Parakram Diwas: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती पर जाने रोचक तथ्य
भारत सरकार का यह निर्णय नेताजी के सम्मान और देश की स्वतंत्रता में उनके संघर्षों को याद रखने के लिए लिया गया है। इस साल भारत सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती मना रहा है। सुभाष चंद्र बोस एक वीर सैनिक, योद्धा, महान सेनापति और कुशल राजनीतिज्ञ थे।
Subhash Chandra Bose Jayanti 2023 : भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती हर साल 23 जनवरी को मनाई जाती है। इस साल भारत सरकार ने गणतंत्र दिवस का पर्व 24 जनवरी के बजाए 23 जनवरी से मनाने का फैसला लिया है। अब से हर साल सुभाष चंद्र बोस की जयंती से गणतंत्र दिवस पर्व का आगाज होगा।
भारत सरकार का यह निर्णय नेताजी के सम्मान और देश की स्वतंत्रता में उनके संघर्षों को याद रखने के लिए लिया गया है। इस साल भारत सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती मना रहा है। सुभाष चंद्र बोस एक वीर सैनिक, योद्धा, महान सेनापति और कुशल राजनीतिज्ञ थे।
उन्होंने देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए आजाद हिंद फौज के गठन से लेकर हर भारतीय को आजादी का महत्व समझाने तक हर काम को किया। वह केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के लिए प्रेरणा हैं। ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ ये वह नारा है जिसने हर भारतवासी के खून को गरम कर दिया। अंग्रेजों से लड़ने के लिए एक ऐसी ताकत दी, जिसे हम देशभक्ति का नाम दे सकते हैं। लेकिन भारत के इस महान नेता के बारे में आप कितना जानते हैं?
गौरतलब है कि राजनेता और बुद्धिजीवी नेताजी (Netaji) को भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में उनके खास योगदान के लिए जाना जाता है. नेताजी के जन्मदिवस को ‘पराक्रम दिवस’ (Parakram Diwas) के रूप में भी मनाया जाता है.
दरअसल, भारत सरकार ने नेता जी की 125वीं जयंती यानी 23 जनवरी 2021 को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया था. इस साल गणतंत्र दिवस समारोह में सुभाष चंद्र बोस की जयंती को भी शामिल किया जाएगा यानी अब रिपब्लिक डे का समारोह 24 जनवरी के बजाय हर साल 23 जनवरी से शुरू होगा.
सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी से जुड़ी अहम बातें
- सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) के पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती दत्त बोस था.
- वे स्वामी विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे.
- उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया था, जो अंग्रेजों का मुकाबला करने के लिए बनाई गया एक सैन्य रेजिमेंट था.
- बोस ने आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के साथ एक महिला बटालियन भी गठित की थी, जिसमें उन्होंने रानी झांसी रेजिमेंट का गठन किया था.
- महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को राष्ट्रपिता की उपाधि सबसे पहले बोस ने ही दी थी. जानकारी के अनुसार उन्होंने साल 1944 में रेडियो पर गांधी जी को राष्ट्रपिता कहा था.
- नेताजी ने लाखों युवाओं को आजादी के संघर्ष में शामिल होने के लिए प्रेरित किया था.
- नेताजी ने मैट्रिक परीक्षा में दूसरा और भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) परीक्षा में चौथा स्थान हासिल किया. उन्होंने अपनी ICS की नौकरी छोड़ दी और साल 1921 में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए इंग्लैंड से भारत वापस आ गए थे.
- जानकारी के मुताबिक नेताजी ने कहा था कि स्वतंत्रता पाने के लिए के लिए, अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ना जरूरी है.
- स्वाधीनता संग्राम के लगभग अंतिम 2 दशकों के दौरान उनकी भूमिका एक सामाजिक क्रांतिकारी की रही थी.
- सुभाष चन्द्र बोस ने अहिंसा और असहयोग आंदोलनों से प्रभावित होकर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में अहम भूमिका निभाई.
- स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) की सराहना हर तरफ हुई. देखते ही देखते वह एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गए.
- ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा..’ ये उनका बहुचर्चित स्लोगन है.
- जानकारी के लिए बता दें कि नरेंद्र मोदी सरकार ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह के तीन द्वीपों में से एक रॉस द्वीप का नाम बदलकर सुभाष चंद्र बोस द्वीप कर दिया.
सुभाष चंद्र बोस का बचपन और शिक्षा
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा राज्य के कटक में एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। सुभाष चंद्र बोस के 7 भाई और 6 बहनें थीं। अपने माता-पिता के 14 बच्चों में वह 9 वीं संतान थे। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती देवी था। सुभाष चंद्र बोस ने अपनी शुरुआती शिक्षा कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल से पूरी की।
आगे की पढ़ाई के लिए 1913 में कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। यहां से साल 1915 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। उनके माता पिता चाहते थे कि सुभाष चंद्र बोस भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाएं। सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए उन्हें इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय भेजा गया था।
नेताजी और द्वितीय विश्व युद्ध
साल 1938 में सुभाष चंद्र बोस को राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष भी निर्वाचित किया गया। उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। एक साल बाद 1939 के कांग्रेस अधिवेशन में गांधी जी के समर्थन से खड़े पट्टाभि सीतारमैया को नेताजी ने हरा दिया। इसके बाद गांधी जी और बोस के बीच की अनबन बढ़ गई तो नेताजी ने खुद से कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। उन दिनों दूसरा विश्व युद्ध हो रहा था। नेताजी ने अंग्रेजो के खिलाफ अपनी मुहिम तेज कर दी। जिसके कारण उन्हे घर पर ही नजरबंद कर दिया गया।
आजाद हिंद फौज का गठन
देश की आजादी के लिए सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार की स्थापना की और आजाद हिंद फौज का गठन किया। साथ ही उन्होंने आजाद हिंद बैंक की भी स्थापना की। दुनिया के दस देशों ने उनकी सरकार, फौज और बैंक को अपना समर्थन दिया था। इन दस देशों में बर्मा, क्रोसिया, जर्मनी, नानकिंग (वर्तमान चीन), इटली, थाईलैंड, मंचूको, फिलीपींस और आयरलैंड का नाम शामिल हैं। इन देशों ने आजाद हिंद बैंक की करेंसी को भी मान्यता दी थी। फौज के गठन के बाद नेताजी सबसे पहले बर्मा पहुंचे, जो अब म्यांमार हो चुका है। यहां पर उन्होंने नारा दिया था, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’। देश आजादी की ओर था।
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