What is Repo Rate: समझिए क्या है SLR rate और ये आप पर कैसे डालता है असर?
क्या आप जानते हैं कि रेपो रेट (Repo Rate), एसएलआर (SLR), सीआरआर (CRR) आदि जैसे शब्दों का क्या अर्थ है और यह कार्य कैसे करते हैं. यदि नहीं तो चलिए हम आपको इन सभी विषयों में एक-एक कर जानकारी देते हैं.
Repo Rate in hindi: भारत में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को कम या अधिक करने के लिए रेपो और रिवर्स रेपो को काम में लेता है. आरबीआई वाण्यिजिक बैंकों को जब उधार देता है तो उसे रेपो दर (repo rate) कहा जाता है. मुद्रास्फीति के समय, आरबीआई रेपो दर को बढ़ा देता है जिससे बैंकों द्वारा धन उधार लेने और अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति कम होने को हतोत्साहित किया जाता है. October 2019 के अनुसार आरबीआई रेपो दर 5.15% कर दिया है.
रेपो रेट क्या होता है (repo rate meaning)
जब किसी व्यक्ति को आर्थिक परेशानी आती है या उसके पास पैसे ख़तम हो जाते है तो वो बैंक से लोन लेता है और उस पैसे को कुछ परसेंट व्याज के साथ बैंक को वापस करना होता है लेकिन इसी प्रकार से बैंको को भी अपने काम काजो के लिये काफी पैसो की आवश्यकता पड़ती है और बैंको को भी Reserve Bank of India से कर्ज लेन पड़ता है इस लोन पर रिज़र्व बैंक को जिस दर पर बैंक ब्याज चूकाते है उसी दर को रेपो रेट कहते है.
Repo rate meaning in hindi
रेपो रेट मीनिंग इन हिंदी- (repo rate full form) रेपो रेट का हिंदी मतलब पुनर्खरीद दर यानि (Repurchase Rate) होता है ये दर बेसिकली वो दर होता है जो कमर्शियल बैंक, पेमेंट बैंक, तथा अन्य बैंक, रिज़र्व बैंक से कर्ज लेकर ब्याज के साथ चुकाने के वाली दर को पुनर्खरीद दर कहते है.
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रिवर्स रेपो रेट क्या है? (reverse repo rate)
रेपो रेट क्या होता है? ये तो समझ गये अब जानते है कि रिवर्स रेपो रेट (reverse repo rate) क्या है रिवर्स रेपो रेट इसका जस्ट उल्टा होता है जब किसी व्यक्ति के पास अपने ज़रुरत से कुछ ज्यादा पैसा आ जाते है तो अपने सेविंग अकाउंट में पैसे को जमा कर देते है सेम इसी प्रकार जब किसी बैंक के पास अपने कामकाज को पूरा करने के बाद उससे बचे पैसे को रिज़र्व बैंक के पास जमा कर देता है ताकि उससे कुछ व्याज कमा सके इसी ब्याज दर को रिवर्स रेपो रेट कहते है.
रिवर्स रेपो रेट बाजार में नगदी के तरलता को कंट्रोल करने में काम आता है जब रिज़र्व बैंक को लगता है कि बाजार में ज्यादा पैसा है रिज़र्व बैंक रेपो रेट बढ़ा देता है ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के चक्कर में अपना पैसा रिज़र्व बैंक में जमा कर दे और बाजार में ज़रूरत भर का पैसा रहे.
सीआरआर क्या है?
CRR ka full form cash reserve ratio (नगद आरक्षित अनुपात) होता है देश भर में लागु बैंकिंग नियमो के तहत हर बैंक को अपने कुल नगदी का एक निश्चित हिस्सा RBI के पास रखना होता है तभी किसी बैंक को पूरी तरह से देश में चलाया जा सकता है सीआरआर का मैन मोतिव है कि हर बैंक का एक निश्चित अनुपात रिज़र्व बैंक के पास जमा होना आवश्यक है.
रेपो रेट (Repo Rate), एसएलआर (SLR), सीआरआर (CRR) आदि जैसे शब्द प्रतियोगी परीक्षा के लिहाज से तो महत्वपूर्ण हैं ही साथ ही हमारी जानकारी के लिए भी उतने ही जरूरी हैं.
