ कुबेषु साधु सनमानू। जिमि जग जामवंत हनुमानू॥
हानि कुसंग सुसंगति लाहू। लोकहुँ बेद बिदित सब काहू॥4॥

भावार्थ: इसके विपरीत साधु पुरुष जो सच्चे सत्पुरुष है, चाहे कैसे भी कुवेश में क्यों न रहें, पर उनका सर्वत्र सम्मान ही होता है, जैसे जामवन्त और हनुमान् आज भी जगत् में पूजनीय हैं। कुसंगति से हानि और अच्छी संगति से तो लाभ ही है, यह बात वेद में भी कही गई है और संसार में भी सब लोग अच्छी तरह जानते हैं॥4॥

गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा॥
साधु असाधु सदन सुक सारीं। सुमिरहिं राम देहिं गनि गारीं॥5॥

भावार्थ: जैसे धूल वायु के सहारे आकाश पर चढ़ जाती है और जब वह नीचे गिरनेवाले जल का साथ करती है तब वह कीचड़ बन जाती है। जैसे तोता मैना साधु और असाधु सबके घर में रहते हैं अर्थात् पाले जाते हैं, परन्तु साधु के घर में पलनेवाले राम-राम कहते हैं और असाधु के घर में पलनेवाले गिन-गिनकर गाली देते हैं॥5॥

धूम कुसंगति कारिख होई। लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई॥
सोइ जल अनल अनिल संघाता। होइ जलद जग जीवन दाता॥6॥

भावार्थ: देखिए, धुआँ एक ही है परन्तु वह कुसंगति के कारण कालिख बनकर पात्रों को और अन्यान्य पदार्थों को बिगाड़ देता है और सुसंगति पाकर वही स्याही बनकर शास्त्र और पुराणों को लिखता है। फिर वही धुआँ जल, अग्नि और पवन के संसर्ग से मेघ बन जगत् का जीवनदाता हो जाता है॥6॥

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श्रीरामचरित मानस कितने कांडों में विभक्त हैं?

  • श्रीरामचरितमानस को पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं इस प्रकार हैं।
  • बालकाण्ड: रामचरितमानस का आरंभ बालकांड से होता है। इस कांड में श्री राम के जन्म और बाल्यकाल की कथा वर्णित है। शंकर-पार्वती का विवाह भी इसकी अन्य प्रमुख घटना है। इसमें कुल 361 दोहे हैं। बालकांड रामचरितमानस का सबसे बड़ा काण्ड है।
  • अयोध्याकाण्ड: अयोध्या की कथा का वर्णन अयोध्या काण्ड के अंतर्गत हुआ है। राम का राज्याभिषेक, कैकेयी का कोपभवन जाना और वरदान के रूप में राजा दशरथ से भरत के लिए राजगद्दी और राम को वनवास माँगना और दशरथ के प्राण छूटना आदि घटनाएँ प्रमुख हैं। इस कांड में 326 दोहे हैं।
  • अरण्यकाण्ड: राम का सीता लक्ष्मण सहित वन-गमन मारीचि-वध और सीता-हरण की कथा का वर्णन अरण्यकांड में हुआ है। इसमें 46 दोहे हैं।
  • किष्किन्धाकाण्ड: राम का सीता को खोजते हुए किष्किंधा पर्वत पर आना, श्री हनुमानजी का मिलना, सुग्रीव से मित्रता और बालि का वध इत्यादि घटनाएँ किष्किंधा काण्ड में वर्णित हैं। इसमें 30 दोहे हैं। किष्किंधाकांड रामचरितमानस का सबसे छोटा काण्ड है।
  • सुन्दरकाण्ड: सुंदरकांड का रामायण में विशेष महत्व है। इस कांड में सीता की खोज में हनुमानजी का समुद्र लाँघ कर लंका को जाना, सीताजी से मिलना और लंकादहन की कथा का वर्णन है।अशोक वाटिका सुंदर पर्वत के परिक्षेत्र में थी जहाँ हनुमानजी की सीताजी से भेंट होती है। इसलिए इस काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड है। सुंदरकांड सब प्रकार से सुंदर है। इसके पाठ का विशेष पुण्य है और इससे हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसमें कुल 60 दोहे हैं।
  • लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड): सेतुबंध करते हुए राम का अपनी वानरी सेना के साथ लंका को प्रस्थान, रावण-वध और फिर सीता को लेकर लौटना यह सब कथा लंकाकाण्ड के अंतर्गत आती है। इसमें कुल 121 दोहे हैं।वाल्मीकीय रामायण में लंकाकांड का नाम युद्धकांड है।
  • उत्तरकाण्ड: जीवनोपयोगी प्रश्नों के उत्तर इस उत्तरकाण्ड में मिलते हैं। इसका काकभुशुण्डि-गरुड़ संवाद विशेष है। इस कांड में 130 दोहे हैं। इसमें श्रीराम का चौदह वर्ष के वनवास के उपरांत परिवार वालों और अवधवासियों से पुनः मिलने का प्रसंग बहुत मार्मिक है।उत्तरकांड के साथ ही रामचरितमानस का समापन हो जाता है।

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श्रीरामचरित मानस का पाठ करने से पहले रखें इस बात का ध्यान

श्री रामचरितमानस (Shri Ramcharit Manas) का पाठ करने से पहले हमें श्री तुलसीदासजी, श्री वाल्मीकिजी, श्री शिवजी तथा श्रीहनुमानजी का आह्नान करना चाहिए तथा पूजन करने के बाद तीनो भाइयों सहित श्री सीतारामजी का आह्नान, षोडशोपचार ( अर्थात सोलह वस्तुओं का अर्पण करते हुए पूजन करना चाहिए लेकिन नित्य प्रति का पूजन पंचोपचार गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से संपन्न किया जा सकता है ) पूजन और ध्यान करना चाहिये। उसके उपरांत ही पाठ का आरम्भ करना चाहिये।

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Deepak Vishwakarma

दीपक विश्वकर्मा एक अनुभवी समाचार संपादक और लेखक हैं, जिनके पास 13 वर्षों का गहरा अनुभव है। उन्होंने पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं में कार्य किया है, जिसमें समाचार लेखन, संपादन… More »

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