Astrology Tips: अकाल मृत्यु से बचना है तो करें भगवान महाकाल का जल अभिषेक
Astrology Tips: मान्यता है कि जो भी मनुष्य भगवान महाकाल के दर्शन और जल से अभिषेक कर लेता है उसे अकल मृत्यु का भय नहीं रहता। इसी आस्था और विश्वास को लेकर दुनियाभर से लोग भगवान महाकाल के दर्शन करने हैं।

Astrology Tips: उज्जवल प्रदेश डेस्क. मान्यता है कि जो भी मनुष्य भगवान महाकाल के दर्शन कर लेता है उसे अकल मृत्यु का भय नहीं रहता। इसी आस्था और विश्वास को लेकर दुनियाभर से लोग भगवान महाकाल के दर्शन करने आते हैं। बता दें कि जहां आस्था की बात होती है, वहां पौराणिक मान्यताएं और कथाएं उभर कर सामने आती हैं।
दुर्लभ ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं
दरअसल, झारखंड की राजधानी रांची से 165 किलोमीटर दूर पलामू जिले के रेड़मा चौक के पास भगवती भवन मंदिर है. यहां दक्षिणेश्वर मां काली के साथ द्वादश ज्योतिर्लिंग की प्रतिमूर्ति विराजमान है. इस भवन में भगवान भोलेनाथ के सभी दुर्लभ ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं, जिसमें उज्जैन के महाकाल की मिट्टी लाकर स्थापित की गई है. मान्यता है कि यहां जलाभिषेक करने से श्रद्धालु की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती.
अकाल मृत्यु नहीं होती
पुजारी श्याम कुमार पांडे ने लोकल18 को बताया कि शास्त्रों में द्वादश ज्योतिर्लिंग के बारे में गहनता से वर्णन है. उज्जैन के महाकाल के बारे में कहा गया है कि इनके दर्शन मात्र से किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती. महाकाल ज्योतिर्लिंग की प्रतिमूर्ति पलामू के इस मंदिर में विराजमान है।.उन्होंने बताया कि यहां पिछले 60 साल से द्वादश ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं, जिनके लिए सभी स्थानों की मिट्टी, जल और मंत्र लाकर स्थापित किए गए हैं.
शिवरात्रि पर होती है विशेष पूजा
हर माह की शिवरात्रि पर भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा की जाती है. इस दौरान विधिवत अनुष्ठान से भगवान शिव का विवाह कराया जाता है. इस मौके पर पलामू समेत आस-पास के जिलों से सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं. इस मंदिर की मान्यता है कि यहां मांगी हुई हर मुराद पूरी होती हैं.
इसलिये होती है शिवलिंग की पूजा
विद्यानों की मानें तो शिवलिंग की पूजा के पीछे एक रोचक बात है. शास्त्रों में इसके बारे में बताया गया ह.। शास्त्रों के अनुसार, “विश्वं तृप्तम शिवाय लिंग पूजनम्” अर्थात विश्व के कल्याण और तृप्ति के लिए भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग की पूजा की जाती है.
शिवलिंग का जल से अभिषेक करते रहें
जप शुरू करने से पहले पहले भगवान के समक्ष धूप और दीप जलाएं। जप के दौरान दीप निरंतर जलता रहना चाहिए। उसके बाद मंत्र का जप कितनी बार करना है इसका संकल्प लें। मंत्र को कुशा के आसन पर ही बैठकर करें। यह जप करते समय आपका मुख पूर्व या फिर उत्तर की तरफ ही होना चाहिए। जप करते समय संभव हो तो शिवलिंग का जल से अभिषेक करते रहें।
नोट: हम इन सभी बातों की पुष्टि नहीं करते। अमल करने से पहले संबंधित विषय विशेषज्ञ से संपर्क करें।