नाॅर्मल या सिजेरियन डिलीवरी – क्या है बेहतर? इन 8 कारणों से होता है सी-सेक्शन

मां बनने जा रही महिलाओं को सबसे ज्यादा सलाहें मिलती हैं. क्या खाएं, क्या पहनें, कैसे चलें, कैसे सोएं से लेकर कैसे बच्चे की डिलीवरी कराएं. ये बताने वालों की कमी नहीं होती. लेकिन आपको ये जरूर पता होना चाहिए कि आपको कौन-सा विकल्प चुनना है. आइए जानें एक्सपर्ट की सलाह.

कोई कहता है नॉर्मल डिलीवरी कराना औरत के लिए बेस्ट रहता है. कोई कहता है कि सिजेरियन करा लो, पेन से भी बच जाओगी और दूसरा कि कोई कॉम्प्लीकेशन नहीं आएगा. जितने मुंह उतनी बात…

प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती को सलाह देने वालों की जैसे बाढ़ आ जाती है. खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, चलने-फिरने से लेकर क्या सोचा जाए, लोग ये तक बताने की कोश‍िश में रहते हैं. लेकिन बच्चे की डिलीवरी एक ऐसा फैसला है जो आपको अपनी डॉक्टर की सलाह पर ही लेना है. इसका फैसला आपको अपने आप नहीं करना चाहिए. साथ ही आपको खुद भी कुछ बेसिक चीजों की जानकारी होनी चाहिए. मसलन किन हालातों पर डॉक्टर सिजेरियन यानी सी-सेक्शन की सलाह देते हैं. वो कौन सी मेडिकल कंडीशन होती हैं. यहां हम आपको ऐसी ही कुछ जानकारी दे रहे हैं जो आपको ये फैसला लेने में मददगार होगी.

इन मेडिकल कंडीशंस में दे सकते हैं ऑपरेशन की सलाह 
अगर लेबर प्रोग्रेस नहीं है: अगर लेबर पेन आने पर सर्विक्स खुल नहीं रहा जिससे बच्चा वजाइना से बाहर आ सके तो ऐसे में सिजेरियन करना होगा.

अगर बच्चे के स्वास्थ्य को खतरा है: गर्भनाल (umbilical cord) जो भ्रूण से गर्भाशय को जोड़ती है, वो फंसी है या फीटस हर्ट रेट आसामान्य है, तो ऐसे में बच्चे के स्वास्थ्य को देखते हुए तत्काल सी-सेक्शन की सलाह दी जाती है.

यदि बच्चा गलत पोजिशन में है: कई बार लेबर के वक्त पेट में बच्चा उल्टा होता है, इसे ब्रीच कंडीशन कहते हैं. इसका अर्थ ये हुआ कि नियम के अनुसार सिर के बजाय बच्चे के पहले पैर बाहर आएंगे, ये खतरनाक स्थ‍ित‍ि मानी जाती है.

अगर गर्भवती दो या दो से अध‍िक बच्चों को साथ जन्म दे रही: प्रीटर्म लेबर यानी समय से पहले लेबर पेन शुरू होने पर अगर सभी फीटस नॉर्मल डिलीवरी के लिए अच्छी पोजिशन में नहीं होते तो सी सेक्शन करना पड़ता है.

यदि बच्चे का साइज ज्यादा बड़ा है: डिलिवरी के समय अगर नवजात साइज में नॉर्मल से ज्यादा है, इसमें शोल्डर डिस्टोश‍िया होने पर बच्चे का सिर वजाइना से बाहर और कंधा अंदर फंस सकता है, ऐसे हालात में भी नेचुरल डिलीवरी नहीं होती.

यदि प्लेसेंटा में दिक्कत है: कई महिलाओं में कभी-कभी प्लेसेंटा नहीं बनता है या ठीक से काम नहीं करता है या गर्भाशय में गलत जगह पर है, या गर्भाशय की दीवार में बहुत गहराई से या मजबूती से चिपका है, ये स्थिति समस्याएं पैदा कर सकती हैं, जैसे आवश्यक ऑक्सीजन और पोषक तत्वों को भ्रूण तक पहुंचने से रोकना या योनि से खून बहना. इन हालातों में भी सी-सेक्शन का विकल्प है.

मां को एचआईवी या हर्पीस जैसा संक्रमण है: ऐसे संक्रमण जो योनि से जन्म के दौरान बच्चे को हो सकता है. सिजेरियन डिलीवरी शिशु को वायरस के संचरण को रोकने में मदद कर सकती है.

मां की मेडिकल कंडीशन खराब होने पर: मां को कोई हेल्थ ईश्यू होने पर डॉक्टर या हेल्थ केयर प्रोवाइडर भी सी-सेक्शन डिलीवरी का फैसला लेते हैं.

