त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में विन्ध्य क्षेत्र के नतीजे भाजपा के लिए वार्निंग अलार्म हैं ?

विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को यहां बड़े संगठनात्मक बदलाव करने चाहिए

शहडोल/रीवा
नगरीय निकाय चुनाव सहित त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में मध्यप्रदेश में इकतरफा जीत दर्ज करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने 85 प्रतिशत से ज्यादा निकायों में अध्यक्ष -उपाध्यक्ष पदों पर जीत दर्ज कर ली है लेकिन कुछ जिलों ने उसकी जीत के स्वाद को फीका भी बनाया है। शहडोल जिले में पहली बार बकहो नगर परिषद चुनाव में भाजपा के 9 पार्षद और कांग्रेस का एक पार्षद चुनाव जीता। निर्दलीय 5 जीते। शुरू से ऐसा लग रहा था कि भाजपा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष यहां बनेगा मगर चुनाव परिणाम ने भाजपा के दावों को पूरी तरह उलटकर रख दिया। दरअसल, बकहो में भाजपा की रणनीति इसकी दोषी है क्योंकि जिलाध्यक्ष ने अपने करीबी को पार्टी संगठन को गुमराह करते हुए जिस पार्षद को अध्यक्ष प्रत्याशी घोषित कराया भाजपा के अन्य पार्षदों ने उसका बहिष्कार कर नया गठजोड़ बना लिया। भाजपा,कांग्रेस और निर्दलीय पार्षदों ने एकजुट होकर अपना प्रत्याशी उतारा और दोनो पद जीत लिए। भाजपा जिलाध्यक्ष कमलप्रताप सिंह की  मूर्खतापूर्ण नीतियों को इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। भाजपा ने एक परिषद गंवा दीं। हालांकि  नवनिर्वाचित अध्यक्ष मौसमी केवट भाजपा से पार्षद का चुनाव जीतीं थीं। बहुमत होकर भाजपा यहां जीत न सकी। कांग्रेस नेता प्रदीप सिंह की कूटनीति यहां असरदार रही क्योकि उन्होंने ही निर्दलीयों को तैयार किया। हालांकि बकहो में भाजपा अपनी जीत का दावा कर तो रही है लेकिन बाजी तो कांग्रेस ने पलटी है।
 
शहडोल जिले की ही नगर परिषद ब्यौहारी में भाजपा किसी तरह अपना अध्यक्ष बना पाई। उसके 7 पार्षद जीतकर आये थे और एक निर्दलीय को साथ लेकर उसे अध्यक्ष पद मिला। निर्दलीय और कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी लड़ाया लेकिन उसे 7 पार्षदों का साथ मिला। हालांकि लड़ाई अंतिम समय तक कांटे की रही। वीरेश सिंह रिंकू और संतोष शुक्ला ने मिलकर पेनल उतारा। लेकिन सफलता हाथ न आई। एक बड़ा उलटफेर यहां भी हुआ। भाजपा ने जिस पार्षद कीर्ति मिश्रा पति सुनील मिश्रा को उपाध्यक्ष प्रत्याशी घोषित किया वह अपनो के ही षड्यंत्र के कारण हार गईं। जिलाध्यक्ष की भूमिका पर इससे सवाल उठने स्वाभाविक हैं। सूत्रों की माने तो प्रभारी मंत्री रामखेलावन पटेल ने चंद्रकली पटेल को उपाध्यक्ष बनवाया है। भाजपा पार्षदों में आपसी फूट साफ नजर आई।  इससे पूर्व जनपद पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में भी ब्यौहारी में निर्दलीय प्रत्याशी अध्यक्ष बना। जबकि भाजपा समर्थित सदस्य ज्यादा जीतकर आये थे। नगर परिषद खांड में भाजपा को बहुमत नहीं मिला। लेकिन निर्दलीय को भाजपा में लाकर वह अपना अध्यक्ष बनाने में सफल रही। इसमें बिल्लू सिंह की अकेली मेहनत शामिल रही। जिन्हें अन्य निर्दलीयों ने समर्थन दिया है।

जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर मिली प्रभा मिश्रा की जीत का दावा भाजपा भले करती हो लेकिन यह जीत विमलेश मिश्रा के व्यक्तिवाद की जीत कही जा रही है। शहडोल संभाग के उमरिया जिले में निकाय चुनाव परिणाम भाजपा की इच्छा के विपरीत आये। जनपद में अध्यक्ष बनाने के लिए उसे साम दण्ड दाम भेद सब झोंकना पड़ा। यहां भी भाजपा जिलाध्यक्ष पूरी तरह फेल रहा।

शहडोल की धनपुरी नगर पॉलिका अध्यक्ष पद पर भाजपा की रविंदर कौर छाबड़ा जीतीं तो जरूर लेकिन इस नाम पर जिलाध्यक्ष शुरू से तैयार नहीं थे। रविंदर कौर को पार्षद की टिकट के लिए पहले उनके पति एवं पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष इंद्रजीत छाबडा को कड़ी मेहनत करनी पड़ी। फिर चुनाव में जिलाध्यक्ष कमलप्रताप सिंह के इशारे पर रविंदर को हराने भाजपा मीडिया प्रभारी को बागी होने की छूट दी गई ताकि छाबडा चुनाव हार जाएं। हालांकि जिलाध्यक्ष की कोशिशें बेकार गईं।

इंद्रजीत छाबडा ने चुनाव और अध्यक्ष पद केवल अपनी दम पर जीता है। मौजूदा पार्टी जिलाध्यक्ष और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच शीतयुद्ध जारी है।
अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा को नए सिरे से संगठनात्मक जमावट करनी होगी वरना विन्ध्य क्षेत्र उसे धोखा दे सकता है। जाहिर है कई जिलों के अध्यक्षों को हटाए बिना कोई राह नहीं निकलने वाली है।

सीधी,सिंगरौली, रीवा, सतना में भाजपा को निकाय चुनाव में बड़े बड़े झटके लगे। मसलन रीवा और सिंगरौली नगर निगम महापौर चुनाव भाजपा हार गई  तो जनपद अध्यक्ष चुनाव में रामपुर नैकिन, मझौली, कुसमी,सिहावल में कांग्रेस ने कब्जा किया । विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम, भाजपा विधायक शरदेन्दु तिवारी, राजेन्द्र शुक्ला, केदारनाथ शुक्ला,राज्यसभा सांसद अजय प्रताप सिंह, लोकसभा सांसद रीती पाठक,सुभाष सिंह जैसे  धुरंधर नेताओं के बाद विंध्य क्षेत्र में भाजपा को मिली सफलता कहीं से अच्छे संकेत नहीं लग रहे हैं। बल्कि यह उसकी चिन्ता बढाने वाले हैं। विन्ध्य क्षेत्र में 30 विधानसभा सीटें हैं जिनमे भाजपा के कब्जे में 28 सीटें हैं । लेकिन  त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कांग्रेस ने जिस तरह से वापसी की है वह सत्तारूढ़ भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। कांग्रेस नेता अजय सिंह नई ताकत बनकर इस क्षेत्र में एक बार फिर उभरते दिखाई दे रहे हैं।

 विन्ध्य क्षेत्र के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा के लिए वार्निंग अलार्म (खतरे की घन्टी) कहे जा सकते हैं।  एक बात और  भाजपा और कांग्रेस दोनो को आम आदमी पार्टी को हल्के में नहीं लेना चाहिए। क्योकि सिंगरौली महापौर चुनाव जीतकर उसने पैर जमा लिए हैं।

 

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