कुंभ, अर्द्धकुंभ, पूर्णकुंभ और MahaKumbh में क्या है अंतर, यहां जानें
MahaKumbh: कुंभ मेला भारत के सबसे बड़े मेलों में शामिल है। हालांकि, यह भी तीन प्रकार का होता है। इसके प्रकार अर्द्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ (MahaKumbh) है। अब सवाल है कि इन तीनों में क्या अंतर होता है, यदि आप नहीं जानते हैं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस बारे में जानेंगे।
MahaKumbh: उज्जवल प्रदेश डेस्क, प्रयागराज. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में इस समय MahaKumbh की तैयारियां चल रही हैं। महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी 2025 तक होगा। इस बार का महाकुंभ बहुत बड़े स्तर पर हो रहा है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु शामिल होंगे और संगम पर आस्था की डुबकी लगाएंगे।
हालांकि, क्या आप जानते हैं कि अर्द्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ में क्या अंतर होता है। क्योंकि, ये तीनों मेले ही अलग-अलग समय पर होते हैं। क्या है इसके पीछे का कारण, जानने के लिए यह पूरा लेख पढ़ें।
क्या होता है कुंभ – MahaKumbh
कुंभ मेले का आयोजन भारत में चार स्थानों पर होता है। इसमें हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज शामिल है। इस दौरान श्रद्धालु गंगा, गोदावरी और क्षिप्रा नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं। वहीं, प्रयागराज में लोग संगम में स्नान करते हैं।
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क्या होता है अर्द्धकुंभ मेला
अर्द्धकुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक छह वर्ष में एक बार किया जाता है। यह मेला सिर्फ प्रयागराज और हरिद्वार में होता है, जिसमें करोड़ों संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
क्या है पूर्णकुंभ मेला
अब सवाल है कि आखिर पूर्णकुंभ मेला क्या होता है, तो आपको बता दें कि पूर्णकुंभ मेला 12 वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है। यह मेला प्रयागराज में संगम तट पर आयोजित होता है, जिसमें करोड़ों संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। आखिर बार साल 2013 में यहां पूर्णकुंभ मेले का आयोजन किया गया था। वहीं, इसके बाद अब 2025 में पूर्णकुंभ आयोजित हो रहा है। हालांकि, इसे महाकुंभ नाम दिया जा रहा है। अब सवाल है कि आखिर इसे यह नाम क्यों दिया गया है, जानने के लिए नीचे पढ़ें।
क्या होता है महाकुंभ – MahaKumbh
प्रयागराज में साल 2025 में आयोजित हो रहे मेले को महाकुंभ नाम दिया गया है। आपको बता दें कि जब प्रयागराज में 12 बार पूर्णकुंभ हो जाते हैं, तो उसे एक महाकुंभ का नाम दिया जाता है। पूर्णकुंभ 12 वर्ष में एक बार लगता है और महाकुंभ 12 पूर्णकुंभ में एक बार लगता है। इस प्रकार वर्षों की गणना करें, तो यह 144 सालों में एक बार आयोजित होता है। इस वजह से इसे महाकुंभ कहा जाता है। यह सबसे बड़ा मेला होता है, जिसमें सबसे अधिक श्रद्धालु पहुंचते हैं।
कुंभ मेले का आयोजन चार नगरों में होता है:- हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन। चारों नगरों के आने वाले कुंभ की स्थिति विशेष होती है। एक ओर जहां नासिक और उज्जैन के कुंभ को आमतौर पर सिंहस्थ कहा जाता है तो अन्य नगरों में कुंभ, अर्धकुंभ और महाकुंभ का आयोजन होता है।
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कुंभ क्या है? – Kumbh
कुंभ का अर्थ होता है घड़ा या कलश। प्रत्येक तीन वर्ष में उज्जैन को छोड़कर अन्य स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है
अर्धकुंभ क्या है? – Ardha Kumbh
अर्ध का अर्थ है आधा। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है।
पूर्णकुंभ क्या है? – Purna Kumbh
