कहानी : अगली बार नही

नताशा हर्ष गुरनानी, लेखिका
Story: अगली बार नही

अगली बार नही

मां चलो जल्दी से तैयार हो जाओ हम सब घूमने जा रहे है।

पर कहां बेटा?

अरे चलो तो

बेटा मेरी तबियत ठीक नहीं हैं घुटनों में दर्द है, मैं कैसे कहां घूम पाऊंगी?

अरे मेरी मां चलो तो, मैं हूं ना

अदिति तुम भी जल्दी तैयार हो जाओ और 5-6 दिन के हिसाब से सबकी पैकिंग कर दो।

जी, (अदिति और अमित ने आंखो आंखो में इशारा किया)

चलो सब कार में बैठो, बच्चा पार्टी पीछे बैठेगी दादी के साथ, अमित ने अपने दोनो बेटो कलश और नीर से कहा।

बच्चे खुशी खुशी दादी के साथ पीछे कार में बैठ गए।

गाड़ी धुआं छोड़ते हुए आगे बढ़ती जा रही थी और यकायक एक जगह आकर रुक गई।

क्या हुआ बेटा?

पता नही मां देखता हूं।

बाहर आकर गाड़ी देखकर अमित ने अपनी मां से कहा मां गाड़ी का इंजन खराब हो गया है, बहुत समय लगेगा इसे बनने में। आप ऐसा करो ये सामने आश्रम है वहां बैठ जाओ।

वृद्ध आश्रम देखकर सुशीला जी थोड़ा चौकी

अदिति तुम भी बच्चों और मां को लेके अंदर जाओ मैं तब तक गाड़ी के मेकेनिक को कॉल करता हूं।

मां अब थोड़ी सामान्य हुई

और सब लोग आश्रम में आ गए।

मां सबसे मिलती और बाते करती रही।

बाते करते करते उन्हे आधा घंटा हो गया तो उन्होंने देखा कि बहू और बच्चे तो है नही

कहा गए तीनों?

उन्हे देखू तो, ऐसा सोचकर वो बाहर आने लगी तो देखा कि बाहर से चौकीदार उनका सामान लेकर आ रहा है।

अरे अरे भाई ये मेरा सामान लेकर क्यों आ रहे हो?

तब तब आश्रम के मैनेजर भी बाहर आ गए

आप सुशीला जी है ना

जी हां

जी तो आज से आपका कमरा वो रहा।

मतलब

मतलब ये कि आज से आप इस कमरे में रहेगी

भाईसाहब आप पागल हो गए है क्या?

मेरे बेटे की बाहर गाड़ी खराब हो गई है वो अभी बनवा कर आता होगा।

मांजी आपके बेटे का नाम अमित है ना

जी

तो आपके अमित ने ही आपके लिए यहां रहने का फार्म भरा था।

क्या?

इसके आगे सुशीला जी कुछ भी सुन नही पाई और वही बैंच पर बैठ गई।

उनकी हालत ऐसी हो गई की काटो तो खून नहीं,
ना आंख से आसूं बह रहे, ना मुंह से एक शब्द निकल रहा, ना ही उन्हे कुछ सुनाई दे रहा था।

वो बस वही बैठे बैठे अपने अतीत में झांकने लगी

शादी के बहुत साल बाद तक वो मां नही बन पाई थी, सबके ताने सुने, किसी ने बांझ तो किसी ने कुछ कहा

हर तरह का इलाज, हर जगह मन्नत मांगी आखिर भगवान ने उनकी सुन ली और उनकी गोद में अमित आ गया।

अमित शुरू से उद्दंड, स्वार्थी और जिद्दी बच्चा था।

पर मन्नतों से मिला बच्चा लाड़ प्यार भी बहुत मिला

अमित जब 5 साल का था तो अमित के पिता भी इस दुनिया में दोनो को छोड़ कर चले गए।

अब अमित को अकेले मां और पिता का प्यार देना उसे पालना पोसना सब सुशीला के उपर आ गया था।

इन सबमें एक काम सही हुआ कि पति की मृत्यु के उपरांत अनुकंपा में उसे वर्ग चार में नौकरी मिल गई।

उसे याद आ रहा था अमित बचपन से ही बहुत जिद्दी और स्वार्थी था।

एक बार स्कूल की परीक्षा में वो फेल हो गया तो उसने खुद को पास कराने के लिए सुशीला के कान के बूंदे ले जाकर अपनी मैडम को दे दिए और बोला ले लो और मुझे पास कर दो।

बहुत डाटा था मैने उसे तो मम्मी मम्मी माफ कर दो आगे से नही करूंगा ऐसे।

स्कूल से निकालने वाले थे पर मैंने हाथ पैर जोड़े तब जाकर फिर से पढ़ने दिया उसे।

एक बार मेरे सिर बहुत दर्द कर रहा था तो मैने अमित से कहा बेटा ये बाल्टी और घाघर भर देना पाइप से, तो कहने लगा मैं नहीं भरूंगा।

मैने कहा बेटा मुझे बहुत दर्द है, भरो नही तो पिटाई कर दूंगी तो अमित ने डायल 100 पर कॉल कर दिया पुलिस आ गई घर, और उनसे कहने लगा मां मुझसे घर के काम कराती है।

कितनी शर्मिंदा हुई थी मैं, जब पुलिस वाली मुझे खूब खरी खोटी सुना रही थी।

उनके जाने के बाद अमित मुझे रोते देख बोला मम्मी मम्मी अब नही करूंगा, गलती हो गई माफ कर दो।

