सत्ताइसवां दिन: रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, पाठ करने से पहले रखें इन बातों का ध्यान

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 9 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आज से आपके लिए लेकर आ रही हैं। आज से हम आपके लिए रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 9 चौपाई लेकर आते रहेंगे। आज से नववर्ष की शुरुआत हो रही हैं। इसलिए उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।

श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ

आज श्रीरामचरित मानस की 9 चौपाईयां | Today 9 Chaupais of Ramcharit Manas

दोहा
सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि।
तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि॥36॥

भावार्थ: इसमें जो अत्यन्त शोभायमान चार संवाद रखे गये हैं, वही इस पवित्र सुन्दर सरोवर के बकर ऐसे घाट हैं जो सहसा ही मन को लुभा लेते हैं, ‘चारि मनोहर घाट’ यह हैं-1. शिव- रार्वती-संवाद, 2. काकभुशुण्डि गरुड़-संवाद, 3. याज्ञवल्क्य-भरद्वाज-संवाद, 4. गोस्वामी तुलसीदास और श्रोताओं अथवा तुलसीदासजी और श्रीगुरु महाराज का संवाद है।। 36 ।।

चौपाई
सप्त प्रबंध सुभग सोपाना। ग्यान नयन निरखत मन माना॥
रघुपति महिमा अगुन अबाधा। बरनब सोइ बर बारि अगाधा॥1॥

भावार्थ: इसमें जो ‘सप्त प्रबन्ध’ सात कांड हैं, वही ‘सात सोपान’ सात सीढ़ियाँ हैं, जिन्हें ज्ञानचक्षु से देखने पर मन को शान्ति प्राप्त होती है। इसमें जो श्रीरामचन्द्रजी की तीनों गुणों से परे बाधारहित महिमा है, वही इस श्रेष्ठ जल की गहराई है, अब मैं उसी का वर्णन करता हूँ।

राम सीय जस सलिल सुधासम। उपमा बीचि बिलास मनोरम॥
पुरइनि सघन चारु चौपाई। जुगुति मंजु मनि सीप सुहाई॥2॥

भावार्थ: देखो, इसमें जो श्रीरामचन्द्रजी के यश का वर्णन है, वही अमृतरूपी सुन्दर जल है और उसके बीच में जो उपमाएँ आयेंगी वे ही उस जल की सुन्दर तरङ्गों का विलास हैं। इसमें जो सुन्दर चौपाइयों हैं वही इस मानसरोवर में सघन पुरइन (कमलिनी) के रूप में हैं और उसमें कवि की युक्ति को ही सुहावनी मोती के समान समझना चाहिये। अथवा जैसे सीपियों में मोती की सुहावनी इसक विद्यमान रहती है, वैसे ही इसकी चौपाइयों को स्वाभाविक गुणों से पूर्ण जानना चाहिये और-

छंद सोरठा सुंदर दोहा । सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा॥
अरथ अनूप सुभाव सुभासा। सोइ पराग मकरंद सुबासा॥3॥

भावार्थ: इसमें जो छन्द, सोरठे और दोहे हैं; वे ही इस मानसरोवर में खिले हुए अनेक रंगों के सुहावने कमल हैं। जिनके अर्थ अनुपम स्वाभाविक और सुन्दर भाषाओं से युक्त हैं, वही इन छन्द आदि कमलों पर पड़ी हुई पुष्परज के समान सुगन्धित धूल है।

सुकृत पुंज मंजुल अलि माला। ग्यान बिराग बिचार मराला॥
धुनि अवरेब कबित गुन जाती। मीन मनोहर ते बहुभाँती॥4॥

भावार्थ: उस पर पुण्यरूपी भौरों की कतार सर्वदा ही विचरा करती है और उसमें सम्मिलित जो ज्ञान और वैराग्य के विचार हैं, वे ही हंस के समान हैं, कविता के जो चार भेद होते हैं-ध्वनि, अवरेब, गुण और जाति वही इस राम-चरित मानस की अनेक प्रकार की सुन्दर मछलियाँ हैं, जिन्हें देखते ही मन मोहित हो जाता है।

अरथ धरम कामादिक चारी। कहब ग्यान बिग्यान बिचारी॥
नव रस जप तप जोग बिरागा। ते सब जलचर चारु तड़ागा॥5॥

भावार्थ: इसमें जो अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष का वर्णन ज्ञान-विज्ञान के विचारों से किया जा रहा है और जो शृङ्गार, वीर, रौद्र, वीभत्स आदि कविता के नौ रस हैं तथा जप, तप, योग और वैराग्य आदि का जो वर्णन है, वही इस मानसरोवर के सुन्दर जलचर जीव हैं।

सुकृती साधु नाम गुन गाना। ते बिचित्र जलबिहग समाना॥
संतसभा चहुँ दिसि अवँराई। श्रद्धा रितु बसंत सम गाई॥6॥

भावार्थ: इसमें वे पुण्यात्मा-जन जो सर्वदा ही श्रीरामचन्द्रजी के नाम का यशोगान किया करते हैं, उनको विचित्र जल-पक्षी का स्थान प्राप्त है और उन सन्तों की सभा ही इस सरोवर के चारों ओर सुन्दर अमराई (बगीचे) के समान है और उनकी जो श्रद्धा है, वही सुन्दर बसन्त ऋतु है।

भगति निरूपन बिबिध बिधाना। छमा दया दम लता बिताना॥
सम जम नियम फूल फल ग्याना। हरि पद रति रस बेद बखाना॥7॥

