प्रदेश में प्रतिदिन 29 बच्चों के गुम होने के केस दर्ज-क्राई रिपोर्ट

भोपाल
 प्रदेश में गुमशुदा लड़कों से ज्यादा लड़कियों की संख्या पांच गुना अधिक हो गई है। प्रदेश में प्रतिदिन 29 बच्चों के गुमशुदा होने के मामले दर्ज होते है। यह खुलासा चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) की गुमशुदा बच्चों की जारी स्टेटस रिपोर्ट ऑन मिसिंग चिल्ड्रन में हुआ है। रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तर भारत के चार बड़े राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में साल 2021 में बच्चों की गुमशुदगी के मामलों में खासी बढ़ोत्तरी हुई है।

अंतरराष्ट्रीय गुमशुदा बाल दिवस 25 मई के मद्देनजर जारी हुई रिपोर्ट के अनुसार मप्र में साल 2021 में 10648 बच्चे लापता हुए। जबकि मप्र में बच्चों की गुमशुदगी की 8751 रिपोर्ट दर्ज हुई। यह आंकड़े एनसीआरबी 2020 के है। वहीं सूचना के अधिकार के जवाब में राज्य सरकार से मिली जानकारी के अनुसार यह आंकड़ा बढ़कर 10648 हो गया। डाटा साफ बताते हैं कि 2020 से तुलना की जाए, तो मप्र में बच्चों के गुमशुदा होने के मामले में करीब 26 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई। क्राई (उत्तर) की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोइत्रा बताती हैं कि मप्र में 2021 में लापता होने वाले बच्चों में 83 प्रतिशत से ज्यादा लड़कियां हैं। पिछले साल मप्र में लापता लड़कियों के 8876 मामले दजज़् हुए। यह बहुत चिंता का विषय है कि पिछले लगातार पांच सालों से लापता होने वालों में लड़कियों का अनुपात लगातार बढ़ता जा रहा है। मोइत्रा का कहना है कि स्टेटस रिपोर्ट में एनसीआरबी के डाटा का गहन विश्लेषण किया गया है। इसमें सामने आया कि पूरे भारत में लड़कियों के लापता होने के मामले साल 2016 में 65 फीसदी से आनुपातिक रूप से बढ़कर 2020 में 77 फीसदी तक पहुंच गए हैं। इन चारों राच्यों में यह ट्रेंड देखने को मिला है। वहीं मप्र और राजस्थान में लापता बच्चों में लड़कियों का अनुपात सबसे ज्यादा है।

 

देह व्यापार हो सकता है लड़कियों के लापता होने के कारण

मोइत्रा ने बताया कि लापता होने वालों में लड़कियों की ज्यादा है। संख्या की वजह घरेलू कामकाज में उनकी मांग, व्यावसायिक देह व्यापार हो सकता है। कई बार लड़कियां घरेलू हिंसा, दुव्र्यवहार और उपेक्षा का शिकार होकर मजबूरन घर से दूर भाग जाती हैं। महामारी के दौरान असंगठित क्षेत्र में सस्ते कामगारों की कमी के कारण बाल मजदूरी की मांग बढ़ी है। ऐसे में लापता लड़कों की संख्या भी चिंता का विषय है। मोइत्रा कहती हैं बच्चों के लापता होने और उनकी तस्करी के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं। खासकर किसी संकट की स्थिति में जैसे कोविड महामारी जब परिवार की आय का स्त्रोत छिन जाता है। इससे तस्करों के लिए प्रभावित होने वाले परिवारों को नौकरी का लालच दिखाकर उनके बच्चों को बहलाना फुसलाना आसान हो जाता है। कर्ज चुकाने का दबाव भी ऐसे परिवारों के बच्चों में मजदूरी और बाल विवाह बढ़ा देता है। कोविड के दौरान मास्क के अनिवार्य रूप से इस्तेमाल के कारण तस्करों और अपहरणकर्ताओं को पहचान पाना और चुनौतीपूर्ण हो गया।

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