महाराणा प्रताप के खास राणा पूंजा को भील बोलने पर पूर्व राजपरिवार ने जताई आपत्ति, कहा- वह सोलंकी राजवंश के राणा और भीलों के सरदार थे

उदयपुर
इस वक्त राजस्थान के डूंगरपुर जिले में राणा पूंजा की प्रतिमा लगाने को लेकर जिला प्रशासन और भारतीय ट्राइबल पार्टी के बीच विवाद चल रहा है। नगर परिषद ने मूर्ति स्थापना में देरी की तो बीटीपी ने राणा पूंजा की प्रतिमा को एक चौराहे पर स्थापित कर दिया। इसके बाद नगर परिषद की ओर से दूसरे चौराहे पर राणा पूंजा की प्रतिमा लगाकर लोकार्पण समारोह किया गया। इस विवाद के बीच राणा पूंजा को भील योद्धा कहने पर पानरवा पूर्व राजपरिवार के सदस्य मनोहर सिंह सोलंकी ने आपत्ति दर्ज करवाई है।

महाराणा प्रताप के साथ हल्दीघाटी युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले राणा पूंजा को भील संबोधित करने पर आपत्ति जताते हुए मनोहर सिंह सोलंकी ने संभागीय आयुक्त राजेंद्र भट्ट और डूंगरपुर कलेक्टर को लिखित में शिकायत दर्ज करवाई है। उन्होंने बताया कि वे खुद राणा पूंजा की सोलहवीं पीढ़ी के वंशज हैं। उनका दावा है कि सोलंकी राजवंश के राणा पूंजा भीलों के सरदार थे, लेकिन इतिहास के तथ्य से परे उन्हें बार बार भील जाति से जोड़ा जाता है।

लिखित आपत्ति में सोलंकी ने यह कहा
सोलंकी ने दी लिखित आपत्ति में बताया कि ऐसी घटनाएं दो जातियों के बीच परस्पर सामाजिक सौहार्द्र को बिगाड़ने की कोशिश हैं। दस्तावेज के साथ दावा किया है कि महाराणा उदय सिंह का विवाह सम्बंध पानरवा के राणा हरपाल की बहन रतनबाई सोलंकिणी से रहा। महाराणा भूपाल सिंह के समय सर सुखदेप ने उल्लेखित मेवाड़ के गजट 1935 में भी पानरवा के शासकों को सोलंकी राजपूत व पदवी राणा बताया है। पहले भी राष्ट्रपति केआर नारायण की ओर से प्रस्तावित अनावरण कार्यक्रम का महाराणा महेंद्र सिंह मेवाड़ व बलवंत सिंह मेहता ने भी भील बताने का विरोध किया था। इसके चलते कार्यक्रम निरस्त हुआ था। पानरवा के कृष्णा सोलंकी और हनुमान सिंह, ओड़ा गांव के पर्वत सिंह और कुशाल सिंह, आदिवास के प्रेमसिंह और नेपाल सिंह सोलंकी, जेखड़ा के महेंद्र सिंह सारंगदेवात ने भी विरोध दर्ज कराया।

 

Deepak Vishwakarma

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