Ganesh Chaturthi 2022: जाने विनायक चतुर्थी की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

क्या आप जानते है गणेश चतुर्थी कब है (Ganesh Chaturthi 2022) और इस दिन पूजा कैसे करना चाहीए। आज हम आप को विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) हिंदी भाषा में बता रहे है।

सनातन हिंदु धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2022), इसे विनायक चतुर्थी (Vinayaka Chaturthi) के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणपति का जन्म हुआ था। प्रथम पूज्य और बुद्धि के देवता श्री गणेशजी की पूजा का 10 दिनों का प्रमुख पर्व हर साल आता है, यह पर्व गणेश चतुर्थी से शुरू होता है और गणेश अनंत चर्तुदशी (Ganesh Anant Chaturdashi) तक चलता है। यह त्योहार Ganesh Chaturthi के नाम से प्रसिद्ध है और यह पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन गणेश भक्त ढोल नगाड़ों के साथ गणपति बप्पा को अपने घर लेकर आते हैं और साथ ही वरसिद्धि विनायक व्रत (Varsiddhi Vinayak Vrat) भी करतें है, जिसके चलते पूरा वातावरण गणपति बप्पा मोर्या के जयकारों से गूंज उठता है। साल 2022 में गणेश chaturthi बुधवार, 31 अगस्त को मनाई जाएगी।

गणेश चतुर्थी का शुभ मुहूर्त (Ganesh Chaturthi auspicious time)

बुधवार, 31 अगस्त 2022

गणेश चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त (Auspicious time for ganesh chaturthi puja)

सुबह 11:05 बजे से शुरू होकर दोपहर 1:38 बजे तक रहेगा। इस बार पूजा का शुभ मुहूर्त कुल समय 2 घंटे 33 मिनट का है।

विनायक चतुर्थी पर चंद्रमा के दर्शन नहीं करना चाहिए (sighting of the moon)

मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। अगर भूलवश चंद्रमा के दर्शन कर भी लें, तो जमीन से एक पत्थर का टुकड़ा उठाकर पीछे की ओर फेंक दें।

गणेश चतुर्थी पर पूजा विधि (Worship method on Ganesh Chaturthi)

Ganesh Chaturthi 2022

  • श्री गणेशजी को अपने घर लाने के पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में स्नानादि नित्य कर्म के बाद श्री गणेशजी का ध्यान करना चाहिए।
  • गणेश जी की प्रतिमा को धूमधाम के साथ घर लाकर विराजमान करें, ध्यान रखें कि इस दिन भूलकर भी चंद्रमा के दर्शन न करें।
  • गणेशजी की प्रतिमा को किसी चौकी पर आसन लगाकर स्थापित करें, इसके साथ ही एक कलश में सुपारी डालकर किसी कोरे (नए) कपड़े में बांधकर रखें।
  • भगवान श्री गणेशजी को स्थापित करने के बाद पूरे परिवार सहित उनकी पूजा करें और उन्हें सिंदूर और दूर्वा अर्पित करें।
  • गणेशजी को लड्डू या मोदक का भोग लगाने के पश्चात लड्डूओं को प्रसाद के रुप में बांट दें।
  • Ganesh Chaturthi के दिन से लेकर विसर्जन के दिन तक सुबह और शाम दोनों समय गणेश जी की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए।
  • इस दौरान गणेश जी की कथा पढ़े या सुनें, साथ ही गणेश चालीसा का पाठ भी करें।
  • हर रोज पूजा के बाद सबसे अंत में गणेश जी की आरती जरुर गाएं।

गणेश चतुर्थी की कथा (story of ganesh chaturthi)

शिवपुराण के अन्तर्गत रुद्रसंहिता के चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वार पाल बना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणोंने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया।

शिवजी के निर्देश पर विष्णुजीउत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गज मुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अ?र्घ्य देकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्ष पर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।

गणेश chaturthi की कथा हिंदी (Story of Ganesh Chaturthi Hindi)

एक बार महादेवजी, पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए। वहाँ एक सुंदर स्थान पर पार्वती जी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की। तब शिवजी ने कहा- हमारी हार-जीत का साक्षी कौन होगा? पार्वती ने तत्काल वहाँ की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उससे कहा- बेटा ! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, किन्तु यहाँ हार-जीत का साक्षी कोई नहीं है। अत: खेल के अन्त में तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना कि हममें से जीता, कौन हारा?