प्रत्येक 12 वर्ष में पूर्णकुंभ का आयोजन होता है। जैसे मान लो कि उज्जैन में कुंभ का अयोजन हो रहा है, तो उसके बाद अब तीन वर्ष बाद हरिद्वार, फिर अगले तीन वर्ष बाद प्रयाग और फिर अगले तीन वर्ष बाद नासिक में कुंभ का आयोजन होगा। उसके तीन वर्ष बाद फिर से उज्जैन में कुंभ का आयोजन होगा। इसी तरह जब हरिद्वार, नासिक या प्रयागराज में 12 वर्ष बाद कुंभ का आयोजन होगा तो उसे पूर्णकुंभ कहेंगे। हिंदू पंचांग के अनुसार देवताओं के बारह दिन अर्थात मनुष्यों के बारह वर्ष माने गए हैं इसीलिए पूर्णकुंभ का आयोजन भी प्रत्येक बारह वर्ष में ही होता है।
महाकुंभ क्या है? – Maha Kumbh
मान्यता के अनुसार प्रयागराज में प्रत्येक 144 वर्षों में महाकुंभ का आयोजन होता है। 144 कैसे? 12 का गुणा 12 में करें तो 144 आता है। दरअसल, कुंभ भी बारह होते हैं जिनमें से चार का आयोजन धरती पर होता है शेष आठ का देवलोक में होता है।; इसी मान्यता के अनुसार प्रत्येक 144 वर्ष बाद प्रयागराज में महाकुम्भ का आयोजन होता है जिसका महत्व अन्य कुम्भों की अपेक्षा और बढ़ जाता है। सन् 201 3 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ था क्योंकि उस वर्ष पूरे 144 वर्ष पूर्ण हुए थे। संभवत: अब अगला महाकुंभ 138 वर्ष बाद आएगा।
सिंहस्थ क्या है?
सिंहस्थ का संबंध सिंह राशि से है। सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है। यह योग प्रत्येक 12 वर्ष पश्चात ही आता है। इसी तरह का योग नासिक में भी होता है अत: वहां भी सिंहस्थ का आयोजन होता है। दरअसल, उज्जैन में 12 वर्षों के बाद ही सिंहस्थ का आयोजन होता है। इस कुंभ के कारण ही यह धारणा प्रचलित हो गई की कुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष में होता है, जबकि यह सही नहीं है। यह मेला उज्जैन को छोड़कर बाकी के तीन नगरों में क्रमवार तीन तीन वर्षों में ही आयोजित होता है। वर्तमान में प्रयागराज में अर्ध कुंभ चल रहा है।
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4 जगह कुम्भ का पर्व
हरिद्वार में कुम्भ : कुम्भ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुम्भ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है।
प्रयागराज में कुम्भ : मेष राशि के चक्र में बृहस्पति एवं सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन कुम्भ का पर्व प्रयाग में आयोजित किया जाता है। एक अन्य गणना के अनुसार मकर राशि में सूर्य का एवं वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होनें पर कुम्भ पर्व प्रयाग में आयोजित होता है।
नासिक में कुम्भ : सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुम्भ पर्व गोदावरी के तट पर नासिक में होता है। अमावस्या के दिन बृहस्पति, सूर्य एवं चन्द्र के कर्क राशि में प्रवेश होने पर भी कुम्भ पर्व गोदावरी तट पर आयोजित होता है। इस कुंभ को सिंहस्थ इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमें सिंह राशि में बृहस्पति का प्रवेश होता है।
उज्जैन में कुम्भ : सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर यह पर्व उज्जैन में होता है। इसके अलावा कार्तिक अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र के साथ होने पर एवं बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश होने पर मोक्ष दायक कुम्भ उज्जैन में आयोजित होता है। इस कुंभ को सिंहस्थ इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमें सिंह राशि में बृहस्पति का प्रवेश होता है।
पौराणिक ग्रंथों जैसे नारदीय पुराण (2/66/44), शिव पुराण (1/12/22/-23) एवं वाराह पुराण(1/71/47/48) और ब्रह्मा पुराण आदि में भी कुम्भ एवं अर्ध कुम्भ के आयोजन को लेकर ज्योतिषीय विश्लेषण उपलब्ध है। कुम्भ पर्व हर 3 साल के अंतराल पर हरिद्वार से शुरू होता है। हरिद्वार के बाद कुम्भ पर्व प्रयाग नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है। प्रयाग और हरिद्वार में मनाए जानें वाले कुम्भ पर्व में एवं प्रयाग और नासिक में मनाए जाने वाले कुम्भ पर्व के बीच में 3 सालों का अंतर होता है।