खुशी से छुट्टी दें बॉस तो मिलेगा बेहतर आउटपुट

कर्मचारी – सर मेरी लीव पक्की? कल मेरी शादी है।
बॉस – तो… शादी तो शाम को है ना? और मैं भी तो आ रहा हूं शादी में।
मैंने तो नहीं मांगी छुट्टी, हाफ डे ले लो साथ में चलेंगे।

छुट्टी देने में आनाकानी करने वाले बॉस और उनके बेचारे एंप्लॉई का यह जोक आपने भी पढ़ा होगा। लेकिन यह मामला गंभीर है और ऑफिसों के वर्किंग आवर्स, कर्मचारियों की प्रफेशनल लाइफ और पर्सनल लाइफ के बैलंस से जुड़ा है। अगर किसी ऑफिस में बॉस अपनी बात न मानने की एवज में कर्मचारी के वीकली ऑफ तक कैंसल कर दे, तो सोचिए ये हालात ठीक नहीं है। इस मुद्दे को लेकर डिजिटल कंसल्टेंट सुखदा ने एक घटना शेयर की और कहा कि लगता है भारतीय कंपनियों के पास जिंदगी और काम के बैलंस का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं है। छुट्टी लेने और काम के बाहर उनकी एक जिंदगी होने पर कर्मचारी को शर्मिंदा किया जाता है।

उन्होंने ट्वीट किया कि उनके जानने वाले एक शख्स ने बेंगलुरू के अपने दफ्तर से दोस्त की शादी में जाने के लिए दो महीने पहले छुट्टी की सूचना दी थी। बाद में एक हाईलेवल मीटिंग हो गई, लेकिन वह तब तक जा चुका था। उसके बॉस ने उससे पूछा कि क्या यह तुम्हारी शादी थी? तुमने फोन क्यों नहीं उठाया और उसे म्यूट क्यों किया। उसके बाद बॉस ने शान के साथ यह बताया कि उन्होंने तो अपनी शादी के अगले दिन ही ऑफिस जॉइन कर लिया था। जब ऐसे बॉस नहीं रहेंगे, तभी वर्कप्लेस पर मेंटल हेल्थ के बारे में बात की जा सकेगी। सुखदा के इस ट्वीट से हजारों लोगों ने सहमति जताई है। कई लोगों ने अपने पर्सनल एक्सपीरियंस भी शेयर किए हैं।

आने का टाइम है, जाने का नहीं
एमएनसी में काम करने वाले 23 साल के अक्षत कहते हैं कि कुछ दिन पहले मैंने फेसबुक पर एक विडियो देखा। उसमें एक युवक शाम के 6 बजे ऑफिस से घर जाने के लिए बैग उठाता है, तो लोग उसे घूरकर देखते हैं। वह समझाता है कि अगर काम वक्त पर पूरा हो गया तो यहां बैठकर क्या करना है। बॉस को देखना चाहिए कि कौन फिजूल ऑफिस आवर्स के बाद भी यहां बैठा रहता है और कौन काम खत्म कर वक्त पर जा रहा है। वह साफ कहता है कि इस ऑफिस के बाहर भी जिंदगी है, मेरा एक परिवार है, मैं उनके साथ वक्त बिताना पसंद करूंगा। वाकई उस विडियो को देखने के बाद ख्याल आया कि दो साल से मैं भी ऐसी कंडिशंस में काम कर रहा हूं। ऑफिस से निकलते- निकलते भी कोई जरूरी मेल करने या प्रॉजेक्ट रिपोर्ट समिट करने का आदेश आ जाता है।
ऑफिस में आपकी इमेज और बर्ताव रखती है सर्वाधिक मायने
बॉस को यूं बताएं, आपके पास बहुत है काम

प्रणय मिश्रा पहले एक कंसल्टेंसी फर्म में जॉब करते थे। बॉस का आदेश था कि सुबह 9 बजे ऑफिस पहुंच ही जाना है। हालांकि ऑफिस से घर जाने का कोई वक्त तय नहीं था। वह कहते हैं, 'कई बार तो रात के साढ़े 8 या 9 बजे मैं घर के लिए निकला, जबकि बॉस आराम से 11 बजे ऑफिस आते और शाम 4 बजे घर चले जाते। फिर एक राउंड लगाने रात 8 बजे ऑफिस आ धमकते। उनके रहते कोई घर नहीं जा पाता था। आखिरकार मैंने वहां की नौकरी छोड़ दी और पीस ऑफ माइंड मिला। अब अपनी कंसल्टेंसी फर्म खोली है, लेकिन स्टाफ को फ्लैक्सिबल वर्किंग आवर्स दिए हैं। वे अपनी सुविधा के मुताबिक काम पूरा करते हैं और खुश भी रहते हैं।'

अच्छी कंपनी को देते हैं तरजीह
दरअसल सुखदा ने इसी मुद्दे को उठाया है कि जिस हिसाब से कर्मचारियों के ऊपर दबाव बनाए जाते हैं उतनी सुविधाएं और अच्छा वर्किंग माहौल उन्हें क्यों नहीं मिलता? खासकर बीपीओ कल्चर में और आईटी प्रफेशनल्स की जिंदगी ऐसी ही हो गई है। गुड़गांव के एक बिजनस स्कूल ने एक मॉडल तैयार किया था कि छोटे से लेकर मध्यम लेवल तक के कर्मचारियों की खुशी, अच्छे कम्युनिकेशन, इमोशनल जरूरतों, इंटैलेक्चुअल जरूरतों और आंतरिक खुशी का ख्याल रखना चाहिए। ये पांच चीजें खुशहाल कर्मचारी तैयार करती हैं। यह साबित हो गया है कि लोग सैलरी और संतुष्टि के अलावा ऐसी कंपनी की तलाश में भी रहते हैं, जो कमर्चारियों की खुशी का ख्याल रखती हो।

खुश बनाम नाखुश कर्मचारी
एक सर्वे के मुताबिक एक खुश रहने वाला एंप्लॉई नाखुश कर्मचारी के तुलना में 20 फीसदी अच्छा काम करता है। इतना ही नहीं अगर सेल्स के नजरिये से देखें, तो ऐसे खुश रहने वाले कर्मचारी 37 फीसदी तक सेल में इजाफा कर देते हैं।

ग्रोथ बढ़ी तो तनाव भी बढ़ा
समाजशास्त्री प्रफेसर एस.एस. जोधका कहते हैं कि ग्रोथ बढ़ने के साथ कर्मचारियों के तनाव में भी बढ़ोतरी हुई है। वह कहते हैं, 'पिछले कुछ सालों में ऑर्गेनाइजेशनल बदलाव आया है। नया मिडिल क्लास प्राइवेट कॉरपोरेट सेक्टर में पहुंच गया है। लेकिन इस सेक्टर में कर्मचारियों पर अच्छा परफॉर्म करने का दबाव रहता है। हर रोज अपने आप को साबित करना पड़ता है। ऐसे काम के माहौल में अतिरिक्त काम भी करना पड़ता है और इसी वजह से लोगों में तनाव रहने लगा है और यह हर स्तर के कर्मचारियों में है।

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