अंहिसा की शंख ध्वनि से राष्ट्र को जगाने वाले गांधी जी को प्रणाम-डाॅ. तिवारी

सागर
स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय सागर में दिनाँक 28 सितंबर 2018 को सभागार में महात्मा गांधी जी की 150वी वर्षगांठ के उपलक्ष्य में भजन प्रतियोगिता एवं व्याख्यान माला का आयोजन किया गया। जिसमें विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने उत्साह पूर्वक सहभागिता की इस अवसर गांधी जी के भजन सुश्री नीलम ठाकुर, सुश्री सद्दफ, सुश्री दीपा, सुश्री निकहत, सुश्री सीता एवं श्री मनीष तिवारी के भजन ने सबका मन मोह लिया। विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डाॅ. अजय तिवारी ने अपने संदेष में कहां-सोये हुए भारतीय राष्ट्र को सत्य की शंख ध्वनि से जगाने वाले, दासता की बेड़ियों से बद्ध कराहते राष्ट्र में ‘करो या मरो’ के मंत्र से नव चेतना, नव उत्साह भरने वाले, अंधकार में प्रकाश की किरण के समान, हिंसोन्मुख, मदांध एवं पत्थर हृदय क्रूर मानव को अंहिसा का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा गाँधी न केवल भारत की वरन् समूचे विश्व की भी महान विभूति हैं। इस अवसर पर अपने उद्बोधन में आपदा प्रबंधन के निदेशक श्री मनीष दुबे ने कहां-विश्व-वंद्य महात्मा गांधी सम्पूर्ण मानव इतिहास की ऐसी विलक्षण घटना के रूप में भारतीय जन-जीवन के रंगमंच पर प्रगट हुये कि मानव जाति की आगामी पीढ़ियाँ उनके जीवन और कृतित्व को आश्चर्य चकित होकर समझने का प्रयास करेंगी। वकतव्य की श्रृखंला में श्री आषुतोष शर्मा ने कहां-महात्मा गाँधी जी के परिवार की धार्मिक प्रवृत्ति विशेष रूप से माता की सहज धार्मिकता ने गाँधी जी के हृदय में राम और रामायण के प्रति अगाध श्रद्धा उत्पन्न कर दी थी जो उनके समग्र जीवन को उत्तरोत्तर अनुप्राणित करती गयी। बचपन में ही उनकी आत्मा ने सत्य का साक्षात्कार करने की ठान ली थी। महात्मा गांधी जी अत्यन्त प्रतिभाषाली थे। इसी अवसर पर श्रीमती नेहा दुबे ने कहां-महात्मा गाँधी भारतीय जनता के केवल राजनैतिक नेता ही न थे वरन् सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक नेता भी थे। उनमें समस्त अतीत और वर्तमान भारत समाहित था।

समस्त भारत गाँधी था और गाँधी भारत थे। उन्होंने जीवन का कोई पक्ष न छोड़ा जिसमें क्रांति न की हो। उन्होंने अनेक समस्याओं जैसे हरिजन उद्धार, षिक्षा, हिन्दू-मुस्लिम एकता, स्त्री, प्रजातंत्र, मानव और समाज, जीव, जगत, ईष्वर, कला, नैतिकता एवं धर्म पर अपने निर्देष देकर समस्त मानव जाति का मार्ग प्रषस्त किया। विभागाध्यक्ष हिन्दी डाॅ. ममता सिंह जी ने कहां-महात्मा गाँधी जी अति विनम्र मानव थे क्योंकि वे नम्रता को ईष्वरत्व मानते थे। इसीलिए ईष्वर को ‘नम्रता का सम्राट’ कहा करते थे। वे मनुष्य द्वारा स्थापित धर्म, जाति एवं रंग-भेदों से ऊपर थे। उनके हृदय में साक्षात् करूणावतार बैठा था जो दीन-दलितों, अपमानितों एवं असहायों के लिए दीन-बंधु बनकर आसुरी प्रवृत्तियों के विरूद्ध संघर्ष कर रहा था। गांधी जी का एक मात्र उद्देश्य सत्य (ईष्वर) प्राप्ति था और इसके लिए मानव स्वतन्त्रता परम आवश्यक साधन था। इसीलिए इस महामानव ने भारत की स्वतंत्रता के लिए नैतिक संघर्ष किया ताकि स्वतंत्र भारत समूची परतंत्र मानवता के लिए आदर्ष बन सके। वे इस महान कार्य में सफल हुये तथा भारतीय जनता ने उन्हें स्नेहवष ‘बापू’ और राष्ट्र-पिता कहकर पुकारा और विष्व ने उन्हें महामानव कहकर पुकारा। कुलपति डाॅ. राजेष दुबे ने कहां-महात्मा गाँधी सत्य-अंहिसा के पुजारी थे। उन्होंने अपने आदर्षों को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रयोग करने का जीवन भर प्रयत्न किया। ईष्वर के परम भक्त गाँधी जी का जीवन धर्ममय था। वे धर्म को राजनीति की आधार षिला मानते थे। वे कहा करते थे कि ‘मैं हवा और पानी के बिना जीवित रह सकता हूँ परन्तु ईश्वर के बिना नहीं।’ वे राजनीति को धर्म की सेविका मानते थे। उनके लिए धर्मरहित राजनीति मृत्यु का जाल था। सभागार में श्रीमती अंतिमा शर्मा, श्रीमती शैलबाला बैरागी, श्रीमती ज्योति दुबे, श्रीमती बिन्दु दुबे, श्री अनुपम मिश्रा, श्री भवानी सिंह, श्री सुनील रजक की उपस्थिति रही मंच संचालन श्री मनीष शुक्ला द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संयोजन डाॅ. सुनीता दीक्षित द्वारा किया गया। शांति मंत्र के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।  

 

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