अपने ही घर में घिरे PM शरीफ,पाक मीडिया बोली -कश्मीर छोड़ पहले अपना घर संभालें

पाकिस्तान के एक बड़े अखबार ने अपने एक लेख में कहा है कि खस्ताहाल पाकिस्तान को कश्मीर का मसला छोड़ अपना घर संभालना चाहिए. पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है इसलिए उसे कश्मीर का मसला ठंडे बस्ते में डाल देना चाहिए. लेख में भारत-पाकिस्तान से जुड़ी कई ऐसी बातों का खुलासा भी किया गया है जो अब तक पब्लिक डोमेन में नहीं थीं.

कराची
हर तरफ से संकट से घिरे पाकिस्तान का भारत के प्रति रवैया नरम पड़ता दिख रहा है. पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ ने हाल ही में कहा कि दोनों पड़ोसियों को शांति से रहना चाहिए और तरक्की पर ध्यान देना चाहिए. हालांकि, शहबाज कश्मीर मुद्दे का फिर से जिक्र करने से नहीं चूके और उन्होंने कह दिया कि कश्मीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन बंद होना चाहिए. पाकिस्तानी मीडिया ने पीएम मोदी की तारीफ में लेख प्रकाशित करने के बाद अब शहबाज शरीफ सरकार को हिदायत दे डाली है कि पाकिस्तान को कश्मीर का मुद्दा ठंडे बस्ते में डालकर अपना घर संभालना चाहिए.

पाकिस्तान के प्रमुख अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून में विदेश मामलों के पत्रकार कामरान यूसुफ का एक ऑपिनियन लेख छपा है जिसमें वो कश्मीर को लेकर पाकिस्तान को सलाह देते नजर आए हैं.

यूसुफ हाल ही में सेवानिवृत जनरल कमर जावेद बाजवा से मिले हैं. इस मुलाकात में उन्हें भारत- पाकिस्तान संबंधों को लेकर कई ऐसी बातें पता चलीं जो अब तक पब्लिक डोमेन में नहीं थीं. लेख में यूसुफ ने उन सभी बातों का जिक्र किया है. लेख में उन्होंने खुलासा किया कि पीएम नरेंद्र मोदी को अप्रैल 2021 में दोनों देशों के बीच अच्छे संबंधों का एक नया अध्याय खोलने के प्रयासों के तहत पाकिस्तान की यात्रा करनी थी.

वह लिखते हैं, ‘तत्कालीन डीजी आईएसआई लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बीच बैकचैनल वार्ता के कई दौर चले थे जिसके बाद पीएम की पाकिस्तान यात्रा की योजना बनी थी. वार्ता के प्रयासों के कारण ही फरवरी 2021 में विवादित कश्मीर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम समझौते का नवीनीकरण हुआ. यह घोषणा आश्चर्यजनक थी क्योंकि दोनों देशों के बीच कोई औपचारिक बातचीत नहीं हो रही थी. कई साल बाद दोनों देशों ने इस्लामाबाद और नई दिल्ली में एक साथ बयान जारी किए.’

यूसुफ लिखते हैं कि अगस्त 2019 में भारत ने एकतरफा रूप से जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया था जिसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव बहुत बढ़ गया था. पाकिस्तान ने प्रतिक्रिया में राजनयिक संबंधों को डाउनग्रेड कर दिया और भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार को निलंबित कर दिया. ऐसे में दोनों देशों के बीच युद्धविराम की घोषणा आश्चर्यजनक थी.

युद्धविराम के नवीनीकरण के बाद विश्वास बहाल करने के उपायों के तहत दोनों देशों को मार्च में व्यापार संबंधों को फिर से शुरू करना था. और इसके बाद पीएम मोदी का पाकिस्तान में औचक दौरा निर्धारित था.

क्यों टला पीएम मोदी का पाकिस्तान दौरा?

लेख में वह आगे लिखते हैं, ‘हालांकि, न तो व्यापार फिर से शुरू हुआ और न ही मोदी की पाकिस्तान यात्रा हो सकी. इसका कारण यह था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान को चेतावनी दी गई थी कि अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान में लोग सड़कों पर उतर आएंगे और खान को आवाम के गुस्से का शिकार होना पड़ेगा. कथित तौर पर इमरान खान को मोदी की यात्रा के दौरान 20 साल के लिए कश्मीर विवाद को रोकने का सुझाव दिया गया था. इसलिए इमरान खान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने उन्हें चेतावनी दी कि इस तरह के किसी भी कदम को कश्मीर बेच देने के रूप में देखा जाएगा. इसलिए, योजना एक सपना बनकर रह गई.’

