यह है ताजिया, फख्र और मातम का महीना

हिजरी संवत का पहला महीना होता है मुहर्रम। इसके साथ ही इस्लामिक कैलेंडर के नए साल की भी शुरुआत होती है। इस महीने को शहादत के महीने के रूप में जाना जाता है। क्योंकि इसी महीने में इमाम हुसैन ने धर्म और इंसानियत की रक्षा के लिए अपनी शहादत दी थी। इस महीने के शुरुआती 10 दिनों को आशुरा कहा जाता है। इन दिनों इमाम हुसैन की शहादत की याद में मातम और शोक मनाया जाता है…
मुहर्रम में भी रखा जाता है रोजा
इस्लाम में पवित्र माने जाने वाले महीने रमजान की तरह ही इसमें भी रोजे रखे जाते हैं लेकिन ये रोजे अनिवार्य नहीं होते हैं। मुहर्रम के दौरान जंग में दी गई शहादत को याद किया जाता है और कुछ जगह ताजिये बनाकर इमाम हुसैन के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है।
यह है ताजिया निकालने का महत्व
ताजिया लकड़ी और कपड़ों से गुंबदनुमा बनाया जाता है और इसमें इमाम हुसैन की कब्र का नकल बनाया जाता है। ताजिया को झांकी की तरह सजाते हैं और एक शहीद की अर्थी की तरह इसका सम्मान करते हुए उसे कर्बला में दफन करते हैं।
कब निकाले जाते हैं ताजिया?
इस साल मुहर्रम के महीने में ताजिए 21 सिंतबर को निकाले जाएंगे। ताजिया मुहर्रम महीने के 10वें दिन निकाले जाते हैं। इस दौरान आवाम को अपने पूर्वजों की कुर्बानी की गाथाएं सुनाई जाती हैं। ताकि अपने पुर्खों पर फख्र महसूस करने के साथ ही वह धार्मिक महत्व और जीवन मूल्यों को समझ सकें।
मुहर्रम के महीने का महत्व और रिवाज
मुहर्रम को रमजान के समान ही पवित्र महीना माना जाता है। पैगंबर मुहम्मद अपने जीवन में मुहर्रम में एक रोजा रखते थे आशुरा में। एक बार उन्होंने कहा कि अगर मैं अगले साल तक जीवित रहा तो मुहर्रम में दो रोजे रखूंगा। लेकिन इससे पहले वह इंतकाल कर गए।। कई लोग पहले और आखिरी दिन रोजा रखते हैं। हजरत मुहम्मद साहब के अनुसार, मुहर्रम के दौरान रोजे रखने से जाने-अनजाने में हुए बुरे कर्मों के फल का नाश होता है। अल्लाह अपने बंदे पर करम करते हैं और गुनाहों की माफी मिलती है।
यह संदेश देता है मुहर्रम
इमाम हुसैन ने तानाशाही के आगे सिर झुकाने से इंकार कर दिया था और जब वह कोफा (बगदाद का एक स्थान) जाने लगे तो दुश्मनों ने उन पर हमला कर दिया। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और न ही बड़ी सेना देखकर घुटने टेके। बल्कि लड़ते-लड़ते शहीद हुए। मुहर्रम का महीना संदेश देता है कि युद्ध केवल रक्त बहाता है। इसलिए अमन और चैन से रहना चाहिए। साथ ही बुराई की मुखालफत के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। आपसी प्रेम और सद्भभाव ही मानवीय जीवन की असल पूंजी है।