आज से शुरू श्राद्ध पक्ष, जानें क्या कहता है विज्ञान, इससे होता है पितरों का कल्याण?

हिंदू धर्म में पितृपक्ष को लेकर काफी मान्यताएं हैं लेकिन विज्ञान इसे हमेशा से नकारता आया है। विज्ञान अपने तर्कों के साथ पितृपक्ष का मूल्य बताता है। आइए जानते हैं कि पितृपक्ष को लेकर क्या कहता है विज्ञान…

1. पितृपक्ष एवं पितरों को पिंडदान या जल का तर्पण करने की परंपरा का कोई वैदिक आधार नहीं है। चारों वेदों में से किसी भी वेद में पिंडदान या पितृपक्ष का कोई उल्लेख नहीं है। गरुड़ पुराण, कठोपनिषद् में पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म का उल्लेख किया गया है।
2. जब वेदों और श्रीमद्भगवद् गीता में आत्मा को अजर, अमर और बिना किसी मोह-माया से युक्त बताया गया है और यह भी कहा गया है कि आत्मा एक शरीर के बाद दूसरा शरीर धारण कर लेती है तो फिर पितरों या पितृलोक की संकल्पना का आधार क्या रह जाता है।
3. पितृपक्ष या फिर पिंडदान या गया श्राद्ध का उल्लेख परवर्ती काल के पुराणों की देन है अर्थात यह सनातन धर्म के मूल में नहीं है। फिर कहीं यह सिर्फ पैसा कमाने के लिए रचा गया एक खेल तो नहीं।
4. जब ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में ईश्वर की संकल्पना पर ही प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा गया है कि किसने इस संसार को रचा, इसका किसी को पता नहीं, शायद ईश्वर को भी नहीं या फिर वह है भी कि नहीं तो फिर पितरों और पितृलोक कहां से आ गया ।
5. पिंड को काले कौए को खिलाने की परंपरा की धार्मिकता क्या है/ जब सनातन धर्म में प्राणी मात्र पर दया करने और उसे भोजन कराने की परंपरा रही है तो फिर अचानक काले कौए को इतना महत्व देने की तार्किकता क्या है।
6. संतान का होना या न होना हमारी शारीरिक क्षमता पर निर्भर है। इसका पितरों के आशीर्वाद से क्या लेना-देना हो सकता है। शास्त्र कहता है पितरों में इतनी शक्ति है कि वह अपने कुल की वृद्धि के लिए क्षमता प्रदान कर सकते हैं।
7. मिस्र और हड़प्पा की सभ्यताओं में पूर्वजों के लिए उनके कब्रों में सामान रखने की परंपरा का भी सनातन धर्म के पिंडदान से कोई मेल नही है। सनातन धर्म में जब शरीर को जला दिया जाता है और आत्मा नया शरीर धारण ही कर लेती है तो फिर यह पिंड जाता किसे है? क्या इसकी कोई तार्किकता है? कब्रों में तो कम से कम नरकंकाल भी पाए जाते हैं हालांकि वह परंपरा भी बस एक आदिम परंपरा की तरह ही है।
8. वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में कहीं भी भगवान श्रीराम के द्वारा पिंडदान देने का उल्लेख नहीं है। सिर्फ जनश्रुतियों के आधार पर चली जाने वाली कथाओं को सच नहीं माना जाना चाहिए।
9. अगर मान भी लिया जाए तो पितरों का अस्तित्व है तो फिर पितृपक्ष मेले के दौरान क्या पूरे विश्व के हिंदू पूर्वजों की आत्माएं बिहार के गया जिले (जहां पितृपक्ष मेला लगता है) में ही इकट्ठा होकर पिंड ग्रहण करेंगी? क्या किसी आत्मा की यह बाध्यता है (जो कि बंधनमुक्त होती है) कि किसी स्थान विशेष पर 15 दिनों तक अपने लिए पिंड का इंतजार करें?

 

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Join Our Whatsapp Group