क्यों ज्यादा हो रहीं सिजेरियन डिलि‍वरी, डॉक्टर ने बताई वजहें

वो कहती हैं कि अब समय काफी बदल चुका है. मेट्रो सिटीज से लेकर छोटे शहरों तक लड़कियां आत्मनिर्भर हो रही हैं. अब 21- 22 साल का क्राउड जो बच्चे पैदा करता है या जो अर्ली एज में बच्चे पैदा कर रहा है, वो अशि‍क्ष‍ित या निर्धन वर्ग में ज्यादा हैं. वैसे अर्ली एज के अपने कॉम्प्लीकेशंस हैं. वो लोग जो 22 से 24 में बच्चा कर रहे हें, वो भी या तो ज्यादा पढे लिखे नहीं हैं या रूढ‍िवादी संस्कृति से आते हैं. इस वर्ग में नॉर्मल या नेचुरल डिलीवरी हो रही है.

वहीं शहरों में ऐसा देखा जा रहा है कि लड़कियां लेट शादी कर रही हैं. जो कि लेट थर्टीज में बच्चा प्लान करती हैं. उस पर लाइफस्टाइल भी चेंज हो चुका है. बच्चे हो या युवा मोटापा एक बड़ी समस्या बन गया है. इसके साथ फिजिकल एक्ट‍िविटीज कम हैं. ऐसे में इनफर्टिलिटी के कारण भी बढ़े हैं.

लेट प्रेग्नेंसी, ज्यादा मॉनिट‍रिंग 

इस तरह बदलते वक्त के साथ जब लेट प्रेग्नेंसी होती है तो ये एक तरह से कॉम्प्लीकेटेड प्रेगनेंसी होती है. इनमें सिजेरियन का विकल्प ज्यादा सेफ माना जाता है. अगर आज से 30 साल पहले जाएं तो तब यंग एज में शादियां होती थीं और 25 से 30 की नॉर्मल एज में बच्चे होते थे. तब मॉनिटरिंग भी कम थी, ये होता था कि एकाध बच्चा खराब हो गया तो बहुत बड़ी बात नहीं हुआ करती थी. वहीं आज के समय में जब लोग इतना बिजी हैं, वो जब फैमिली प्लान करते हैं तो उसको लेकर बहुत एलर्ट रहते हैं. कपल बच्चा खोने का चांस नहीं उठा सकते. उनकी मॉनिटरिंग भी बहुत सक्र‍िय तौर पर रहती है.

तकनीक का बड़ा रोल 

वहीं डिलिवरी के समय ऐसी मशीनें आ गई हैं जिसमें बच्चे की हेल्थ पर पूरा ध्यान रखा जाता है. काम्प्लीकेटेड प्रेग्नेंसी में सीटीवी एनएसटी मशीनें डिलेवरी के वक्त लगी रहती हैं, इन केसेज में हम कोई भी कंडीशन अनदेखी नहीं की जा सकती, न ही कोई डॉक्टर ऐसा कर सकता है. आज जब तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ गया है, ऐसे में रिस्क टेकिंग कोई नहीं कर सकता, न हम न मरीज. 

इसके अलावा लिट‍िगेशन भी का बड़ा रोल है. डॉक्टर की जवाबदेही मरीज के प्रति इतनी ज्यादा है कि डॉक्टर भी रिस्क लेने से बचते हैं. सबसे पहली प्राथमिकता यही होती है कि अगर कोई लेट एज में बच्चा प्लान कर रहा है तो उसे स्वस्थ बच्चा डिलिवर हो. इसमें कोई कसर न छूटनी चाहिए. अगर ज्यादा एज में जब हड्ड‍ियां मैच्योर हो जाती हैं तो मरीज भी सर्विक्स खुलने का वेट करना नहीं चाहते.

अपनी तरफ से सी-सेक्शन की मांग करना कितना उचित

स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ मंजू पुरी कहती हैं कि कई महिलाएं ज्योतिष से पूछकर या दर्द न सहना पड़े इसलिए भी सिजेरियन बर्थ को तरजीह देती हैं. उनके सामने वजाइनल डिलीवरी का ऑप्शन होने पर भी वो फुल टर्म होने पर लेबर का इंतजार नहीं करना चाहतीं. लेकिन हकीकत में नेचुरल डिलीवरी महिलाओं के लिए सबसे सेफ रास्ता है. यदि किसी महिला को हेल्थ केयर प्रोवाइडर की ओर से कोई कॉम्प्लीकेशन नहीं बताई गई है तो उन्हें लेबर का इंतजार करना चाहिए. इसकी मुख्य वजह ये है कि सिजेरियन डिलीवरी के लॉन्‍ग टर्म दुष्प्रभाव महिला के स्वास्थ्य पर पड़ते हैं.

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