बैंक भरेगा ग्राहक के खाते से रकम निकलने पर हर्जाना, 15 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद दिल्ली की कोर्ट ने सुनाया फैसला

नई दिल्ली
एक बुजुर्ग के बैंक खाते से फर्जी चेक के जरिये सात लाख रुपये निकाल लिए गए और बैंक को इसकी भनक तक नहीं लगी। 77 वर्षीय बुजुर्ग ने 15 साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद बैंक की खामी को उजागर किया। इसके बाद अदालत ने बुजुर्ग के हक में फैसला सुनाते हुए सिंडिकेट बैंक (Syndicate Bank) को निर्देश दिया है कि वह 11 लाख 30 हजार 250 रुपये की रकम वापस लौटाए। रोहिणी कोर्ट (Rohini Court) स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विपिन खरब की अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बुजुर्ग वर्ष 2007 में जब सरकारी नौकरी से रिटायर्ड हुए तो सारी रकम इसी खाते में आई थी। बुजुर्ग की मासिक पेंशन इसी खाते में आती है। रिटायरमेंट व पेंशन का पैसा खाते में जमा था जिसे बैंक अधिकारियों के स्तर पर हुई गड़बड़ी के कारण बुजुर्ग को खोना पड़ा। ऐसे में इस रकम के भुगतान की जिम्मेदारी बैंक की है। वह एक महीने के भीतर बुजुर्ग को यह राशि लौटा दें। साथ ही इस राशि पर बुजुर्ग को याचिका दायर करने से लेकर रकम के भुगतान तक 9 फीसदी का ब्याज भी बैंक को देना होगा।

तीन चेकों के माध्यम से निकाली रकम
बुजुर्ग द्वारा दायर याचिका के मुताबिक उनका खाता सिंडिकेट बैंक में था। वर्ष 2007 में उनके खाते में 9 लाख रुपये थे। जिसमें से करीब पौने दो लाख रुपये उन्होंने कुछ मदों में खर्च किए थे। करीब सवा सात लाख रुपये खाते में बचे थे। वह दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग से उच्च श्रेणी क्लर्क के पद से रिटायर हुए थे। 6 जुलाई 2007 को वह बैंक से अपनी पासबुक लेने गए। जब पासबुक को अपडेट कराया तो पता चला कि उनके खाते में कोई रकम नहीं है। तीन चेकों के माध्यम से सारी रकम निकाल ली गई है। बैंक की तरफ से हाथ खड़े करने के बाद बुजुर्ग ने उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटाया। वहां साक्ष्यों को पेश करने की बाध्यता के कारण निर्णय नहीं हो सका। इसके बाद बैंकिंग लोकपाल के पास शिकायत की। उन्होंने मामले को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के महाप्रबंधक के पास भेज दिया, जबकि जांच से पता चल चुका था कि चेक पर किए गए हस्ताक्षर फर्जी हैं।

फर्जी चेक का इस्तेमाल
तीन फर्जी चेकों से यह रकम निकाली गई। बुजुर्ग का कहना है कि उस सीरीज की चेक बुक उनके पस नहीं थी। चेकों पर उनके हस्ताक्षर नहीं पाए गए। बावजूद इसके 15 साल कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी।

 

Deepak Vishwakarma

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