कश्मीर पर पाकिस्तान की स्थिति हुई है कमजोर

यूसुफ लिखते हैं कि यह बात बिना किसी संदेह के कही जानी चाहिए कि पिछले कुछ वर्षों में कश्मीर पर पाकिस्तान की स्थिति हमारी ही मूर्खताओं के कारण काफी कमजोर हुई है. एक समय था जब भारत ने आधिकारिक रूप से स्वीकार किया था कि कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है और इसका समाधान किया जाना चाहिए. लेकिन अब भारत इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी नहीं करता.

उन्होंने कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए पूर्व में किए गए प्रयासों का जिक्र करते हुए लिखा कि पाकिस्तान अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर यात्रा के दौरान भारत से कश्मीर मसले को लेकर एक बेहतर समझौता कर सकता था.

वाजपेयी ने साल 1998 में दोनों देशों के परमाणु शक्ति बनने के बाद बस से लाहौर की यात्रा की थी. इस यात्रा के दौरान वाजपेयी लंबे समय से चले आ रहे कश्मीर विवाद का समाधान निकालने पर सहमत हुए. दोनों देश इस बात को लेकर एक पटरी पर आए कि कश्मीर मुद्दे का हल निकालने के लिए वार्ता हो. लेकिन तभी दोनों देशों के बीच कारगिल का युद्ध छिड़ गया.

पाकिस्तान के सैन्य शासक ने भी की थी कोशिश

पाकिस्तान में जब सैन्य तख्तापलट के बाद जनरल मुशर्रफ सत्ता में आए तब उन्होंने वाजपेयी सरकार के साथ शांति वार्ता फिर से शुरू की और बाद में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ भी इसे जारी रखा.

लेख में लिखा गया है कि साल 2004 से 2007 तक की शांति प्रक्रिया को कश्मीर विवाद को हल करने के लिए सबसे आशाजनक माना गया था. लेकिन फिर पाकिस्तान से सैन्य शासन खत्म हो गया. इसके बाद साल 2008 के मुंबई बम हमलों ने दोनों देशों के बीच तनाव को फिर से बढ़ा दिया.

‘कश्मीर मसले को ठंडे बस्ते में डाल दे पाकिस्तान’

इस आर्टिकल में लिखा है, बाद के वर्षों में फिर से दोनों देशों के बीच शांति बहाल की कोशिश हुई लेकिन तब तक भारत अमेरिका के करीब जा चुका था और उसके बढ़ते आर्थिक प्रभाव ने उसे मजबूत किया. इसके बाद कश्मीर पर भारत का रुख सख्त होता गया.

लेख के अंत में लिखा गया है, ‘हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब भारत आर्थिक विकास कर रहा था, तब पाकिस्तान एक के बाद एक संकटों से जूझ रहा था. यही कारण था कि जनरल बाजवा ने सोचा कि अर्थव्यवस्था पर फोकस करने के लिए भारत के साथ शांति रखना जरूरी है. यह बात बहुत लोगों को खटक सकती है लेकिन पाकिस्तान को फिलहाल कश्मीर पर चर्चा को रोकना होगा और पहले अपना देश संभालना होगा

पीएम मोदी की तारीफ में अखबार ने छापा था लेख

इससे पहले अपने एक ऑपिनियन लेख में द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने लिखा था कि पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत का कद विश्व पटल पर बढ़ा है. आर्थिक रूप से बदहाल पाकिस्तान जहां एक तरफ दूसरे देशों की मदद पर निर्भर हो गया, वहीं भारत की अर्थव्यवस्था तीन ट्रिलियन डॉलर की हो गई है.

लेख में लिखा गया, ‘पीएम मोदी को भले ही पाकिस्तान में नफरत की नजर से देखा जाए लेकिन उन्होंने भारत को एक ब्रांड बना दिया है. इससे पहले यह काम कोई नहीं कर सका. मोदी ने भारत को उस मुकाम पर पहुंचा दिया है जहां से भारत का प्रभाव व्यापक रूप से बढ़ा है. मोदी के नेतृत्व में वैश्विक मंच पर भारत का कद बढ़ा है. भारत अपनी विदेश नीति के सहारे विश्व पटल पर तेजी से उभर रहा है, अमेरिका के साथ अपने बेहतर संबंधों का लाभ ले रहा है लेकिन पाकिस्तान के लोग बस कोसने में लगे हैं.’

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