दिल्ली हाई कोर्ट बोला – डॉक्टर नहीं दवा कंपनी की जिम्मेदारी है साइड इफेक्ट्स बताने की

दिल्ली हाई कोर्ट याचिका को खारिज करते हुआ बोला की डॉक्टरों को पर्चे में दवा के साथ संभावित साइड इफेक्ट्स लिखने की जिम्मेदारी नहीं है यह काम तो दवा निर्माता कंपनी का है।

नई दिल्ली. दिल्ली हाई कोर्ट याचिका को खारिज करते हुआ बोला की डॉक्टरों को पर्चे में दवा के साथ संभावित साइड इफेक्ट्स लिखने की जिम्मेदारी नहीं है यह काम तो दवा निर्माता कंपनी का है। एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ ने 15 को दिए अपने आदेश में कहा, ‘चूंकि विधायिका ने यह जिम्मेदारी दवा निर्माताओं को दी है, हमें जनहित जाचिका में की गई मांग पर निर्देश जारी करने का कोई आधार नहीं दिखता।’ उन्होंने कहा कि यह न्यायिक कानून जैसा होगा।

दिल्ली हाई कोर्ट में जैकब वडक्कनचेरी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही थी। खुद को नैचुरोपैथ और सोशल वर्कर बताने वाले जैकब का कहना था कि संभावित साइड इफेक्ट्स बताए बिना दवा लिखना मरीज की सहमति प्राप्त करने के बराबर नहीं है। वकील प्रशांत भूषण की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि संभावित रिस्क और साइड इफेक्ट बताने की जिम्मेदारी ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक ऐक्ट में निर्माताओं पर डाली गई है, लेकिन इसे डॉक्टरों पर शिफ्ट करने की जरूरत है।’

केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए वकील रवि प्रकाश और अली खान ने कहा कि याचिका में इस बात को माना गया है कि मरीजों को संभावित साइड इफेक्ट्स से अवगत कराने के लिए पर्याप्त कानून मौजूद है। वकीलों ने आगे जोर देकर कहा कि याचिका में की गई मांग अव्यवहारिक है। दलील दी गई कि डॉक्टरों पर पहले से ही अधिक बोझ और अब यह जिम्मेदारी देने का मतलब मरीजों को सलाह देने के काम में बाधा उत्पन्न करने जैसा होगा।

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वहीं, नेशनल मेडिकल कमीशन की ओर से पेश हुए वकील डी सिंहदेव ने कहा कि डॉक्टरों को सभी क्षेत्रीय भाषा में सूचना देने के लिए आदेश देना असंभव है क्योंकि डॉक्टर पूरे देश में अलग-अलग जगहों पर जाकर सेवा देते हैं और उनके लिए सभी भाषा में सलाह देना संभव नहीं।

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