Mithun Sankranti 2022: रज संक्रांति त्योहार और उसे मनाने का तरीका
मिथुन संक्रांति व रज संक्रांति 2022 (Mithun Sankranti) : हर साल 12 संक्रांति आती है, जिसमें सूर्य अलग-अलग राशि और नक्षत्र पर विराज होते है। इन सभी संक्रांति में दान-दक्षिणा, स्नान, पुण्य का बहुत अधिक महत्व होता है। मिथुना संक्रांति भी उन्हीं संक्रांतियों में से एक है। मिथुना संक्रांति के समय सौर मंडल में बड़ा बदलाव होता है और इसके बाद से ही वर्षा ऋतु (Rainy Season) शुरू हो जाती है। इसी दिन सूर्य वृषभ राशि से निकलकर मिथुन राशि में प्रवेश करता है। जिस कारण सभी राशियों में नक्षत्र की दिशा बदल जाती है।
मिथुन संक्रांति (Mithun Sankranti) और रज पर्व 2022 को हमारे देश के दक्षिण भाग, उड़ीसा और केरल में ही मनाया जाता है, इस समय सूर्य देव मिथुन राशि में प्रवेश करते है, इसीलिए इस दिन मिथुन संक्रांति और रज पर्व 2022 मनाई जाती है।
मिथुना संक्रांति का मुहूर्त
- मिथुन संक्रांति की तिथि 15 जून, 2022 दिन मंगलवार को होगी।
- मिथुन संक्रांति तिथि 15 जून, 2022 को 12:18 मिनट पर आरंभ होगी।
- मिथुन संक्रांति तिथि 15 जून, 2022 को 19:20 मिनट पर खत्म होगी।
ज्योतिषों के अनुसार सूर्य में आए बदलाव को बड़ा माना जाता है, इसलिए Mithun Sankranti के दिन पूजा-अर्चना का विशेष महत्व होता है। भारत के विभिन्न क्षेत्र में इसे अलग-अलग रूप से मनाया जाता है, साथ ही इसे अलग नाम Raja Sankranti से पुकारते है। जैस दक्षिण में इसे संक्रमानम के नाम से जानते है वहीं पूर्व में अषाढ़ के रूप, केरल में मिथुनम ओंठ वहीं उड़ीसा में राजा पर्व के नाम से जानते हैं।
Mithun Sankranti उड़ीसा में 4 दिनों तक बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है, और इस प्रकार पहली बारिश का स्वागत किया जाता है। उड़ीसा में अच्छी खेती व बारिश की मनोकामना के लिए राजा पर्व मनाते है, इस संक्रांति में सभी लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते है.
मिथुना संक्रांति 2022 या राजा संक्रांति कब मनाई जाएगी?
15 जून मंगलवार के दिन से मिथुन राजा संक्रांति मनानी शुरू होगी तथा 18 जून शुक्रवार को समाप्त होगा। चार दिन चलने वाले पर्व में पहले दिन को पहिली राजा, दुसरे दिन को मिथुना संक्रांति या राजा, तीसरे दिन को भू दाहा या बासी राजा व चौथे दिन को वसुमती स्नान कहते है।
रोचक कथा
मान्यता के अनुसार जैसे औरतों को हर महीने मासिक धर्म होता है, जो उनके शरीर के विकास का प्रतीक है, वैसे ही धरती माँ या भूदेवी, उन्हें शुरुवात के तीन दिनों में मासिक धर्म हुआ, जो धरती के विकास का प्रतीक है। मिथुन संक्रांति पर्व में ये तीन दिन यही माना जाता है कि भूदेवी को मासिक धर्म हो रहे है। चौथे दिन भूदेवी को स्नान कराया गया, इसी दिन को वासुमती गढ़ुआ कहते है। पिसने वाले पत्थर जिसे सिल बट्टा कहते है, भूदेवी का रूप माना जाता है। इस पर्व में धरती की पूजा की जाती है, ताकि अच्छी फसल मिले। विष्णु के अवतार जगतनाथ भगवान की पत्नी भूदेवी की चांदी की प्रतिमा आज भी उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर में विराजमान है।
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पर्व मनाने का तरीका
