मंदिर-मस्जिद के तीनों मामलों में आये कोर्ट के फैसले

लखनऊ/वाराणसी/मथुरा

 

 

वाराणसी, मथुरा और आगरा में मंदिर-मस्जिद से जुड़े मामलों में आज अलग-अलग कोर्ट में सुनवाई हुई. आज वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद पर सबकी निगाहें टिकी हुई थीं. दरअसल दूसरे पक्ष ने कोर्ट कमिश्नर को हटाने की मांग थी, लेकिन कोर्ट ने मस्जिद के अंदर सर्वे को लेकर नई तारीख तय की है. वहीं इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा कोर्ट को श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद को लेकर दायर सभी वाद का 4 महीने में निपटारा करने का निर्देश दिया. उधर, ताजमहल में बंद पड़े 22 कमरों को खोलने की मांग को लेकर दायर की गई याचिका को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने खारिज कर दिया.

17 मई से पहले होगा ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे

वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के लिए नियुक्त किए गए एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को हटाए जाने से इनकार कर दिया. साथ ही अदालत ने कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा के अलावा विशाल कुमार सिंह और अजय सिंह को भी कोर्ट कमिश्नर बनाया है. यह दोनों लोग या इन दोनों में से कोई एक इस सर्वे के दौरान मौजूद रहेगा. साथ ही कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे 17 मई से पहले कराने का आदेश दिया है. कोर्ट ने 17 मई को सर्वे की अगली रिपोर्ट देने के लिए कहा है.
वादी पक्ष के वकील ने बताया कि कोर्ट ने पूरे मस्जिद परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया है. उन्होंने कहा, उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन को आदेश दिए गए हैं कि इस कार्रवाई को पूरा कराया जाए. जो भी लोग इसमें व्यवधान डालेंगे, उन पर कार्रवाई की जाए.

11 मई को कोर्ट ने सुरक्षित रखा था फैसला

दरअसल, अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी की तरफ से एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को हटाए जाने की मांग को लेकर याचिका दायर की गई थी. इस पर 3 दिन तक बहस चलने के बाद वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर ने 11 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था.

5 महिलाओं ने दायर की है याचिका

कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे का आदेश 5 महिलाओं द्वारा दायर की याचिकाओं पर दिया था. जिसमें उन्होंने श्रृंगार गौरी में रोज पूजा का अधिकार मांगा था. इसके बाद कोर्ट ने एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किया था. लेकिन सर्वे के दौरान ज्ञानवापी मस्जिद में हंगामा हो गया था. इसके बाद सर्वे नहीं हो पाया था.

मथुरा विवाद को लेकर इलाहाबाद HC का आदेश

मथुरा श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले में गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा की अदालत को निर्देश दिया है कि अधिकतम 4 महीने में सभी अर्जियों का निपटारा किया जाए. साथ ही हाईकोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड व अन्य पक्षकारों के सुनवाई में शामिल ना होने पर एकपक्षीय आदेश जारी करने का निर्देश भी दिया है. भगवान श्री कृष्ण विराजमान के वाद मित्र मनीष यादव की अर्जी पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने ये फैसला सुनाया.

हिन्दू पक्षकार की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने ये निर्देश दिया. इस याचिका में मामले की रोजाना सुनवाई करने की मांग की गई थी. हिंदू पक्षकारों की ओर से दाखिल इस याचिका में अपील की गई थी कि विपक्षी के कोर्ट में हाजिर ना होने पर उनके खिलाफ कार्रवाई हो और एकतरफा आदेश पारित किया जाए.

6 मई को पूरी हो चुकी है सुनवाई

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद पर मथुरा की सेशन कोर्ट में सुनवाई छह मई को पूरी हो चुकी है. कोर्ट ने इस मामले में 19 मई तक फैसला सुरक्षित रख लिया था. लखनऊ की रहने वाली रंजना अग्निहोत्री ने श्री कृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर वाद दायर किया है. इसमें श्री कृष्ण जन्मभूमि में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की भी मांग की गई है. कोर्ट में दायर वाद में भगवान कृष्ण के जन्मस्थान के पास कटरा केशव देव मंदिर के 13.37 एकड़ के परिसर में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर 1669-70 में कथित तौर पर बनी मस्जिद को हटाने की मांग की गई है.

ताजमहल को लेकर दायर याचिका खारिज

ताजमहल के 22 कमरों को खोलने की मांग को लेकर दायर की गई याचिका को हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने खारिज कर दिया है. याचिकाकर्ता ने जब कोर्ट से कहा कि वहां तो पहले शिव मंदिर था जिसे मकबरे का रूप दिया गया तो जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने याचिकाकर्ता को नसीहत देते हुए कहा कि आप पहले इस बाबत इतिहास की पढ़ाई कीजिए. किसी संस्थान से इस विषय में एमए या पीएचडी कीजिए. तब हमारे पास आइए. अगर कोई संस्थान इसके लिए आपको दाखिला न दे तो हमारे पास आइए.

फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित नहीं कर सकता कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि याचिका समुचित और न्यायिक मुद्दों पर आधारित नहीं है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि स्मारक अधिनियम 1951 में क्या ये जिक्र है कि ताजमहल मुगलों ने ही बनाया था? याचिका में ये भी मांग की गई है कि ताज परिसर से कुछ निर्माण और ढांचे हटाए जाएं ताकि पुरातात्विक महत्व और इतिहास की सच्चाई सामने लाने के लिए सबूत नष्ट न हों. याचिकाकर्ता की कोर्ट से मांग और गुहार जिन मुद्दों पर हैं वो न्यायिक परिधि में नहीं हैं. यानी कोर्ट उन पर निर्णय नहीं दे सकता. ये अदालत फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित नहीं कर सकती. अब इस मामले में अदालत हस्तक्षेप नहीं करेगी. कोर्ट का काम ऐतिहासिक तथ्यों की तस्दीक और रिसर्च करने का नहीं है. ये काम ऐतिहासिक तथ्यों के विशेषज्ञों और इतिहासकारों पर हो छोड़ देना उचित है. हम ऐसी याचिका पर विचार नहीं कर सकते.

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