Swachh Survekshan 2023: इंदौर लगातार 7वीं बार सिरमौर, जीता सबसे साफ शहर का अवॉर्ड

Swachh Survekshan 2023: नई दिल्ली में आज यानी गुरुवार को स्वच्छ सर्वेक्षण-2023 के परिणामों की घोषणा कर दी गई है. इस सर्वेक्षण में हिस्सा लेने देश के कई शहर भाग लेने पहुंचे. आइए जानते हैं कौन सा शहर रहा सबसे साफ, टॉप 10 स्वच्छ शहरों के बारे में जानकारी.

Swachh Survekshan 2023: उज्जवल प्रदेश, भोपाल. इस बार फिर से इंदौर को 7वीं बार देश के सबसे साफ शहर का अवॉर्ड मिला है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा नई दिल्ली में ये स्वच्छता सर्वेक्षण अवॉर्ड-2023 सीएम मोहन यादव को दिया गया. इस बार खास बात ये हैं कि इंदौर के साथ-साथ ये अवॉर्ड सूरत को भी संयुक्त रूप से दिया गया है. इस बार MP के खाते में कुल 6 नेशनल अवॉर्ड गए. भोपाल को इस बार भी क्लीनेस्ट स्टेट कैपिटल का अवॉर्ड मिला है.

बड़ी बातें – Swachh Survekshan 2023

  • MP के महू को सबसे स्वच्छ कैंटोनमेंट बोर्ड का अवॉर्ड मिला. ये अवॉर्ड डायरेक्टर जनरल जीएस राजेश्वरन ने प्राप्त किया.
  • MP ने इस बार भारत के दूसरे सबसे स्वच्छ राज्य का अवॉर्ड जीता है. ये पुरस्कार सीएम मोहन यादव ने ग्रहण किया.
  • छत्तीसगढ़ को तीसरे सबसे स्वच्छ राज्य का पुरस्कार मिला.
  • महाराष्ट्र को राज्य की श्रेणी में स्वच्छता का पहला पुरस्कार मिला.
  • भोपाल देश का पांचवां सबसे साफ शहर बना. पिछले साल ये छठवें स्थान पर था.
  • इंदौर को गार्बेज फ्री सिटी में सेवन स्टार रेटिंग मिली है.

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एक लाख से अधिक आबादी वाले शहर
1- इंदौर (मध्यप्रदेश)
2- सूरत (गुजरात)
3- नवी मुंबई (महाराष्ट्र)

एक लाख से कम आबादी वाले शहरों में ये टॉप-3 शहर
1-सासवड (महाराष्ट्र)
2-पाटन (छत्तीसगढ़)
3- लोनावाला (महाराष्ट्र)

इंदौर ने बरकरार रखी Swachh Survekshan रैकिंग, भोपाल पिछड़ रहा

वर्ष 2017 और 18 में भोपाल देश का दूसरा सबसे स्वच्छत शहर था. इसके बाद से हर वर्ष पिछड़ता जा रहा है. वहीं इंदौर हर बार नबंर वन पर रहा. उसने शुरु से ही अपनी रैकिंग बरकरार रखी है. हालांकि बीते वर्ष भोपाल 17वें स्थान से उछल कर 11वें पर पहुंचा था.

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निजी एजेंसियों को काम सौंपने से पिछड़े

शहर की वर्तमान आबादी 24 लाख पहुंच गई है. निगम के 19 जोन व 85 वार्ड में साफ-सफाई का जिम्मा नगर निगम के नौ हजार कर्मचारियों के पास है. जिसमें से सात हजार कर्मचारी सिर्फ स्वास्थ्य विभाग में दैनिक वेतन भोगी हैं.

हर जोन में एक प्रभारी सहायक स्वास्थ्य, हर वार्ड में एक दरोगा और हर वार्ड में 25 से 30 कर्मचारी रोजाना साफ-सफाई करते हैं. लेकिन निगम अधिकारी सिर्फ एनजीओ और सलाहकारों पर निर्भर हैं. कर्मचारियों के श्रम से ज्यादा एनजीओ को तबज्जो दी जाती है। इसलिए हर साल निगम पिछड़ रहा है.

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