श्रीकृष्ण ने किया था दुनिया का पहला मार्शल आर्ट, जानिए इसके फायदे और इतिहास के बारे में

जिस मार्शल आर्ट को सीखने और पारंगत होने के लिए लोग देश विदेश जाया करते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि मार्शल आर्ट भी भारत की देन हैं। इसे भारत के दक्षिण में कलारिपयट्टू (kalaripayattu) के नाम से जाना जाता है। जो कि सभी तरह के मार्शल आर्ट की जननी है। कलारिपयट्टू एक बेहद प्राचीन कला है। भारतीय परंपरा और जनश्रुति के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण इस विद्या के असली जनक थे।
उन्होंने ही इस विद्या के माध्यम से ही उन्होंने चाणूर और मुष्टिक जैसे मल्लों का वध किया था। इसी विद्या के जरिए उन्होंने कालिया नाग का भी वध किया था। कलारिपयट्टू केरल का एक मार्शल आर्ट है जोकि विश्व की सबसे पुरानी, लोकप्रिय व वैज्ञानिक कला है।
कूंग-फूं का विकास भी इस कला के जरिए माना जाता है। मूल रूप से यह केरल के मध्य और उत्तर भाग में, कर्नाटक व तमिलनाडु के नजदीक वाले भाग प्रचलित है। आइए जानते है इस मार्शल आर्ट शैली के इतिहास और इसके फायदों के बारे में।
कालारीपट्टू का अर्थ
मलायलम और तमिल भाषा में कालारी का मतलब होता है "युद्धस्थल" और पयट्टू का मतलब होता है "पारंगत या प्रशिक्षित होना" या "अभ्यास करना"। जब इन शब्दों को आपस में जोड़ा जाता है तो इसका मतलब होता है "युद्धस्थल के लिए प्रशिक्षित होना"।
ये विधियां है मुख्य
कलारिपयट्टू या कालारी युद्ध, उपचार और मार्मा थेरेपी का विज्ञान है जो इतिहासकारों द्वारा दुनिया में सबसे पुराने मौजूदा मार्शल आर्ट्स में से एक माना जाता है, जो केरल, भारत में शुरू हुई मार्शल आर्ट का पारंपरिक रूप है। कलारिपयट्टू में स्ट्राइक, किक्स, ग्रैपलिंग , प्रीसेट फॉर्म, हथियार और उपचार विधियां शामिल हैं।
डांडिया भी मार्शल आर्ट का एक रुप
जनश्रुतियों के अनुसार श्रीकृष्ण ने मार्शल आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया था। डांडिया नृत्य भी इसी विद्या का रूप है। कलारिपट्टू विद्या के प्रथम आचार्य श्रीकृष्ण को ही माना जाता है। इसी कारण श्री कृष्ण की 'नारायणी सेना' सबसे भयंकर प्रहारक सेना माना जाता था। ये वो ही नारायणी सेवा है जिन्हें महाभारत में कौरवों ने युद्ध में जीत पाने के लिए श्रीकृष्ण से मांगा था।
श्रीकृष्ण से बोधिधर्मन तक
श्रीकृष्ण ने ही कलारिपट्टू की नींव रखी, जो बाद में बोधिधर्मन से होते हुए आधुनिक मार्शल आर्ट में विकसित हुई। बोधिधर्मन के कारण ही यह विद्या चीन, जापान आदि बौद्ध राष्ट्रों तक पहुंची। कालारिपयट्टू विद्या के प्रथम आचार्य श्रीकृष्ण को ही माना जाता है। हालांकि इसे बाद में अगस्त्य मुनि ने प्रचारित किया था।
शरीर का लचीलापन बढ़ाता है
अन्य मार्शल आर्ट की तरह ही ये शरीर का लचीलापन बढ़ाता है। इस विद्या का सीखने के दौरान आप खुद को सुरक्षित रखने के लिए कई फ्लेक्सिलबल मूव्स के बारे में सीखते हैं जो आपकी बॉडी का फ्लेक्सिबल बनाता है।
शरीर को मजबूत बनाता है
कलारिपयट्टू से आपका शरीर मजबूत और सुडौल बनता है। कलारीपट्टू प्रशिक्षकों और चिकित्सकों का मानना है कि आपकी स्ट्रेंथ आपके अंदर ही छिपी होती है। जब तक आप आंतरिक रूप से फिट और स्वस्थ नहीं हैं, तब तक आप कभी भी खुद मजबूत नहीं कह सकते हैं।
आपको फुर्तीला बनाता है
इस मार्शल आर्ट में आपको खूब तेज और फुर्तीले मूव्स सीखने पड़ते हैं। इस मार्शल आर्ट में आपको आक्रमण के साथ ही बचाव के तरीकों के बारे में सिखाया जाता है। ताकि आप खुद को सामने वाले के प्रहार से बचा सकें। ये तकनीक आपको फुर्तीला बनाता है।
आलस्य को कम करता है
अगर आप अपने जीवन में आलस्य महसूस करते हैं तो ये एक ऐसी विद्या है जो आपको फुर्तीला बनाने के साथ आपके दिनचर्या में से आलस्य का नामोनिशान नहीं रहने देगा।
आपकी बुद्धि तत्परता को बढ़ाता है
कलारिपयट्टू विशेषज्ञ बनने के साथ ही आपका बुद्धि कौशल भी इम्प्रूव होता है। इस मार्शल आर्ट तकनीक में आपको बचाव और आक्रमण के लिए कई तकनीक सीखाएं जाते हैं। बचाव के तरीको के लिए आपको खुद के नई मूव्स बनाने पड़ते है जिसके लिए बुद्धि तत्परता की जरुरत होती है जो इस मार्शल आर्ट के जरिए बढ़ती है।