Famous temples of Chhattisgarh – छत्तीसगढ़ में शक्ति पीठ

अनादि काल से देवी उपासना का केंद्र छत्तीसगढ़ रहा है। Famous temples of Chhattisgarh पुराने जमाने में यहां के सामंतों जमीदारों और राजा महाराजाओं ने कुलदेवी की स्थापना की है।यहां खेत- खलिहान,डोंगरी- पहाड़,गांव -शहर में देवियों का वास होता है।

छत्तीसगढ़ में अनादि काल से शिवोपासना के साथ साथ देवी उपासना भी प्रचलित थी। Famous temples of Chhattisgarh शक्ति स्वरूपा मां भवानी यहाँ की अधिष्ठात्री हैं- यहाँ के सामंतो, राजा-महाराजाओं, जमींदारों आदि की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित आज श्रद्धा के केंद्र बिंदु हैं- छत्तीसगढ़ में देवियां अनेक रूपों में विराजमान हैं- Chhattisgarh temples श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ इन स्थलों को शक्तिपीठ की मान्यता देने लगी है- Oldest temple of Chhattisgarh प्राचीन काल में देवी के मंदिरों में जवारा बोई जाती थी और अखंड ज्योति कलश प्रज्वलित की जाती थी जो आज भी अनवरत जारी है- ग्रामीणों द्वारा माता सेवा और ब्राह्मणों द्वारा दुर्गा सप्तमी का पाठ और भजन आदि की जाती है- श्रद्धा के प्रतीक इन स्थलों में सुख, शांति और समृद्धि के लिए बलि दिये जाने की परंपरा है| Famous Temples in Chhattisgarh in Hindi

छत्तीसगढ़ महतारी क्यों? | Famous temples of Chhattisgarh

आपको बताते चलें कि संभवत: दुनिया का कोई भी देश अपने देश को माता नहीं कहता।भारतवासी कहते हैं भारत माता।भारत के किसी भी राज्य के लोग अपने राज्य को माता नहीं कहते। छत्तीसगढ़ के लोग कहते हैं छत्तीसगढ़ महतारी। दरअसल छत्तीसगढ़ के कण-कण में देवी मां अपने विविध रूप- नाम से विराजती है। छत्तीसगढ़ में पांच प्रमुख ऐसे धार्मिक स्थल है जिन्हें श्रद्धालुजन शक्तिपीठ की तरह विशेष महत्व देते हैं। जिनमें डोंगरगढ, दंतेवाड़ा, चंद्रपुर, रतनपुर और खल्लारी शामिल है। शक्ति पीठ ऐसे पूजा स्थलों को कहते हैं, जहां कि माता सती के निष्प्राण शरीर से विभिन्न अंग गिरे थे। माता सती के मृत देह को लेकर शिव जी ने तांडव करते ब्रह्मांड का विचरण किया था। इस दौरान माता सती के अंग जहां-जहां गिर गए उन स्थलों को शक्तिपीठ के रूप में मान्यता मिली है। शक्ति स्वरुपा मां दुर्गा छत्तीसगढ़ की अधिष्ठात्री है। देवी के छोटे बड़े मंदिरों में नवरात्रि पर्व पर अखण्ड ज्योति जलाने,और जंवारा बोने की प्राचीन परम्परा है। हजारों हजारों की संख्या में प्रज्वलित ज्योति भक्तजनों को मोहित करती है। दिन-रात जलने वाली ज्योति की देखभाल के लिए सेवक नियुक्त होते हैं। बंद कलश कक्ष में तपिश- धूएं के बीच निष्ठापूर्वक कार्यरत वे ज्योति को बूझने नहीं देते। Famous temple in Raipur Chhattisgarh