वे सन्तजन जो अनेक प्रकार से भाव भक्ति का निरूपण अर्थात् भक्ति का सविस्तार वर्णन करते रहते हैं, वह चर्चा ही क्षमा, दम और दयामयी शाखाओं से युक्त इस रामचरित मानस पर लता बेलि के समान फैली हुई है। इसमें संयम-नियम फूल और ज्ञान फल है, भगवान् के चरणों में वही प्रेम, रस है जिसका वेद ने बखान किया है।

औरउ कथा अनेक प्रसंगा। तेइ सुक पिक बहुबरन बिहंगा॥8॥

भावार्थ: यही नहीं, और भी जो इसमें अनेक प्रकार की कथाएँ एवं प्रसंग वर्णन किये गये हैं, रंग-बिरंगे शुक (सुग्गा) और कोयल आदि पक्षी के रूप में हैं।

Also Read: Hanuman Ji Mangal Vrat: मंगलवार के व्रत वालों को जान लेनी चाहिए ये जरूरी बातें

श्रीरामचरित मानस कितने कांडों में विभक्त हैं?

  • श्रीरामचरितमानस को पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं इस प्रकार हैं।
  • बालकाण्ड: रामचरितमानस का आरंभ बालकांड से होता है। इस कांड में श्री राम के जन्म और बाल्यकाल की कथा वर्णित है। शंकर-पार्वती का विवाह भी इसकी अन्य प्रमुख घटना है। इसमें कुल 361 दोहे हैं। बालकांड रामचरितमानस का सबसे बड़ा काण्ड है।
  • अयोध्याकाण्ड: अयोध्या की कथा का वर्णन अयोध्या काण्ड के अंतर्गत हुआ है। राम का राज्याभिषेक, कैकेयी का कोपभवन जाना और वरदान के रूप में राजा दशरथ से भरत के लिए राजगद्दी और राम को वनवास माँगना और दशरथ के प्राण छूटना आदि घटनाएँ प्रमुख हैं। इस कांड में 326 दोहे हैं।
  • अरण्यकाण्ड: राम का सीता लक्ष्मण सहित वन-गमन मारीचि-वध और सीता-हरण की कथा का वर्णन अरण्यकांड में हुआ है। इसमें 46 दोहे हैं।
  • किष्किन्धाकाण्ड: राम का सीता को खोजते हुए किष्किंधा पर्वत पर आना, श्री हनुमानजी का मिलना, सुग्रीव से मित्रता और बालि का वध इत्यादि घटनाएँ किष्किंधा काण्ड में वर्णित हैं। इसमें 30 दोहे हैं। किष्किंधाकांड रामचरितमानस का सबसे छोटा काण्ड है।
  • सुन्दरकाण्ड: सुंदरकांड का रामायण में विशेष महत्व है। इस कांड में सीता की खोज में हनुमानजी का समुद्र लाँघ कर लंका को जाना, सीताजी से मिलना और लंकादहन की कथा का वर्णन है।अशोक वाटिका सुंदर पर्वत के परिक्षेत्र में थी जहाँ हनुमानजी की सीताजी से भेंट होती है। इसलिए इस काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड है। सुंदरकांड सब प्रकार से सुंदर है। इसके पाठ का विशेष पुण्य है और इससे हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसमें कुल 60 दोहे हैं।
  • लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड): सेतुबंध करते हुए राम का अपनी वानरी सेना के साथ लंका को प्रस्थान, रावण-वध और फिर सीता को लेकर लौटना यह सब कथा लंकाकाण्ड के अंतर्गत आती है। इसमें कुल 121 दोहे हैं।वाल्मीकीय रामायण में लंकाकांड का नाम युद्धकांड है।
  • उत्तरकाण्ड: जीवनोपयोगी प्रश्नों के उत्तर इस उत्तरकाण्ड में मिलते हैं। इसका काकभुशुण्डि-गरुड़ संवाद विशेष है। इस कांड में 130 दोहे हैं। इसमें श्रीराम का चौदह वर्ष के वनवास के उपरांत परिवार वालों और अवधवासियों से पुनः मिलने का प्रसंग बहुत मार्मिक है।उत्तरकांड के साथ ही रामचरितमानस का समापन हो जाता है।

Also Read: साल 2025 के लिए Dhirendra Krishna Shastri की चौकाने वाली भविष्यवाणी, वीडियो वायरल

श्रीरामचरित मानस का पाठ करने से पहले रखें इस बात का ध्यान

श्री रामचरितमानस (Shri Ramcharit Manas) का पाठ करने से पहले हमें श्री तुलसीदासजी, श्री वाल्मीकिजी, श्री शिवजी तथा श्रीहनुमानजी का आह्नान करना चाहिए तथा पूजन करने के बाद तीनो भाइयों सहित श्री सीतारामजी का आह्नान, षोडशोपचार ( अर्थात सोलह वस्तुओं का अर्पण करते हुए पूजन करना चाहिए लेकिन नित्य प्रति का पूजन पंचोपचार गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से संपन्न किया जा सकता है ) पूजन और ध्यान करना चाहिये। उसके उपरांत ही पाठ का आरम्भ करना चाहिये।

Grahan 2025: इस साल 4 ग्रहण, कब लगेगा पहला सूर्य और चंद्र ग्रहण? जानें सूतक काल…

Deepak Vishwakarma

दीपक विश्वकर्मा एक अनुभवी समाचार संपादक और लेखक हैं, जिनके पास 13 वर्षों का गहरा अनुभव है। उन्होंने पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं में कार्य किया है, जिसमें समाचार लेखन, संपादन… More »

Related Articles

Back to top button