राहुल द्रविड़ का क्रिकेट छोड़ने के सालों बाद खुलासा, इस वजह से धीमी पारी खेलने को हुए थे मजबूर
नई दिल्ली
भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच राहुल द्रविड़ को द वाल के नाम से जाना जाता है। टेस्ट क्रिकेट के महानतम खिलाड़ियों में उनका नाम लिया जाता है। अपनी धैर्यपूर्ण पारियों के मशहूर द्रविड़ ने करियर के दौरान धीमी पारी खेलने के पीछे के राज का खुलासा किया है। ओलिंपिक गोल्ड मेडल विजेता अभिनव बिंद्रा से बात करते हुए भारतीय कोच ने करियर के दौरान बदलाव के बारे में बताया।
"अगर जो मैं अपने करियर के बारे में पीछे मुड़कर देखूं, अपनी उर्जा की सही जगह लगाना मेरे लिए सबसे बड़ा बदलाव था। मैंने अपनी मानसिक उर्जा को वाकई में सहगी जगह पर लगाने में कामयाब था। जब मैं खेल नहीं रहा होता था तब भी इसके बारे में सोचते, इसकी चिंता करते हुए और इसको लेकर प्रतिक्रिया देते हुए उर्जा का इस्तेमाल किया करता था। उस वक्त मैंने इस बात को सीखा कि ऐसा करने से मेरी बल्लेबाजी में मदद नही मिल रही। मुझे खुद को तरो ताजा रखने की जरूरत है, क्रिकेट के बाहर भी दुनिया है उसका मजा उठाना चाहिए।"
खेल के बाहर भी दुनिया होती है
"ईमानदारी से कहूं तो मैं कभी भी वीरू (वीरेंद्र सहवाग) जैसा नहीं बन सकता था। वह अपने व्यक्तित्व की वजह से बड़ी आसानी से अपने आप में बदलाव कर पाते थे। मैं कभी भी उनके स्तर तक तो नहीं पहुंच पाता लेकिन मैंने उस खतरे के निशान को पहचानना शुरू कर दिया, मैंने इस बात को समझा कि जब मैं हद से ज्यादा खेल से सोचने लगूं तो बदलाव करने की जरुरत है। लेकिन यह आपके दिमागी पहलू होते हैं जिसके लिए आपको अपनी मदद खुद करनी होती है।"
करियर में बदलाव कैसे आया
"आपको यह समझने की जरूरत होती है कि वो जो कुछ वक्त आप जिम में बिताते हैं या अतिरिक्त प्रैक्टिस सेशन करे हैं वहीं आपके लिए अहम हैं। इस सभी समय में अगर जो आप मानसिक तौर पर रिलैक्स नहीं करते तो आपको मैच खेलने के वक्त वो ऊर्जा नहीं मिल पाएगी जिसकी जरूरत होती है। तीन चार साल के करियर के बाद जब ये बदलाव करना मैंने शुरू किया तो इससे मुझे काफी ज्यादा मदद मिली।"
सहवाग जैसे तेज नहीं खेल सकता था
"जैसे-जैसे मेरा करियर आगे बढ़ा मुझे यह बात महसूस हुई को मैं कभी भी उस खिलाड़ी जैसा नहीं बन सकता जो सहवाग की तरह तेजी से रन बनाता हो ना ही वैसा जो सचिन की तरह खेलता हो। मुझे तो हमेशा ही प्रैक्टिस करने की जरूरत होती। मुझे अपनी और गेंदबाज के बीच चलती प्रतियोगिता को देखकर बड़ा मजा आता था, जैसे की एक खिलाड़ी के सामने दूसरा खिलाड़ी खड़ा हो। इससे मुझे कहीं ज्यादा ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती।"