रतनपुर की महामाया देवी | Mahamaya temple Bilaspur

बिलासपुर जिले में कोरबा मार्ग पर रतनपुर में महामाया देवी विराजमान है।राजा रत्न देव द्वारा ग्यारवीं शताब्दी में निर्मित मंदिर की कथा है कि वे शिकार के लिए आए थे। तब अर्धरात्रि के समय वहां एक विशाल वृक्ष के नीचे उन्होंने दिव्य प्रकाश को देखा।जिसमें उन्हें आदिशक्ति देवी के दर्शन हुए तब उन्होंने वहां मंदिर का निर्माण करवाया। Ratanpur का प्राचीन नाम क्या है? | रतनपुर के राजा कौन थे? | रतनपुर कौन से जिले में? | बिलासपुर में कौन सा मंदिर है?

Mahamaya Devi Temple Ratanpur
Mahamaya Devi Temple Ratanpur

मंदिर में महाकाली महासरस्वती और महालक्ष्मी देवी की प्रतिमाएं हैं।ऐसी मानयता है कि रतनपुर में महामाया देवी का सिर है और उनका धड़ अंबिकापुर में स्थित है।यहां निर्मित मंदिर का मंडप सोलह स्तंभों में टिका हुआ है ।गर्भ गृह में मां महामाया की प्रतिमा के पृष्ठ भाग में मां सरस्वती की भी प्रतिमा है। दंतकथा के अनुसार देवी सती का दाहिना स्कंध यहां गिरा था। भगवान शिव ने इस स्थल को कौमारी शक्तिपीठ का नाम दिया था। Chhattisgarh ka Mandir

चंद्रपुर की चंद्रहासिनी देवी | Maa Chandrahasini Temple

Maa Chandrahasini Temple
Maa Chandrahasini Temple
चंद्रहासिनी कितना किलोमीटर है | रायपुर से चंद्रहासिनी की दूरी | रायपुर से चंद्रहासिनी कितना किलोमीटर दूर है | चंद्रहासिनी मंदिर दिखाइए | चंद्रपुर इतिहास | चांपा से चंद्रपुर की दूरी | चंद्रपुर देवी

छत्तीसगढ़ के डबरा तहसील जांजगीर-चांपा जिले के मांड और महानदी के संगम पर स्थित चंद्रपुर में चंद्रहासिनी देवी का मंदिर है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां माता सती का बांया कपोल गिरा था।संबलपुर के राजा चंद्रहास ने देवी मंदिर का निर्माण करवाया था।ऐसा माना जाता है कि चंद्रसेनी देवी सरगुजा से आकर यह विराजमान हुई है।देवी का मुख चंद्रमा की आकृति जैसा होने के कारण इन्हें चंद्रहासिनी,चंद्रसेनी मां के नाम से जाना जाता है, मंदिर परिसर में अर्धनारीश्वर,महाबली हनुमान,द्रोपदी चीर हरण, महिषासुर वध,शेषनाग विष्णु सैया,कृष्ण लीला सहित अनेक विशाल मूर्तियां निर्मित है जिन्हें देखकर सहज ही धार्मिक कथाओं का ज्ञान होता है। माता के मंदिर से कुछ दूरी पर महानदी के बीच बने टापू में मां नाथल दाई का मंदिर स्थित है।बड़ी बहन चंद्रहासिनी देवी के दर्शन उपरांत छोटी बहन माता नाथलदाई का दर्शन भी अनिवार्य माना जाता है।

दंतेवाड़ा में दंतेश्वरी देवी | Danteshwari Mandir

घने वनांचल बस्तर में स्थित दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी देवी का प्राचीन मंदिर है।चौदहवीं शताब्दी में दक्षिण भारतीय वास्तु कलानुसार निर्मित मंदिर स्थल पर माता सती का दांत गिरा था।ऐसी मान्यता है कि आंध्र प्रदेश के वारंगल से यहां देवी जी का आगमन हुआ और शंखिनी-डंकनी नदी के तट पर वे विराजित हुई। वारंगल के राजाअन्नम देव ने मंदिर का निर्माण कर दंतेवाड़ा नगर बसाया था। मंदिर में काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित छ: भुजाओं वाली देवी की प्रतिमा स्थापित है। नक्काशी युक्त प्रतिमा के ऊपरी भाग में नरसिंह भगवान अंकित है।मंदिर में देवी के चरण चिन्ह मौजूद है। दंतेश्वरी माता किसकी कुलदेवी है? | दंतेवाड़ा का प्राचीन नाम क्या था? |  दंतेश्वरी मंदिर का स्थापना कब हुआ? | दंतेश्वरी मंदिर का पुजारी कौन है?

