कांग्रेस के कब्जे वाली इस सीट पर दांव पर है प्रतिष्ठा, BJP के पूर्व मंत्री हारे थे चुनाव

पन्ना
मध्य प्रदेश में तीन बार सरकार बनाने में सफल रही भाजपा को चौथी बार जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है| कई सीटें ऐसी हैं जहां कभी बीजेपी का कब्जा रहा है लेकिन अब कांग्रेस की पकड़ यहां मजबूत हैं| ऐसी ही सीटों के लिए बीजेपी नई रणनीति के साथ काम कर रही है| पन्ना जिले की पवई सीट पर कांग्रेस का कब्जा है और वर्तमान में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मुकेश नायक यहां से विधायक है| पिछले चुनाव में यहां मुकेश नायक ने भाजपा के पूर्व मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह को मात देकर सीट पर कब्जा जमाया था।
प्रत्याशियों की सूची जारी होने से पहले ही कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुकेश नायक का नाम मंच से घोषित करने के बाद क्षेत्र में सियासत गरमाई हुई है, वहीं यह तय माना जा रहा है कि नायक ही यहाँ से चुनाव लड़ेंगे | वहीं क्षेत्र में नायक की मजबूत पकड़ है और 2013 में बीजेपी के पूर्व मंत्री और दिग्गज नेता बृजेन्द्र प्रताप सिंह को भारी अंतर से हराया था| इस सीट को जीतना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहे| कांग्रेस और भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की इस सीट पर दोनों ही पार्टियों में मंथन चल रहा है| चुनाव से पहले पार्टी से बाहर चल रहे बागी नेता संजय नगायच की भाजपा में वापसी करा ली गई है। जिसके चलते संभावना है कि बीजेपी संजय नगायच को मुकेश नायक के खिलाफ खड़ा कर सकती है| वहीं एक बार फिर बीजेपी को यहां भितरघात का भी खतरा है, जिसके चलते पार्टी यहां नेताओं को एकजुट करने में जुटी हुई है| अगर आपसी तालमेल ठीक रहा तो इस सीट पर कांटे का मुकाबला संभव है| नगायच ने 2013 के चुनाव में टिकट न मिलने पर बगावत शुरू कर दी थी, इसी कारण इन्हें पार्टी ने 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया था, लेकिन करीब 5 साल में ही इन्हें पार्टी में पुन: शामिल कर लिया गया है। नगायच को पार्टी में शामिल कर भाजपा ने क्षेत्रीय प्रत्याशी की मांग को कमजोर कर दिया है।
बीजेपी को पिछले चुनाव में अपनों के कारण ही नुकसान हुआ था, पिछले चुनाव में यहां मुकेश नायक ने भाजपा के पूर्व मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह को मात देकर सीट पर कब्जा जमाया था। कांग्रेस की इस जीत में भाजपा के बागी नेताओं की भी अहम भूमिका बताई जा रही थी। इसलिए पार्टी ने आगामी चुनाव जीतने के लिए सर्वप्रथम बगावत को रोकने का काम किया है। अब पुन: टिकट वितरण से बगावत होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। यहां से दो बार विधायक रहे बृजेन्द्र सिंह को 2008 के मुकाबले 2013 में करीब 26 हजार अधिक मत मिलने के बावजूद वे चुनाव हार गए थे। वोट प्रतिशत बढ़ने के बाद भी उनकी हार सीधे तौर पर भितरघात के कारण हुई। यदि इस बार पार्टी ने भितरघात पर लगाम लगाई तो भाजपा को लाभ मिल सकता है।
कांग्रेस में भी स्थानीय नेता को टिकट देने की मांग है, लेकिन पार्टी में उनका कद बड़ा है| मुकेश नायक के लिए यह मुसीबत हो सकती है। हाल ही में कांग्रेस नेता अनिल तिवारी के निष्कासन और फिर बहाली से पार्टी में अंतर्कलह उजागर हुई थी। कांग्रेस के युवा नेता भुवन विक्रम सिंह की नाराजगी भी नायक के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है। कांग्रेस के इन दावेदारों को लेकर दिल्ली में मंथन चल रहा है|