ये भी पढ़ें
Janmashtami 2022: कृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास, महत्व, यहां हिंदी में सब कुछ

खेल आरंभ हुआ। दैवयोग से तीनों बार पार्वती जी ही जीतीं। जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया तो उसने महादेवजी को विजयी बताया। परिणामत: पार्वती जी ने क्रुद्ध होकर उसे एक पाँव से लंगड़ा होने और वहाँ के कीचड़ में पड़ा रहकर दु:ख भोगने का श्राप दे दिया। बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा- माँ! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है। मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया। मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति का उपाय बताएँ। तब ममतारूपी माँ को उस पर दया आ गई और वे बोलीं- यहाँ नाग-कन्याएँ गणेश-पूजन करने आएँगी। उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत (Varsiddhi Vinayak Vrat) करके मुझे प्राप्त करोगे। इतना कहकर वे कैलाश पर्वत चली गईं।

एक वर्ष बाद वहाँ श्रावण में नाग-कन्याएँ गणेश पूजन के लिए आईं। नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया। तब गणेशजी ने उसे दर्शन देकर कहा- मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूँ। मनोवांछित वर माँगो। बालक बोला- भगवन! मेरे पाँव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुँच सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएँ। गणेशजी ‘तथास्तु’ कहकर अंतर्धान हो गए। बालक भगवान शिव के चरणों में पहुँच गया। शिवजी ने उससे वहाँ तक पहुँचने के साधन के बारे में पूछा। तब बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी। उधर उसी दिन से अप्रसन्न होकर पार्वती शिवजी से भी विमुख हो गई थीं। तदुपरांत भगवान शंकर ने भी बालक की तरह 21 दिन पर्यन्त श्रीगणेश का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई।

ये भी पढ़ें
Ker puja 2022: जाने केर पूजा का  इतिहास, समय

वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुँची। वहाँ पहुँचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूँ। शिवजी ने ‘गणेश व्रत’ का इतिहास उनसे कह दिया। तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त 21-21 की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया। 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से आ मिले। उन्होंने भी माँ के मुख से इस व्रत का माहात्म्य सुनकर व्रत किया। कार्तिकेय ने यही व्रत विश्वामित्रजी को बताया। विश्वामित्रजी ने व्रत करके गणेशजी से जन्म से मुक्त होकर ‘ब्रह्म-ऋषि’ होने का वर माँगा। गणेशजी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। ऐसे हैं श्री गणेशजी, जो सबकी कामनाएँ पूर्ण करते हैं।

गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा (Legend of Ganesh Chaturthi)

एक बार महादेवजी स्नान करने के लिए भोगावती गए। उनके जाने के पश्चात पार्वती ने अपने तन के मैल से एक पुतला बनाया और उसका नाम ‘गणेश’ रखा। पार्वती ने उससे कहा- हे पुत्र! तुम एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ। मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ। जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर मत आने देना।

भोगावती में स्नान करने के बाद जब भगवान शिवजी आए तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर रोक लिया। इसे शिवजी ने अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर उनका सिर धड़ से अलग करके भीतर चले गए। पार्वती ने उन्हें नाराज देखकर समझा कि भोजन में विलंब होने के कारण महादेवजी नाराज हैं। इसलिए उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया। तब दूसरा थाल देखकर तनिक आश्चर्यचकित होकर शिवजी ने पूछा- यह दूसरा थाल किसके लिए हैं? पार्वती जी बोलीं- पुत्र गणेश के लिए हैं, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है।

ये भी पढ़ें
Shrimant Sankardev : श्रीमंत शंकरदेव ने असम की पवित्र भूमि पर लिया अवतार

यह सुनकर शिवजी और अधिक आश्चर्यचकित हुए। तुम्हारा पुत्र पहरा दे रहा है? हाँ नाथ! क्या आपने उसे देखा नहीं? देखा तो था, किन्तु मैंने तो अपने रोके जाने पर उसे कोई उद्दण्ड बालक समझकर उसका सिर काट दिया। यह सुनकर पार्वती जी बहुत दु:खी हुईं। वे विलाप करने लगीं। तब पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया। पार्वती जी इस प्रकार पुत्र गणेश को पाकर बहुत प्रसन्न हुई। उन्होंने पति तथा पुत्र को प्रीतिपूर्वक भोजन कराकर बाद में स्वयं भोजन किया। यह घटना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुई थी। इसीलिए यह तिथि पुण्य पर्व के रूप में मनाई जाती है।

2022 में गणेश विसर्जन तिथियां (Ganesh Visarjan Dates in 2022)

Ganesh Chaturthi 2022

1 सितंबर, 2022 को गणेश विसर्जन डेढ़ दिन पर होगा।

2 सितंबर, 2022 को गणेश विसर्जन तीसरे दिन होगा।

4 सितंबर, 2022 को गणेश विसर्जन 5 वें दिन होगा।

6 सितंबर, 2022 को गणेश विसर्जन 7 वें दिन होगा।

10 वें दिन गणेश विसर्जन 9 सितंबर, 2022 को होगा।

11 वें दिन (अनंत चतुर्दशी) गणेश विसर्जन 10 सितंबर, 2022 सुबह को होगा।

Related Articles

Back to top button