1- रेपो रेट (Repo Rate)
आसान शब्दों में अगर बात हो तो रेपो रेट का मतलब है रिजर्व बैंक द्वारा अन्य बैकों को दिए जाने वाले कर्ज की दर. बैंक इस चार्ज से अपने ग्राहकों को लोन प्रदान करता है. रेपो रेट कम होने का अर्थ है कि ग्राहक अब कम दामों में भी होम लोन और व्हीकल लोन जैसे लोन के कर्ज के दर सस्ते हो जाएंगे.
2- रिवर्स रेपो रेट | Reverse Repo Rate (RRR rate)
जैसा कि शब्द से ही अर्थ साफ है, इसका अर्थ उस रेट से है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है. रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी के लिक्विडिटी को नियंत्रित करता है. आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम को उसके पास जमा करा दे.
3- सीआरआर| Cash Reserve Ratio (CRR Rate)
सीआरआर का अर्थ उस धन से है जो हर बैंक अपनी कुल नकदी का कुछ हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखता है.
4 – एसएलआर | Statutory Liquidity Ratio (SLR rate)
नकदी के लिक्विडिटी को कंट्रोल में रखने के लिए एसएलआर का इस्तेमाल किया जाता है. आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बगैर नकदी की लिक्विडिटी कम करना चाहता है तो वह सीआरआर बढ़ा देता है, इससे बैंकों के पास लोन देने के लिए कम रकम बचती है.
रेपो रेट बढ़ने के नुकसान (Disadvantages of increasing repo rate)
अब जानते कि रेपो रेट बढ़ने से क्या नुकसान हो सकता है और किसका नुकसान होता है रेपो रेट बढ़ने से बैंको को बहुत बड़ा फायदा होता है और आम जनता को नुकसान होता है बैंको को कुछ इस प्रकार से फैयदा होता है.
- रेपो रेट बढ़ने से बैंक ज्यादा से ज्यादा पैसो को रिज़र्व बैंक के पास जमा करेगा और वहा से ब्याज कमायेगा इससे बैंको के फायदे होंगे इसीलिये रिज़र्व बैंक रेपो रेट को नियंत्रित रखता है न बहुत ज्यादा न बहुत कम इसलिए कि एक लेबल बना रहे बाजार में भी पैसा रहे और बैंक के पास रहे.
- जब रेपो रेट बढ़ेगा और बैंक अपने पैसे को रिज़र्व बैंक के पास ब्याज कमाने के लिए जमा कर देगा तो उसके पास ज्यादा पैसा बचेगा नहीं तो आम जनता को लोन नहीं देगा लोन नहीं देगा तो बिज़नेस ठप्प हो जायेगा तथा बिज़नेस नहीं चलेगा तो आम लोगो को परेशानी होगी बेसिकली रेपो रेट बढ़ने से आम जनता को ही नुकसान होता है.
रेपो रेट घटने के फायदे (Benefits of reducing repo rate)
रेपो रेट घटने के फायदे आम जनता को ही होता है तथा बैंको को नुकसान होता है इसलिए बैंक हमेशा यही चाहता है कि रेपो रेट बढे और रिज़र्व बैंक में अपने पैसो को जमा करके ज्यादा ब्याज कमा पाये.
- रेपो रेट घटने से बैंक अपने पैसो को बाजार में लगता है जिससे आम जनता को ज्यादा से ज्यादा लोन मिलता है और कोई भी बैंक से लोन लेकर अपना बिज़नेस कर सकता है कार ले सकता है घर ले सकता है पर्सनल लोन लेकर भी काम कर सकते है रेपो रेट घटने से एक प्रकार से आम जानता को फ़ायदा होता है.
- रेपो रेट घटने से बैंक का नुकसान इस प्रकार होता है जब रेपो कम को होता है तो सारे कमर्शियल बैंक अपने ज्यादा से ज्यादा पैसो को निकालकर अपने कामकाज में लगाते तथा कुछ पैसो को शेयर मार्केट और कुछ पैसो को म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश भी करते है लेकिन ऐसे में कोई खास बैंक का मुनाफा नहीं हो पाता है.
- रेपो रेट से आम आदमी पर क्या पड़ता है प्रभाव
- जब बैंकों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होगा यानी रेपो रेट कम होगा तो वो भी अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे सकते हैं. और यदि रिजर्व बैंकरेपो रेट बढ़ाएगा तो बैंकों के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा और वे अपने ग्राहकों के लिए कर्ज महंगा कर देंगे.