Danteshwari Mandir
Danteshwari Mandir

मंदिर के द्वार पर दांई बांई ओर सर्प और गदाधारी दो द्वारपाल की मूर्ति है। मंदिर के सामने पत्थर से बना गरुड़ स्तंभ भी है।गर्भ गृह और महामण्डप का निर्माण एक ही पत्थर से किया गया है।काष्ठ,खपरैल आदि से निर्मित मंदिर में देवी दर्शन हेतु सीले हुए वस्त्र के बजाय धोती पहनकर जाना होता है।चमड़े से बनी वस्तुएं अंदर ले जाना वर्जित है। मंदिर के पास ही नदी के किनारे भैरव भाइयों का वास माना जाता है इसलिए इस स्थल को तांत्रिकों की साधना स्थली भी कहां जाता है। दंतेवाड़ा का प्राचीन नाम | दंतेवाड़ा क्यों प्रसिद्ध है

डोंगरगढ़ में बम्लेश्वरी देवी | Maa Bamleshwari Temple Dongragarh

डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ राज्य में राजनांदगांव जिले का एक शहर और नगर पालिका है तथा माँ बांम्बलेश्वरी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है । राजनांदगांव जिले में एक प्रमुख तीर्थ स्थल, शहर राजनांदगांव से लगभग 35 किमी पश्चिम में स्थित है, दुर्ग से 67 किलोमीटर पश्चिम और भंडारा से 132 किलोमीटर पूर्व में राष्ट्रीय राजमार्ग 6 पर स्थित है । राजसी पहाड़ों और तालाबों के साथ, डोंगगढ़ शब्द से लिया गया है: डोंगगढ़ का मतलब ‘पहाड़’ और गढ़ अर्थ ‘किला’ है। 1,600 फीट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित माँ बमलेश्वरी देवी मंदिर, एक लोकप्रिय स्थल है। यह महान आध्यात्मिक महत्व का है और इस मंदिर के साथ कई किंवदंतियों को भी शामिल किया गया है ।

Maa Bamleshwari Temple Dongragarh
Maa Bamleshwari Temple Dongragarh

आसपास के इलाके में एक और प्रमुख मंदिर छोटा बोलेश्वरी मंदिर है। भक्त नवरात्रि के दौरान इन मंदिरों में इकठ्ठा होते हैं । शिवजी मंदिर और भगवान हनुमान को समर्पित मंदिर भी यहां स्थित हैं । रोपेवे एक अतिरिक्त आकर्षण है और छत्तीसगढ़ में एकमात्र यात्री रोपेवे है । सन 2016 में एक गंभीर दुर्घटना हुई जब रोपवे टूट गई और कई लोगों की मृत्यु हो गई । यह शहर धार्मिक सद्भाव के लिए जाना जाता है और हिंदुओं के अलावा बौद्धों, सिखों, ईसाइयों और जैनों की भी यहाँ काफी आबादी है । डोंगरगढ़ में कितनी सीढिया है? | डोंगरगढ़ क्यों प्रसिद्ध है? | डूंगरगढ़ में कौन सा मंदिर है? | डोंगरगढ़ कौन से राज्य में है?

