Silwani News : श्री ब्रह्मचारी जी बोले – संत, भक्त और ब्राह्मण का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए
Silwani News : भागवत कथा के पंचम दिवस की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। श्री श्री 1008 श्री ब्रह्मचारी जी महाराज ने कथा की शुरुआत करते हुये
आदित्य रघुवंशी, उज्जवल प्रदेश, सिलवानी.
Silwani News : झरा परिवार पिपरिया वालों की ओर से चाल रही श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिन श्री ब्रह्मचारी जी ने श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया। कथा के पंचम दिवस पर भक्तों ने महाराज जी के श्रीमुख से कथा का श्रवण किया।
भागवत कथा के पंचम दिवस की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। श्री श्री 1008 श्री ब्रह्मचारी जी महाराज ने कथा की शुरुआत करते हुये कहा हम सभी जिनके द्वारा चलित है जिनके द्वारा रचित है अर्थात जिनके बिना हम कुछ नहीं है आज उन्ही की परम कथा में हम बैठे है और उनकी कथा सुनने का अवसर हमें प्राप्त हुआ है। और अगर वो नहीं होते तो हम लोग भी नहीं होते।
उस परम पूज्य परमात्मा की अनुकम्पा का ये दिव्य दर्शन है। कि पंचम दिवस के कथा क्रम में दशम स्कन्द के विशेष जो की भागवत का प्राण है। भागवत का प्राण क्यों है क्योंकि इसमें भगवान श्री कृष्ण के बाल लीलाओं के विशेषता का वर्णन किया गया।
भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का श्रवण, गायन दोनों ही जैसे एक चुम्बक, चुम्बक जैसे लोहे को अपनी तरफ खींचती है। वैसे भगवान की बाल लीलाएं श्रवण करने वाले का मन भगवान श्री कृष्ण पूर्ण युगेश्वर के शरणागति हो जाता है। चुम्बक की तरह खींचा हुआ चला जाता है। और वो भाग्यशाली है जिन्होंने अपने जीवन का धेव भगवान श्री कृष्ण के बाल चरित्रों को श्रवण करने का बना रखा है।
महाराज श्री ने आगे कहा कि शास्त्रों में, पुराणो में, रामायण में हर जगह पर मानव जीवन की विशेष बाते लिखी है की मानव जैसा जीवन किसी ओर का नहीं है। जब भगवान मानव जीवन देते हैं इसका मतलब है भगवान तुम्हे मुक्ति प्राप्त करने का, ईश्वर को प्राप्त करने का अवसर देते हैं।
अगर तुम मानव जीवन में आ गए हो तो भगवान ने कह दिया है की मैं तुमसे मिलने के लिए तैयार हूं लेकिन ये तुम्हारे कर्मों पर निर्भर करता है की तुम अच्छे मानव बन पाए, भक्त बन पाए तो तुम मुझसे मिलने के अधिकारी हो जाओगे। कथा में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने कृष्ण बाल लीला का रसपान का अमृत श्रवण किया।