सातवां दिन: रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, पाठ करने से पहले रखें इन बातों का ध्यान

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 11 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आज से आपके लिए लेकर आ रही हैं। आज से हम आपके लिए रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 11 चौपाई लेकर आते रहेंगे। आज से नववर्ष की शुरुआत हो रही हैं। इसलिए उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।

श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ

आज श्रीरामचरित मानस की 11 चौपाईयां | Today 11 Chaupais of Ramcharit Manas

दोहा
ग्रह भेजष जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग।
होहिं कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग॥7(क)॥

भावार्थ: सूर्य और चन्द्रमा आदि ग्रह, औषधि, जल, वायु और वस्त्र-ये सब कुयोग और सुयोग को प्राप्त होने से ही संसार में अच्छे और बुरे हो जाया करते हैं-इसको उत्तम पुरुष भली प्रकार जानते हैं।।7(क)।।

सम प्रकास तम पाख दुहुँ नाम भेद बिधि कीन्ह।
ससि सोषक पोषक समुझि जग जस अपजस दीन्ह॥7(ख)॥

भावार्थ: यद्यपि चन्द्रमा का प्रकाश दोनों पक्षों में बराबर बना रहता है, पर विधाता ने नाम से भेद कर दिया है, कारण यह कि जो पक्ष चन्द्रमा का पोषक है, उसको शुक्लपक्ष कहकर जगत् ने उसका यश बढ़ाया है और जो पक्ष चन्द्रमा को हीन बनानेवाला है, उसका नाम कृष्णपक्ष रखकर जगत् ने उसको अपयश दिया है।।7(ख)।।

जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥7(ग)॥

भावार्थ: इससे मैं जड़ और चेतन संसार में जितने जीव हैं सबको राममय जानकर उन सबके कमलरूपी चरणों की सर्वदा हाथ जोड़कर वन्दना करता हूँ।।7(ग)।।

देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब।
बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब॥7(घ)॥

भावार्थ: फिर मैं समस्त देवता, दानव, नर, नाग, पक्षी, प्रेत, पितर, गन्धर्व, किन्नर तथा राक्षस आदि सबकी वन्दना करता हूँ कि सब लोग मुझ पर कृपा करें।।7(घ)।।

चौपाई
आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी॥
सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥1॥

भावार्थ: इस प्रकार जो चार प्रकार (जरायुज, अण्डज, स्वेदज, उद्भिज) के कुल चौरासी लाख जीव जल, थल और आकाश में रहते हैं। मैं उनसे भरे हुए इस सारे संसार को सीताराममय जान दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ॥1॥

जानि कृपाकर किंकर मोहू। सब मिलि करहु छाड़ि छल छोहू॥
निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं। तातें बिनय करउँ सब पाहीं॥2॥

भावार्थ: मुझको सब लोग अपना दास जानकर छल छोड़ और एक साथ मिलकर मेरे ऊपर कृ करें। क्योंकि मुझे अपनी बुद्धि के बल का कुछ भी भरोसा नहीं है, इसी से आप सब लेंगे से विनय करता हूँ॥2॥

करन चहउँ रघुपति गुन गाहा। लघु मति मोरि चरित अवगाहा॥
सूझ न एकउ अंग उपाऊ। मन मति रंक मनोरथ राउ॥3॥

भावार्थ: मैं श्रीरामचन्द्रजी के गुणों की गाथा करना चाहता हूँ अर्थात् रामायण लिखना चाहता हूँ। पर मेरी बुद्धि छोटी है और श्रीरामचन्द्रजी का चरित्र अति अथाह है। इससे मुझे कोई अङ्ग और उपाय नहीं सूझता अर्थात् काव्य के अनेक अङ्ग हैं, जिसमें मुझे एक का भी ज्ञान नहीं है; क्योंकि मेरी बुद्धि तो महादरिद्र है और मनोरथ राजा के समान है॥3॥

मति अति नीच ऊँचि रुचि आछी। चहिअ अमिअ जग जुरइ न छाछी॥
छमिहहिं सज्जन मोरि ढिठाई। सुनिहहिं बालबचन मन लाई॥4॥

भावार्थ: मेरी बुद्धि तो अत्यन्त नीच है इच्छा बहुत बड़ी है, इच्छा तो अमृत की है और यहाँ जगत् में छाछ (मट्ठा) भी नहीं मिलता, तब कैसे बने? इस कारण सज्जन पुरुष मेरी इस धृष्टता को क्षमा करेंगे और मुझ बालक की बात को मन लगाकर सुनेंगे॥4॥

जौं बालक कह तोतरि बाता। सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता॥
हँसिहहिं कूर कुटिल कुबिचारी। जे पर दूषन भूषनधारी॥5॥

भावार्थ: जैसे बालक की तोतली बातों के कहने पर उसे माता और पिता प्रसन्न मन से सुनते हैं उसी प्रकार मेरी कविता को बालकपन के समान जानकर आशा है लोग श्रवण करेंगे। पर उसने जो पराये दोषों का भूषण धारण करनेवाले क्रूर, कुटिल और कुविचारी हैं, वे तो हँसेंगे ही॥5॥

निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका॥
जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥6॥

भावार्थ: यों तो अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती, लगती, चाहे वह सरस हो अथवा निरी फीकी। परन्तु जो पराये की रचना सुनकर प्रसन्न होते हैं, ऐसे उत्तम पुरुष संसार में अधिक नहीं हैं॥6॥

जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हि जल पाई॥
सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई॥7॥

भावार्थ: हे भाई ! संसार में नदी और तालाब के समान ऐसे बहुत से मनुष्य हैं, जो जल को पाकर अपनी बाढ़ से बढ़ जाते हैं। ऐसे पुण्यात्मा और सज्जन समुद्र के समान कोई-कोई हैं, जो कि पूर्ण चन्द्रमा को देखकर बढ़ते हैं॥7॥

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श्रीरामचरित मानस कितने कांडों में विभक्त हैं?

  • श्रीरामचरितमानस को पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं इस प्रकार हैं।
  • बालकाण्ड: रामचरितमानस का आरंभ बालकांड से होता है। इस कांड में श्री राम के जन्म और बाल्यकाल की कथा वर्णित है। शंकर-पार्वती का विवाह भी इसकी अन्य प्रमुख घटना है। इसमें कुल 361 दोहे हैं। बालकांड रामचरितमानस का सबसे बड़ा काण्ड है।
  • अयोध्याकाण्ड: अयोध्या की कथा का वर्णन अयोध्या काण्ड के अंतर्गत हुआ है। राम का राज्याभिषेक, कैकेयी का कोपभवन जाना और वरदान के रूप में राजा दशरथ से भरत के लिए राजगद्दी और राम को वनवास माँगना और दशरथ के प्राण छूटना आदि घटनाएँ प्रमुख हैं। इस कांड में 326 दोहे हैं।
  • अरण्यकाण्ड: राम का सीता लक्ष्मण सहित वन-गमन मारीचि-वध और सीता-हरण की कथा का वर्णन अरण्यकांड में हुआ है। इसमें 46 दोहे हैं।
  • किष्किन्धाकाण्ड: राम का सीता को खोजते हुए किष्किंधा पर्वत पर आना, श्री हनुमानजी का मिलना, सुग्रीव से मित्रता और बालि का वध इत्यादि घटनाएँ किष्किंधा काण्ड में वर्णित हैं। इसमें 30 दोहे हैं। किष्किंधाकांड रामचरितमानस का सबसे छोटा काण्ड है।
  • सुन्दरकाण्ड: सुंदरकांड का रामायण में विशेष महत्व है। इस कांड में सीता की खोज में हनुमानजी का समुद्र लाँघ कर लंका को जाना, सीताजी से मिलना और लंकादहन की कथा का वर्णन है।अशोक वाटिका सुंदर पर्वत के परिक्षेत्र में थी जहाँ हनुमानजी की सीताजी से भेंट होती है। इसलिए इस काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड है। सुंदरकांड सब प्रकार से सुंदर है। इसके पाठ का विशेष पुण्य है और इससे हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसमें कुल 60 दोहे हैं।
  • लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड): सेतुबंध करते हुए राम का अपनी वानरी सेना के साथ लंका को प्रस्थान, रावण-वध और फिर सीता को लेकर लौटना यह सब कथा लंकाकाण्ड के अंतर्गत आती है। इसमें कुल 121 दोहे हैं।वाल्मीकीय रामायण में लंकाकांड का नाम युद्धकांड है।
  • उत्तरकाण्ड: जीवनोपयोगी प्रश्नों के उत्तर इस उत्तरकाण्ड में मिलते हैं। इसका काकभुशुण्डि-गरुड़ संवाद विशेष है। इस कांड में 130 दोहे हैं। इसमें श्रीराम का चौदह वर्ष के वनवास के उपरांत परिवार वालों और अवधवासियों से पुनः मिलने का प्रसंग बहुत मार्मिक है।उत्तरकांड के साथ ही रामचरितमानस का समापन हो जाता है।

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श्रीरामचरित मानस का पाठ करने से पहले रखें इस बात का ध्यान

श्री रामचरितमानस (Shri Ramcharit Manas) का पाठ करने से पहले हमें श्री तुलसीदासजी, श्री वाल्मीकिजी, श्री शिवजी तथा श्रीहनुमानजी का आह्नान करना चाहिए तथा पूजन करने के बाद तीनो भाइयों सहित श्री सीतारामजी का आह्नान, षोडशोपचार ( अर्थात सोलह वस्तुओं का अर्पण करते हुए पूजन करना चाहिए लेकिन नित्य प्रति का पूजन पंचोपचार गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से संपन्न किया जा सकता है ) पूजन और ध्यान करना चाहिये। उसके उपरांत ही पाठ का आरम्भ करना चाहिये।

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Deepak Vishwakarma

दीपक विश्वकर्मा एक अनुभवी समाचार संपादक और लेखक हैं, जिनके पास 13 वर्षों का गहरा अनुभव है। उन्होंने पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं में कार्य किया है, जिसमें समाचार लेखन, संपादन… More »

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