ऐसे ना जाने कितनी बार उसने गलतियां की और हर बार माफी मांगी।

मैने भी प्यार से, डाट कर, गुस्सा करके, समझा कर उसे बड़ा किया।

उसकी किस्मत हमेशा से अच्छी रही कम मेहनत में भी वो जल्दी सफल हो जाता था।

अच्छी जगह नौकरी लगी, मैं खुश हो गई कि वाह अब मेरे सुख के दिन आएंगे।

पर वहां भी उसका स्वार्थीपन चालू रहा, इसकी टोपी उसके सिर वो डालता रहा और जब उसने इस काम को हथियार बना बहुत बड़ा कांड किया।

तब उसे नौकरी से निकाल दिया गया।

तब भी मैने उसे बहुत डाटा, समझाया

फिर वही मम्मी मम्मी माफ कर दो आगे नहीं करूंगा।

फिर मैने अपनी जमा पूंजी जोड़ उसे एक दुकान खुलवा दी

और मैं भी दुकान के हिसाब किताब पर ध्यान देने लगी तो दुकान चल पड़ी।

मुझे लगा अब सुधर गया

कुछ दिन बाद एक लड़की को गले में माला डाले ले आया कि ये आपकी बहू है।

बहू

हां बहू

उसने मुझसे पूछा नही बस बताया मैने फिर भी बड़ा दिल रखकर बहू का स्वागत किया।

बेटे से तो कोई उम्मीद थी नही, तो बहू से भला क्या करती।

दोनो राम मिलाए जोड़ी थी

दोनो स्वार्थी

पर मैं अब किसी से कुछ कहती नही सुबह अपना काम किया और चली गई नौकरी पर आकर शाम को अपना काम किया और अपने कमरे में।

इस बीच भी बहुत गलतियां हुई अमित से, पर अब पत्नी उसका बचाव करती और वही दोनो आकर कहते मम्मी मम्मी अब आगे से ऐसा नही होगा आप माफ कर दीजिए।

दो बच्चे हो गए दोनो के, ये एक सुख लिखा था मेरी किस्मत में।

बच्चे दोनो बहुत प्यारे और मुझे बहुत प्यार करते थे।

जब घर में हम तीनो दादी पोता होते तो लगता यही स्वर्ग है।

अभी 6 महीने पहले ही मेरा रिटायरमेंट हुआ है जो थोड़े बहुत पैसे मिले, अमित ने लेने चाहे पर मैने नही दिए क्योंकि पेंशन आनी नही थी, जो पैसे मिले उसे फिक्स्ड कराकर हर महीने आते ब्याज से मेरी दवाई का खर्चा निकल जाता।

अब मैं सारा दिन घर में रहती तो काम भी ज्यादा करती।

मैने अपने अमित को बहुत अच्छे से पाला, बहुत अच्छे संस्कार दिए फिर भी ये ऐसा निकला। हर बार गलती करके माफी मांगना और फिर अगली बार और बड़ी गलती करना।

पर अब और नहीं

कुछ सोचते हुए सुशीला जी वर्तमान में आई और अपनी आंखो से बहते आंसुओ को पोछा और मैनेजर साहिब से कहने लगी।

सर एक कॉल कर सकती हूं?

जी जी

हेलो इंस्पेक्टर साहिब मुझे एक शिकायत दर्ज करानी है।

और कुछ ही देर में पुलिस मोबाइल नंबर को ट्रेस करके अमित और अदिति को पुलिस स्टेशन ले आई।

वहां सुशीला जी को देखकर दोनो हक्के बक्के रह गए।

अदिति को जब पता चला की सुशीला जी ने उनके खिलाफ शिकायत की है तो गुस्से से लाल पीली हो गई और कहने लगी हमने तो आपको अच्छी जगह भेजा था पर आप कही रहने लायक नही।

सुशीला जी ने कहा कहीं और क्यों मैं अपने घर में रहूंगी

तो अदिति हस्ते हुए बोली कौन सा आपका घर? वो घर अब मेरे नाम है।

सुशीला जी गुस्से में पुलिस इंस्पेक्टर से बोली मेरी दर्ज शिकयत में धोखादड़ी और बईमानी का केस भी दर्ज होना चाहिए।

हर धारा जो लगनी चाहिए वो लगाइए इन दोनो पर

सुशीला जी का ये रूप देखकर अमित रोने लगा मम्मी मम्मी माफ कर दो अगली बार नही

बस अब अगली बार की जरूरत नहीं पड़ेगी अमित

अगर आप हमे ऐसे यहां जेल में बंद करवा देंगी तो आपके पोतो का क्या होगा? उन्हे कौन पालेगा?

बेटा कुछ बच्चो की गलतियों की सजा उनके मां बाप को भुगतनी पड़ती है जैसे मैने भोगी।

वैसे ही कुछ माता पिता की गलतियों की सजा उनके बच्चो को भोगनी होती है वो तुम्हारे बच्चे भोगेंगे।

ऐसा कहकर पीछे से आ रही उन दोनो के रोने की आवाज को अनसुना कर वो पुलिस स्टेशन से बाहर निकल आई।

बाहर आके देखा तो उनके दोनो पोते कलश और नीर उन्हें देख भाग कर उनसे गले लग गए।

उसने भी उन दोनो को गले लगा लिया और दोनो का एक एक हाथ पकड़ कर उनके कदम से कदम मिला वो आगे बढ़ने लगी।

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