विदेश में MBBS करने के लिए अब जरूरी होगा NEET-UG, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला!

NEET-UG: सुप्रीम कोर्ट ने विदेश में मेडिकल पढ़ाई के इच्छुक छात्रों के लिए NEET-UG को अनिवार्य करने के फैसले को बरकरार रखा है। 2018 में बनाए गए इस नियम को चुनौती दी गई थी, लेकिन अदालत ने इसे उचित ठहराया। अब भारत या विदेश में MBBS करने के लिए NEET-UG पास करना अनिवार्य होगा, जिससे चिकित्सा शिक्षा में गुणवत्ता सुनिश्चित हो सके।

NEET-UG: उज्जवल प्रदेश डेस्क. मेडिकल की पढ़ाई के इच्छुक छात्रों के लिए सुप्रीम कोर्ट का एक अहम फैसला आया है। अगर कोई छात्र भारत के बजाय विदेश में MBBS करना चाहता है, तो अब उसे पहले NEET-UG पास करना होगा। 2018 में लागू किए गए इस नियम को चुनौती दी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे उचित ठहराते हुए छात्रों को कोई छूट देने से इनकार कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह नियम मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। आइए जानते हैं इस फैसले का क्या प्रभाव पड़ेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल की पढ़ाई से जुड़ा एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अगर कोई छात्र विदेश में जाकर MBBS करना चाहता है, तो उसके लिए पहले NEET-UG परीक्षा पास करना अनिवार्य होगा। इस नियम को 2018 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (अब नेशनल मेडिकल कमीशन) द्वारा लागू किया गया था, लेकिन इसे हाल ही में अदालत में चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह नियम विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों के साथ अन्याय करता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया है।

नियम की पृष्ठभूमि

2018 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक नया नियम लागू किया, जिसमें कहा गया कि भारत या विदेश में MBBS करने के लिए छात्रों को NEET-UG क्वालिफाई करना होगा। इससे पहले, कई छात्र बिना किसी प्रवेश परीक्षा के विदेश में मेडिकल कॉलेजों में दाखिला ले लेते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि कई बार विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट भारत लौटकर प्रैक्टिस नहीं कर पाते थे, क्योंकि वे मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (अब NMC) द्वारा निर्धारित परीक्षा में सफल नहीं हो पाते थे।

इस समस्या को देखते हुए, मेडिकल शिक्षा में समानता बनाए रखने के लिए NEET-UG को अनिवार्य किया गया। इस नियम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि भारत या विदेश में पढ़ने वाले सभी मेडिकल छात्र एक समान स्तर की परीक्षा से गुजरें और उनके पास आवश्यक ज्ञान और योग्यता हो।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

हाल ही में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें यह मांग की गई थी कि विदेश में मेडिकल पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों को NEET-UG से छूट दी जाए। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि विभिन्न देशों में मेडिकल एडमिशन की अलग-अलग प्रक्रिया होती है, इसलिए NEET-UG की अनिवार्यता को हटाया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मेडिकल शिक्षा के उच्च मानकों को बनाए रखने के लिए यह नियम जरूरी है। अदालत ने कहा कि यह नियम चिकित्सा क्षेत्र में पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करता है। साथ ही, यह मेडिकल प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों के ज्ञान के स्तर को भी नियंत्रित करता है, जिससे मरीजों को उच्च स्तर की चिकित्सा सुविधा मिल सके।

विदेशी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई को लेकर नियम

यह नियम केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों पर भी लागू होता है। इसका मतलब यह है कि अगर कोई छात्र किसी अन्य देश में जाकर MBBS करना चाहता है, तो उसे पहले भारत में NEET-UG परीक्षा पास करनी होगी। अगर कोई छात्र बिना NEET-UG दिए विदेश में दाखिला लेता है, तो उसे भारत में डॉक्टर के रूप में काम करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह नियम किसी छात्र को विदेश में पढ़ाई करने से नहीं रोकता है। अगर कोई छात्र किसी विदेशी मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेना चाहता है, तो वह ले सकता है, लेकिन भारतीय मेडिकल प्रैक्टिस के नियमों के अनुसार, उसे पहले NEET-UG पास करना होगा।

छात्रों पर असर

इस फैसले के बाद उन छात्रों को झटका लग सकता है, जो NEET-UG की परीक्षा दिए बिना विदेश में मेडिकल पढ़ाई की योजना बना रहे थे। हालांकि, यह नियम उन छात्रों के लिए फायदेमंद भी साबित हो सकता है, जो मेडिकल क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा और प्रशिक्षण चाहते हैं।

इस नियम से यह सुनिश्चित होगा कि विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों का भी शैक्षणिक स्तर भारतीय मेडिकल छात्रों के बराबर हो। इसके अलावा, इससे मेडिकल क्षेत्र में अनियमितताओं और कम योग्यता वाले डॉक्टरों के पंजीकरण की समस्या को भी रोका जा सकेगा।

मेडिकल शिक्षा में सुधार की दिशा में कदम

सरकार और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (अब नेशनल मेडिकल कमीशन) द्वारा इस नियम को लागू करने का मुख्य उद्देश्य चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारना था। भारत में हर साल लाखों छात्र मेडिकल प्रवेश परीक्षा में बैठते हैं, लेकिन सीमित सीटों के कारण सभी छात्रों को सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश नहीं मिल पाता। ऐसे में कई छात्र विदेश में पढ़ाई करने का विकल्प चुनते हैं।

हालांकि, यह देखा गया कि कुछ विदेशी मेडिकल कॉलेजों में शिक्षा का स्तर भारतीय मानकों के अनुरूप नहीं होता। इसके अलावा, इन कॉलेजों से पढ़ाई पूरी करने के बाद कई छात्र मेडिकल प्रैक्टिस के लिए आवश्यक परीक्षाओं में पास नहीं हो पाते थे। इस समस्या को दूर करने के लिए यह नियम लागू किया गया, ताकि सभी छात्रों को न्यूनतम योग्यता मानदंड पूरा करना पड़े।

Deepak Vishwakarma

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