इस दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। उनसे हम जीवन में शांति की उपासना करते है। मिथुन संक्रांति पर्व के चार दिन शुरू होने के पहले वाले दिन को सजबजा दिन कहते है, इस दिन घर की औरतें आने वाले चार दिनों के पर्व की तैयारी करती है। सिल बट्टे को अच्छे से साफ करके रख दिया जाता है। मसाला पहले से पीस लेती है, क्यूंकि आने वाले चार दिन सिल बट्टे का प्रयोग नहीं किया जाता है।
चार दिनों के इस पर्व में शुरू के तीन दिन औरतें एक जगह इकठ्ठा होकर मौज मस्ती किया करती है। नाच, गाना, कई तरह के खेल होते है। बरगत के पेड़ में झूले लगाए जाते है, सभी इसमें झूलकर गीत गाती है। वे ट्रेडिशनल साडी पहनती है, मेहंदी लगाती है। अविवाहित अच्छे वर की चाह में पर्व मनाती है। कहते है जैसे धरती बारिश के लिए अपने आप को तैयार करती है, उसी तरह अविवाहित भी अपने आप को तैयार करती है, और सुखमय जीवन के लिए प्रार्थना करती है।
मिथुन संक्रांति के दिन स्नान का महत्व
मिथुन संक्रांति के दिन पवित्र नदी या जलकुंड में स्नान करने का बहुत महत्व माना जाता है। इस दिन यदि किसी पवित्र नदी में स्नान करना संभव ना हो तो घर में ही जल में गंगाजल डाल के स्नान किया जा सकता है ।स्नान करने के बाद सूर्य देव को जल दिया जाता है। मिथुन संक्रांति के दिन सूरज को जल देने से जीवन में संपन्नता, समाज में मान सम्मान, उच्च पद प्रतिष्ठा और सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है ।
पूजा की विधि
- सिल बट्टे में हल्दी, चन्दन, फूलों को पीस कर पेस्ट बनाया जाता है, जिसे सभी औरतें सुबह उठकर अपने शरीर में लगाकर नहाती है।
- पीसने वाले पत्थर (सिल बट्टे) की भूदेवी मानी जाती है।
- भूदेवी को दूध, पानी से स्नान कराया जाता है।
- उन्हें चन्दन, सिन्दूर, फूल व हल्दी से सजाया जाता है।
- इनकी पूजा करने के बाद, इस कपड़े के दान का विशेष महत्व है।
- सभी मौसमी फलों का चढ़ावा भूदेवी को चढ़ाते है, व उसके बाद पंडितों और गरीबों को दान कर देते है।
- संक्रांति की तरह इस दिन, घर के पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
- दुसरे मंदिर में जाकर पूजा करने के बाद, गरीबों को दान दिया जाता है।
- पवित्र नदी में स्नान किया जाता है।
- इस दिन विशेष रूप से पोड़ा-पीठा नाम की मिठाई बनाई जाती है। यह गुड़, नारियल, चावल के आटे व घी से बनती है। इस दिन चावल के दाने नहीं खाए जाते है।
मिथुन संक्रांति के दिन किए जाने वाले उपाय
- मिथुन संक्रांति के दिन सूर्य उदय से पहले उठकर स्नान किया जाता है।
- फिर सूर्य देव को धूप धूप दीप दिखाकर आरती की जाती है। फिरसूर्य देव को प्रणाम किया जाता है और 7 बार परिक्रमा की जाती है।
- इस दिन गरीब और जरूरतमंदों को दान करने का संकल्प लिया जाता है।
- मिथुन संक्रांति के दिन हरे रंग की वस्तुओं का दान किया जाता है।
- मिथुन संक्रांति के दिन पालक, मूंगऔर हरे रंग के वस्त्रों का दान करना अत्यंत फलदाई माना जाता है।
- मिथुन संक्रांति केदिन नमक खाए बिना व्रत रखने से सारी परेशानियां दूर हो जाती है।
- सूर्य देव की पूजा करने के लिए तांबे की थाली या तांबे के लोटे का प्रयोग किया जाता है।
- थाली में लाल चंदन, लाल फूल, और घी का दीपक रखा जाता है। दीपक, तांबे या मिट्टी कादीपक रख सकते हैं।
- सूर्यदेव को अर्घ्य देने वाला पानी जमीन पर नहीं गिरने दिया जाता। इस पानी को किसी तांबे के बर्तन में अर्घ्यगिराया जाता है।
- फिर इस पानी को किसी पेड़ पौधे में डाल दिया जाता है।