डॉ. सुज्ञान कुमार माहान्ति हुए शिक्षाश्री सम्मान से सम्मानित

Shikshashree Samman : केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल परिसर के सहाचार्य डा. सुज्ञान कुमार माहान्ति जी को संस्कृत शास्त्र में अनुसन्धान एवं नवाचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान हेतु राष्ट्रीय स्तर पर “शिक्षाश्री” सम्मान से सम्मानित किया गया है।

Shikshashree Samman : उज्ज्वल प्रदेश, भोपाल. केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल परिसर के सहाचार्य डा. सुज्ञान कुमार माहान्ति जी को संस्कृत शास्त्र में अनुसन्धान एवं नवाचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान हेतु राष्ट्रीय स्तर पर “शिक्षाश्री” सम्मान से सम्मानित किया गया है। हाल ही में 15 अक्तूबर 2022 को केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित एक समारोह में कुलपति पुरस्कार योजना के अन्तर्गत मानपत्र एवं पचास हजार रुपयों के अनुदान के साथ डा. माहान्ति को यह पुरस्कार दिया गया।

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केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेडी एवं समारोह में मुख्य अतिथि जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो, शान्तिश्री धूलिपुडी पण्डित एवं पतञ्जलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार के कुलपति आचार्य बालकृष्ण जी के करकमलों से भारत के विभिन्न प्रान्तों से आये हुए 100 प्रतिष्ठित संस्कृत विद्वानों की उपस्थिति में यह संस्कृत शास्त्र में अनुसन्धान एवं नवाचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान हेतु डा. सुज्ञान कुमार माहान्ति जी को “शिक्षाश्री” सम्मान प्रदान किया गया।

डा. माहान्ति जी ने हाल ही में उज्जयिनी के सम्राट भर्तृहरि के रचित नीतिशतक के मूल शारदा पाठ की पहली बार खोज करके, देवनागरी लिप्यन्तरण के साथ समालोचनात्मक सम्पादन किया है जो कि एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। डा. महान्ति ने कवि भर्तृहरि रचित वैराग्य शतक के भी मूल शारदा पाठ की खोज कर ली है जिसका समालोचनात्मक सम्पादन शीघ्र ही होगा। सम्राट भर्तृहरि के रचित तीनों शतक काव्यों में से नीतिशतक एवं वैराग्य शतक मानव मूल्यों से अनुस्यूत ऐसी कालजयी रचना हैं जिनकी रचना के दो हजार वर्षों के बाद भी समाज के लिए उपयोगी हैं।

संस्कृत साहित्य के हजारों ग्रन्थ अभी भी अन्धकार में हैं जिन के मूल पाठ का आविष्कार हेतु अनुसन्धान की आवश्यकता है। भरत के नाट्यशास्त्र, शार्ङ्गदेव के संगीतरत्नाकर, नन्दीकेश्वर के अभिनय दर्पण जैसे संस्कृत के महान एवं कालजयी रचनायें हैं जिनके प्रामाणिक मूलपाठ की खोज की आवश्यकता अभी भी है।

संस्कृत के हजारों पाण्डुलिपि ग्रन्थ अभी भी अप्रकाशित हैं जिन के प्रकाशन हेतु एक संगठित योजनावद्ध रीति से अनुसन्धान की महती आवश्यकता है। डा. माहान्ति राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन, नई दिल्ली के तत्त्वावधान में अनेक संकृत पाण्डुलिपि ग्रन्थों के प्रकाशन हेतु परियोजना पर भी कार्य कर रहे हैं।

डा. माहान्ति ने केन्द्र सरकार की योजना “भारतीय ज्ञान परम्परा” में पंजीकृत मेण्टर के रूप में भी कार्य कर रहे हैं, जिन के निर्देशन में अनेक विद्यार्थी भी प्रशिक्षुता (इंटर्नशिप) कार्यक्रम के तहत शोध कर रहे हैं जिन्हें मासिक दस हजार रूपयों की सहायता राशि भी मिलती है।

डा. माहान्ति जी ने बताया कि संस्कृत वाङ्मय के शोध एवं नवाचार के क्षेत्र में सहभगिता हेतु जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली एवं पतञ्जलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार के साथ केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का समझौता ज्ञापन (MOU) पर भी हस्ताक्षर हुआ है, जिस से संस्कृत के शोध के क्षेत्र में अनेक सम्भावनायों के साथ रोजगार के भी नये नये स्रोत खुलेंगे।

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