रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें, आज नवां दिन
Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 8 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आज आपके लिए लेकर आई हैं। हम आपके लिए रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 8 चौपाई लेकर आते रहेंगे। जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।
श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ।
आज श्रीरामचरित मानस की 8 चौपाईयां | Today 8 Chaupais of Ramcharit Manas
चौपाई
एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥1॥
भावार्थ: इसमें उदार श्रीरामचन्द्रजी का नाम है, जो बड़ा पवित्र और वेदों-पुराणों का सार है। वह (नाम) मंगल का घर और अमंगल को हरने वाला है। जिसको कि पार्वती सहित महादेवजी जपा करते हैं॥1॥
भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ। राम नाम बिनु सोह न सोउ॥
बिधुबदनी सब भाँति सँवारी। सोह न बसन बिना बर नारी॥2॥
भावार्थ: मेरा ऐसा ख्याल है कि चाहे कोई कैसे भी सुकवि की बनाई हुई विचित्र कविता क्यों न हो, वह भी रामनाम के बिना शोभा नहीं पाती। जैसे चन्द्रमुखी स्त्री चाहे कितने भी भले प्रकार से श्रृंगार क्यों न कर ले, पर बिना वस्त्रों के उसकी भी शोभा नहीं होती॥2॥
सब गुन रहित कुकबि कृत बानी। राम नाम जस अंकित जानी॥
सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही। मधुकर सरिस संत गुनग्राही॥3॥
भावार्थ: इसके विपरीत कैसे भी कुकवि की बनायी हुई गुणरहित कविता क्यों न हो, यदि उसमें राम नाम अंकित है तो बुद्धिमान् और पण्डितजन उसी को आदरसहित कहते और सुनते हैं; क्योंकि सत्पुरुष तो मधुकर (भौरे) के समान गुण को ग्रहण करते हैं॥3॥
जदपि कबित रस एकउ नाहीं। राम प्रताप प्रगट एहि माहीं॥
सोइ भरोस मोरें मन आवा। केहिं न सुसंग बड़प्पनु पावा॥4॥
भावार्थ: यद्यपि मुझमें काव्य का एक भी गुण नहीं है तो भी इसमें श्रीरामचन्द्रजी का प्रताप प्रकट है। यही भरोसा मेरे मन में है; क्योंकि अच्छी संगत को पाकर कौन बड़ा नहीं हो जाता?॥4॥
धूमउ तजइ सहज करुआई। अगरु प्रसंग सुगंध बसाई॥
भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी। राम कथा जग मंगल करनी॥5॥
भावार्थ: जैसे धुएँ का स्वभाव कडुवा होता है पर अगर-प्रसङ्ग से वह भी अपनी कड़वाई छोड़कर सुगन्धित हो जाता है। इसी प्रकार मेरी कविता बहुत भद्दी तो है; किन्तु इसमें संसार का मंगल करनेवाली श्रीरामचन्द्रजी की कथारूपी उत्तम वस्तु का वर्णन किया गया है॥5॥
छन्द
मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।
गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥
प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी
भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी॥
भावार्थ: श्रीतुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीरघुनाथजी की कथा मंगल करनेवाली और कलियुग के पापों का नाश करनेवाली है। इस कवितारूपी नदी की गति टेढ़ी तो है, किन्तु गंगाजी की तरह परम पवित्र यह प्रभु श्रीरामचन्द्रजी के सुन्दर यश की संगति से अच्छी हो जायगी और सत्पुरुषों के मन को वैसे ही अच्छी लगेगी, जैसे श्मशान की विभूति अपवित्र होती है परन्तु वही श्रीमहादेवजी के शरीर में लगकर स्मरण करने योग्य, सुन्दर और पवित्र हो जाती है।
दोहा
प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग।
दारु बिचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग॥10 क॥
भावार्थ: श्रीरामचन्द्रजी के यश के संग से मेरी यह कविता सबको प्यारी लगेगी, क्योंकि चन्दन के निकटवर्ती काष्ठ का विचार कोई नहीं करता और वह भी मलय के प्रसंग से वन्दनीय माना जाता है।।10(क)।।
स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान।
गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान ॥10 ख॥
भावार्थ: जैसे काली गौ का दूध लाभदायक समझकर लोग पीते हैं, ऐसे ही मेरी भाषा गवाँरू तो है, परन्तु श्रीसीतारामजी का यश होने से ज्ञानीजन इसे गायेंगे और सुनेंगे।।10(ख)।।