सबको अपनाने वाले दर्शन को ही हिंदुत्व मानते हैं भागवत

मोहन भागवत ने भारत भूमि को सुजलाम् सुफलाम् बताते हुए कहा है कि भारत की राष्ट्र की कल्पना पश्चिम की कल्पना से अलग है। उन्होंने कहा कि भारत विविधता में एकता और वसुधैव कुटुंबकम् के तत्व दर्शन और व्यवहार के आधार पर बना एक राष्ट्र है।

उज्जवल प्रदेश, जबलपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भारत भूमि को सुजलाम् सुफलाम् बताते हुए कहा है कि भारत की राष्ट्र की कल्पना पश्चिम की कल्पना से अलग है। अपने चार दिवसीय जबलपुर प्रवास के दौरान स्थानीय मानस भवन में प्रबुद्ध जनों की एक गोष्ठी में उन्होंने कहा कि भारत विविधता में एकता और वसुधैव कुटुंबकम् के तत्व दर्शन और व्यवहार के आधार पर बना एक राष्ट्र है।

संघ प्रमुख ने कहा कि भारत में यहां के सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर अपने जीवन का बलिदान कर देने पूर्वजों की महान परंपरा रही है । भारत के दर्शन में प्रतिष्ठा अर्जित करने का अधिकार उसे मिलता है जिसे कमाने से अधिक बांटने में खुशी मिलती है । हमारे देश में प्रतिष्ठा का आधार यह कभी नहीं रहा कि किसने कितना कमाया। भागवत के कहने का आशय यही था कि परहित में किये गये योगदान से ही कोई व्यक्ति समाज में वास्तविक प्रतिष्ठा अर्जित कर सकता है।

संघ प्रमुख ने कहा कि जगत के कल्याण और मोक्ष के लिए जीना ही भारत के समाज का दर्शन रहा है । इसी दर्शन के आधार पर भारत बना है और हमारे देश के संतों और ॠषियों ने इसी तत्व दर्शन के आधार पर अपना जीवन जीते हुए ज्ञान विज्ञान, शक्ति और समृद्धि में वृद्धि करने का मार्ग दिखाया। धर्म अर्थ काम और मोक्ष की बात अर्थात सभी प्रकार से संतुलन पर हमारे देश में विशेष जोर दिया गया है ।

सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि हिंदुत्व सबको अपनाता है। विविधताओं में एकता की स्वीकार्यता को हिंदुत्व की पहिचान बताते हुए सरसंघचालक ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना हिंदुत्व की मूल भावना को प्रतिबिंबित करती है। भारत को विविधताओं वाला देश बताते हुए मोहन भागवत ने कहा कि हमारे देश में विविधता को पर्याप्त सम्मान दिया गया है ।

यह विविधता स्वागतेय है परंतु हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विविधता समाज में कभी भेदभाव का आधार न बन सके। हमारी दर्शन में ऊंच नीच और भेदभाव के कोई स्थान नहीं है । यह सब हमारे दर्शन के विपरीत है। भागवत ने अपने मंतव्य को और स्पष्ट करते हुए कहा कि सबके प्रति हमारा व्यवहार मन वचन और कर्म से सद्भावनापूर्ण होना चाहिए।

हम लोग अपने घरेलू कामों के लिए जिन लोगों की सेवाएं लेते हैं और जो लोग शारीरिक श्रम करके अपना जीवन यापन करते हैं उनके प्रति हमारे मन में संवेदना होना चाहिए। उनके सुख-दुख की चिंता करना हमारा फ़र्ज़ है। भागवत ने कहा कि हम समाज से बहुत कुछ पाते हैं इसलिए समाज की भलाई के लिए भी अपना समय और धन खर्च करना हमारी कर्तव्य है।

संघ प्रमुख ने अपने इस भाषण में इस बात को भी रेखांकित किया कि जब हम प्रकृति से इतना कुछ प्राप्त करते हैं तो जल संरक्षण और पौधरोपण में भी हमारी रुचि होनी चाहिए । पर्यावरण की चिंता करना हमारी जिम्मेदारी है । संघ प्रमुख ने जीवन में अनुशासन की आवश्यकता पर बल देते हुए कर्तव्य पालन को ही वास्तविक धर्म निरूपित किया । इस गोष्ठी में संघ प्रमुख यह कहना भी बहुत मायने रखता है कि कोई व्यक्ति यदि संघ का विरोधी भी है तो उसे अपने तरीके से राष्ट्र निर्माण में योगदान करना चाहिए ।

उल्लेखनीय है कि दो वर्ष बाद प्रारंभ होने जा रहे संघ के शताब्दी वर्ष को देखते हुए मोहन भागवत के इस चार दिवसीय जबलपुर प्रवास को विशेष महत्व पूर्ण माना जा रहा है । संघ प्रमुख का यह कहना भी अपने भाषण में संघ प्रमुख द्वारा संबोधित इस महत्वपूर्ण गोष्ठी में समाज के सभी वर्गों के गणमान्य नागरिकों को आमंत्रित किया गया था जिनमें नगर के प्रमुख अधिवक्ता, चिकित्सक , एनजीओ, व्यापारी,बैंकर, प्रशासनिक अधिकारी और दिव्यांग श्रेणी के प्रतिनिधि भी शामिल थे ।

मोहन भागवत के इस उद्बोधन ने संस्कार धानी के जनमानस पर अलग छाप छोड़ी । संघ का यह आयोजन संघ प्रमुख मोहन भागवत के चार दिवसीय जबलपुर प्रवास का महत्वपूर्ण हिस्सा था । इस प्रवास में संघ प्रमुख ने संघ के पदाधिकारियों से संवाद किया और उनके परिवार जनों से भी मुलाकात की । अगले दो वर्षों में संघ ने अपने संपर्क का दायरा बढ़ा कर शताब्दी वर्ष तक अपनी शक्ति को दुगना करने का लक्ष्य रखा है ।

2025 में संघ के शताब्दी आयोजन को विशाल पैमाने पर संपूर्ण भव्यता के साथ मनाने के लिए संघ व्यापक तैयारियों में जुटा हुआ है। संघ की योजना अगले दो वर्षों में देश के हर घर तक अपनी पहुंच बनाने की है । लोगों को स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से संघ अपने कार्यकर्ताओं को घर घर भेजने का अभियान भी शुरू कर रहा है।

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