क्या आप जानते हैं Double Death Penalty, क्या कहता है भारतीय कानून
Double Death Penalty: सभी के मन में सवाल जरूर आता है कि दोहरी मौत की सजा है क्या? जब किसी व्यक्ति को एक बार फांसी की सजा दे दी गई, तो उसे दूसरी बार फांसी की सजा कैसे दी जा सकती है?

Double Death Penalty: उज्जवल प्रदेश डेस्क. भारतीय कानून व्यवस्था में कभी-कभी कुछ मामलों में दोहरी मौत की सजा का आदेश कोर्ट देती है। सभी के मन में सवाल जरूर आता है कि दोहरी मौत की सजा है क्या? जब किसी व्यक्ति को एक बार फांसी की सजा दे दी गई, तो उसे दूसरी बार फांसी की सजा कैसे दी जा सकती है? आखिरकार दोहरी मौत की सजा में होता क्या है और इस सजा में दोषी को कैसे सजा दी जाती है, कैसे सजा दी जाती है? आइए जानते हैं…
क्यों चर्चा में आई दोहरी मौत की सजा
एक अदालत ने गुजरात के आनंद जिले की एक मासूम बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के जघन्य मामले में दोषी को ‘दोहरी मौत की सजा’ सुनाकर देशभर में सनसनी फैला दी। इस अभूतपूर्व फैसले ने आम लोगों के मन में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल है आखिर ‘दोहरी मौत की सजा’ क्या है, यह किन परिस्थितियों में दी जाती है और इसका वास्तविक अर्थ क्या है?
दोहरी मौत की सजा आखिर है क्या
मीडिया न्यूज एजेंसी ने सुप्रीम कोर्ट के वकील नीरज कुमार से खास बातचीत की। नीरज कुमार ने इस सजा के कानूनी और सामाजिक पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। नीरज कुमार ने बताया कि इस केस में दी गई दोहरी मौत की सजा का तात्पर्य यह है कि अगर आरोपी को किसी एक मामले में राहत मिल जाती है, तब भी उसे दूसरे मामले में मौत की सजा मिलेगी।
असल में इस केस में एक मामला पोक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस) एक्ट के तहत और दूसरा आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 376 (बलात्कार) और 302 (हत्या) के अंतर्गत है। जब इन दोनों धाराओं में अपराध ‘रेयर ऑफ द रेयरेस्ट’ (दुर्लभ में दुर्लभतम) की श्रेणी में आता है और अदालत में अपराध साबित हो जाता है, तब कोर्ट दोनों ही मामलों में मौत की सजा सुना सकती है।
BNS की किस-किस धारा के तहत मिलती है मौत की सजा
किस धारा के तहत मौत की सजा | अपराध की प्रकृति |
बीएनएस की धारा 65(2) | 12 वर्ष से कम आयु की बच्ची का बलात्कार |
बीएनएस की धारा 66 | बलात्कार और चोट जो किसी महिला या पुरुष की मृत्यु का कारण बनती है या उसे लगातार वनस्पति अवस्था में छोड़ देती है |
बीएनएस की धारा 70(2) | 18 वर्ष से कम आयु की बच्ची का सामूहिक बलात्कार |
बीएनएस की धारा 71 | बलात्कार के संदर्भ में बार-बार अपराध करना |
बीएनएस की धारा 103(1) | हत्या |
बीएनएस की धारा 103(2) | हत्या |
बीएनएस की धारा 104 | आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदी द्वारा हत्या |
बीएनएस की धारा 107 | बच्चे या अस्वस्थ्य व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाना |
बीएनएस की धारा 109(2) | आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदी द्वारा हत्या का प्रयास |
बीएनएस की धारा 111(2)(ए) | संगठित अपराध के कारण मृत्यु |
बीएनएस की धारा 113(2)(ए) | आतंकवाद जिसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो |
बीएनएस की धारा 140(2) | हत्या या फिरौती के लिए अपहरण या अपहरण |
बीएनएस की धारा 147 | भारत सरकार के विरुद्ध राजद्रोह |
बीएनएस की धारा 160 | विद्रोह को बढ़ावा देना, यदि परिणामस्वरूप वास्तव में विद्रोह हो जाता है |
बीएनएस की धारा 230(2) | मृत्युदंड योग्य अपराध के लिए दोषसिद्धि प्राप्त करने के इरादे से झूठा साक्ष्य देना या गढ़ना जिसके परिणामस्वरूप निर्दोष व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है |
बीएनएस की धारा 232(2) | किसी व्यक्ति को झूठी गवाही देने के लिए धमकाना जिसके परिणामस्वरूप निर्दोष व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है |
बीएनएस की धारा 310(3) | डकैती या दस्युता करते समय की गई घोर हत्या |
क्या है दोहरी मौत की सजा का उद्देश्य
इस सजा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अगर ऊपरी अदालत (उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय) किसी एक धारा में दोषी को बरी कर भी दे या सबूतों के अभाव में मामला कमजोर पड़ जाए, तो दूसरी धारा के तहत दी गई सजा कायम रहे और अपराधी को सजा से राहत न मिले। जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी तकनीकी या सबूत संबंधी त्रुटि के कारण ऐसा जघन्य अपराध करने वाला व्यक्ति सजा से बच न पाए।
दोहरी मौत की सजा का उदाहरण
वकील नीरज कुमार ने 2004 के चर्चित धनंजय चटर्जी केस का उदाहरण दिया, जिसमें एक 15 वर्षीय किशोरी से बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी को दोहरी मौत की सजा दी गई थी। यह वर्तमान मामले से मिलती-जुलती स्थिति थी। उस समय भी दोनों धाराओं में दोष सिद्ध हुआ था और अदालत ने यह व्यवस्था दी थी कि अपराधी किसी भी हालत में मृत्यूदंड से न बच सके।
कब कोर्ट सुनाता है Double Death Penalty की सजा
अधिवक्ता नीरज कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि ट्रायल कोर्ट आमतौर पर तब भी सजा दे देता है जब आरोपी के खिलाफ 50 से 60 फीसदी तक दलील मजबूत हो। लेकिन, इसके बाद हाईकोर्ट में अपील की जाती है, जहां देखा जाता है कि प्रॉसिक्यूशन का केस कितना मजबूत था और क्या सजा सही तरीके से दी गई है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान मामले में दोषी के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 और 376 के अलावा पोक्सो एक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया था।
दोनों ही मुकदमे अलग-अलग मामलों की तरह थे लेकिन अपराध एक ही व्यक्ति द्वारा किया गया था। क्योंकि पीड़िता नाबालिग थी, इसलिए पोक्सो लागू हुआ और फिर बलात्कार और हत्या की वजह से आईपीसी की धाराएं भी लागू की गईं। इसी वजह से अदालत ने दोनों मामलों में अलग-अलग मौत की सजा सुनाई, जिसे अंग्रेजी में ‘डबल कैपिटल पनिशमेंट’ कहा जाता है।