खल्लारी की देवी मां | Khallari Mandir

छत्तीसगढ़ के प्राचीन ऐतिहासिक देवी मंदिरों में खल्लारी माता का मंदिर शामिल है।प्राचीन काल में खल्लवाटिका के नाम से प्रसिद्ध यह स्थल महासमुंद जिले से बत्तीस किलोमीटर दूर है।पहाड़ी के ऊपर माता खल्लारी का मंदिर स्थित है। खल्लारी का अर्थ होता है दुष्टों का नाश करने वाला।पुराने जानकार लोग बताते हैं कि पहाड़ी के उपर खोह में देवी मां की उंगली के निशान थे।श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या के कारण यहां मंदिर एवं सुसज्जित सीढिों का निर्माण किया गया।

Khallari Mandir
Khallari Mandir

नौ सौ सीढिों की चढ़ाई उपरांत माता खल्लारी की मनोहारी मूर्ति के दर्शन होते हैं।पहाड़ी के नीचे भी माता का भव्य मंदिर है। जिसके बारे में कहा जाता है कि भक्तजनों को पहाड़ की ऊंचाई पर चढे में होने वाली तकलीफ को देखते हुए माता ने अपने कटार को पहाड़ी से नीचे फेंका और जहां कटार गिरा उस स्थल पर शक्ति पीठ की स्थापना हुई।मंदिर का निर्माण चौदहवीं सदी में राजा ब्रम्हदेव के शासनकाल में हुआ। खल्लारी का इतिहास | Raipur to Khallari Mandir Mahasamund distance | Bhimkhoj Khallari | Khallari Bagbahara | Khallari mata Mandir Mahasamund | Khallari MELA | भीमखोज खल्लारी मंदिर | Raipur to Khallari temple Mahasamund

ऐसी मान्यता है कि महाभारत युग में इस पहाड़ी पर पांडव आए थे।उस पहाड़ी पर भीम के विशाल चरण चिन्ह,भीम चूल्हा और नाव के आकार में एक विशालकाय पत्थर भीम डोंगा,भीम हंडा है।भीम का विवाह राक्षसी हिडिंबा से होने तथा उनके पुत्र घटोत्कच की जन्मस्थली भी इसे कहा जाता है।

पाताल भैरवी मंदिर

patal bhervi
patal bhervi

बरफानी धाम छत्तीसगढ़ में राजनंदगांव शहर में एक मंदिर है। मंदिर के शीर्ष पर एक बड़ा शिव लिंग देखा जा सकता है, जबकि इसके सामने एक बड़ी नंदी प्रतिमा खड़ी है। मंदिर तीन स्तरों में बनाया जाता है। नीचे की परत में पाताल भैरवी का मंदिर है, दूसरा नवदुर्गा या त्रिपुर सुंदरी मंदिर है और ऊपरी स्तर में भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों की प्रतिमा है। पाताल भैरवी रहस्य | पाताल भैरवी का मंदिर कहां पर है | Patal bhairavi temple Rajnandgaon | Patal bhairavi rajnandgaon | Pataal Bhairavi mandir ujjain | पाताल भैरवी साधना | पाताल भैरवी उज्जैन | Patala bhairavi temple Rajnandgaon wikipedia

छत्तीसगढ़ के कुछ अन्य प्रसिद्ध देवी मंदिर

छत्तीसगढ़ में देवी मां के और भीअनेक सिद्ध स्थल हैं। जिनमें घुंच्चापाली बागबाहरा की चण्डी मां,धमतरी की बिलाई माता,अगांरमोती माता,रायपुर की बंजारी, कंकाली माता, गरियाबंद में घटारानी जतमई माता, झलमला में महामाया, सूरजपुर में कुदरगढ़ी माता,कोरबा मड़वारानी धमधा में त्रिमूर्ति महामाया मंदिर, बेमेतरा में सिद्धि माता,भद्रकाली मंदिर, कवर्धा में हिंगलाज माता, कोंडागांव में तेलीन सती, बंजारी माता,अम्बिकापुर में महामाया समलेश्वरी देवी माता के मंदिर शामिल हैं।

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