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एमएसएफ मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी (एमएसएफ) उपयोग आरबीआई इसलिए करता है ताकि बाजार में पर्याप्त लिक्विडिटी बनी रहे. एमएसएफ के तहत कोई कामर्शियल बैंक एक रात के लिए अपने कुल जमा का 1 फीसदी राशि तक का लोन ले सकते हैं.
एसएलआर स्टेचुटरी लिक्विडिटी रेशियो (एसएलआर) या एक सरकारी टर्म है. सभी वाणिज्यिक बैंकों को इसे पूरा करना होता है. रिजर्व बैंक एसएलआर के जरिए यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी बैंक आम जनता या कारपोरेट जगत को क्रेडिट देने से पहले कैश, गोल्ड रिजर्व, पीएसयू बांड्स और रिजर्व बैंक से अप्रूव्ड सिक्योरिटी में कितनी राशि रखेंगे. इससे बाजार में मुद्रा के प्रवाह पर नियंत्रण रखा जाता है.
जानिए क्या होता है नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio/CRR)
बैंकिंग नियमों के तहत हर बैंक को अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है, जिसे कैश रिजर्व रेश्यो अथवा नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) कहा जाता है. यह नियम इसलिए बनाए गए हैं, ताकि यदि किसी भी वक्त किसी भी बैंक में बहुत बड़ी तादाद में जमाकर्ताओं को रकम निकालने की जरूरत पड़े तो बैंक पैसा चुकाने से मना न कर सके.
आम आदमी पर CRR का ऐसे पड़ता है प्रभाव
अगर सीआरआर बढ़ता है तो बैंकों को ज्यादा बड़ा हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होगा और उनके पास कर्ज के रूप में देने के लिए कम रकम रह जाएगी. यानी आम आदमी को कर्ज देने के लिए बैंकों के पास पैसा कम होगा. अगर रिजर्व बैंक सीआरआर को घटाता है तो बाजार नकदी का प्रवाह बढ़ जाता है.
क्या है एसएलआर (Statutory liquidity ratio/वैधानिक तरलता अनुपात)
जिस रेट (Rate) पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते हैं, उसे एसएलआर कहते हैं. नकदी को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है, जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है.
आरबीआई ने पहली बार वित्त वर्ष 2011-12 में सालाना मॉनेटरी पॉलिसी रिव्यू में एमएसएफ का जिक्र किया था और यह कॉन्सेप्ट 9 मई 2011 को लागू हुआ. इसमें सभी शेड्यूल कमर्शियल बैंक एक रात के लिए अपने कुल जमा का 1 फीसद तक लोन ले सकते हैं. बैंकों को यह सुविधा शनिवार को अलावे हरेक वर्किंग डे में मिलती है.
ऐसे हैं देश में महंगाई के हालात (inflationary conditions)
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2022 में खुदरा महंगाई (Retail Inflation) की दर 7.8 फीसदी रही थी, जो मई 2014 के बाद सबसे ज्यादा है. इसी तरह अप्रैल 2022 में थोक महंगाई (Wholesale Inflation) की दर बढ़कर 15.08 फीसदी पर पहुंच गई थी, जो दिसंबर 1998 के बाद सबसे ज्यादा है. अप्रैल महीने में रिकॉर्ड महंगाई के लिए फूड एंड फ्यूल इंफ्लेशन जिम्मेदार रहे थे.
फूड इंफ्लेशन की बात करें तो यह मार्च के 7.68 फीसदी की तुलना में उछलकर अप्रैल में 8.38 फीसदी पर पहुंच गई थी. अभी मई महीने की महंगाई के आंकड़े जारी नहीं हुए हैं. हालांकि बीते दिनों टमाटर के भाव जिस तरह से बढ़े हैं, महंगाई की दर तेज ही रहने के अनुमान हैं. दूसरी ओर सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर टैक्स कम (Diesel Petrol Duty Cut) करने, क्रूड सोयाबीन और सनफ्लॉवर ऑयल पर आयात शुल्क हटाने और विमानन ईंधन (ATF) की कीमत नीचे लाने जैसे उपाय किए हैं. इन प्रयासों से महंगाई कुछ कम हो सकती है.