इस गुफा में आज भी है गणेश जी का कटा हुआ सिर, जाने गजानन बनने की कथा

हिन्दू धर्म में गणेश जी को प्रथम पूज्य आराध्य देव का दर्जा दिया गया है। कोई भी मांगलिक कार्य गणेश जी की पूजा के बिना शुरु नहीं होता है। उन्हें विघ्नहर्ता के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। इसके अलावा उन्हें 'लम्बोदर', 'गणपति' 'बप्पा', 'विनायक' और 'गजानन' जैसे नाम से भी बुलाया जाता है। गजानन का मतलब होता है 'हाथी का सिर जैसा या हाथी के समांतर दिखने वाला' वैसे तो आपने भी श्रीगणेश के गजानन बनने से जुड़े पौराणिक कथा तो सुनी ही होंगी। ये तो आप जानते ही होंगे कि गणेश जी का सिर कटने के बाद उन्हें हाथी का मस्तक लगाया गया था। लेकिन क्या आपने कभी इस बात की तरफ ध्यान दिया है कि सिर कटने के बाद उनका असली मस्तक कहां गया था?
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गणेश जी का असली सिर आज भी एक गुफा में मौजूद है। जहां उनकी पूजा की जाती है उससे पहले जानते है कि कैसे गणेश जी को हाथी का मस्तक लगाया गया था। इस बारे में दो कथाएं सुनने को मिलते है, इनमें से एक तो हम सब जानते हैं।
शिव ने क्यों काटा था गणेश जी का सिर?
शिव पुराण के अनुसार माता पार्वती ने अपने तन के मैल से श्रीगणेश का स्वरूप तैयार किया और स्नान होने तक गणेश को द्वार पर पहरा देकर किसी को भी अंदर प्रवेश से रोकने का आदेश दिया। इसी दौरान वहां आए भगवान शंकर को जब श्रीगणेश ने अंदर जाने से रोका, तो अनजाने में भगवान शंकर ने श्रीगणेश का मस्तक काट दिया। इसके बाद भगवान शंकर ने रुष्ट पार्वती को मनाने के लिए कटे मस्तक के स्थान पर गजमुख या हाथी का मस्तक जोड़ा।
जब शनि देव की पड़ी थी कुदृष्टि
दूसरी कथा के अनुसार जब गणपति का जन्म हुआ तो शिवलोक में उत्सव मनाया जा रहा था। सभी देवता इस मौके पर शिवधाम पधारे थे। लेकिन शनि देव गणपति को देखे बिना ही विदा लेने लगे। यह देख माता पार्वती ने शनि देव से इसका कारण पूछा। शनि देव ने कहा कि अगर उनकी दृष्टि गणेश पर पड़ी तो अमंगल हो जाएगा, लेकिन पार्वती जी ने उनसे बालक गणेश को देखने का आग्रह किया। जैसे ही शनि ने गणेश को देखा उनका सिर कटकर हवा में विलीन हो गया। गणपति जमीन पर गिर गए और ये देख मां पार्वती बेहोश हो गई। इसके बाद भगवान विष्णु ने एक नवजात हाथी का सिर काटकर गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया।
कहां है भगवान गणेश का मस्तक?
देश-विदेश में भगवान गणेश के जितने भी मंदिर हैं उनमें उनकी हर मूर्ति में हाथी का सिर लगा हुआ ही नजर आता है। हाथी का सिर ही भगवान गणेश की असली पहचान है। कई लोगों के मन में ये सवाल भी आता है कि आखिर गणेश जी के असली सिर कटने के बाद कहां गया होगा? लेकिन आपको ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि गणेश जी का असली सिर एक गुफा में है। मान्यता है कि भगवान शिव ने गणेश जी का जो मस्तक शरीर से अलग कर दिया था उसे उन्होंने एक गुफा में रख दिया था। इस गुफा को पाताल भुवनेश्वर के नाम से जाना जाता है। इस गुफा में विराजित गणेशजी की मूर्ति को आदि गणेश कहा जाता है। मान्यता के अनुसार कलयुग में इस गुफा की खोज आदिशंकराचार्य ने की थी।
कहां है यह गुफा?
यह गुफा उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट से 14 किलोमीटर दूर स्थित है. इसे पाताल भुवनेश्वर गुफा कहते हैं। मान्यता है कि इस गुफा में रखे गणेश के कटे हुए सिर की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं।
108 पंखुड़ियों वाला ब्रह्मकमल
शिलारूपी मूर्ति के ठीक ऊपर 108 वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल सुशोभित है। इससे ब्रह्मकमल से पानी भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है। मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई देती है। मान्यता है कि यह ब्रह्मकमल भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था।
ये भी है मस्तक को लेकर है एक मान्यता
ये मान्यता भी है कि जब भगवान शिव ने जब गणेश जी का सिर काटा था तो वो चन्द्र लोक में चला गया। श्रीगणेश का असल मस्तक चन्द्रमण्डल में है, इसी आस्था से भी धर्म परंपराओं में संकट चतुर्थी तिथि पर चन्द्रदर्शन व अर्घ्य देकर श्रीगणेश की उपासना व भक्ति द्वारा संकटनाश व मंगल कामना की जाती है।