CJI गवई की दोटूक- कोटे में कोटा से ‘पिछड़ों’ को मिलेगा न्याय
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CJI: उज्जवल प्रदेश, नई दिल्ली. देश में इन दिनों जाति जनगणना, आरक्षण और कोटे में कोटा जैसी चीजों पर बहस तेज है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने दलित कोटे में उपवर्गीकरण को सही करार दिया था और उसके आधार पर कई राज्यों ने आरक्षण की नीति तय की है। चीफ जस्टिस (CJI) बीआर गवई (Gavai) ने ‘कोटे में कोटा’ (Quota Within Quota) को दोटूक (Frank) शब्दों में सही करार दिया है।
उनका कहना है कि कोटे में काेटा आरक्षण की नीति पर हमला नहीं है, बल्कि यह उन वर्गों के लिए न्याय (Justicefull) होगा, जो अब तक पिछड़े (Backward) हैं। उन तक अब भी न्याय नहीं पहुंच सका है। लंदन में ऑक्सफोर्ड यूनियन में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जस्टिस बीआर गवई ने यह अहम टिप्पणी की। चीफ जस्टिस ने कहा-‘अनुसूचित जाति वर्ग में उपवर्गीकरण आरक्षण पर किसी तरह का सवाल नहीं है। यह तय करता है कि उन लोगों को न्याय मिले, जो ऐतिहासिक रूप से पिछड़े हुए हैं। खासतौर पर उन वर्गों के भीतर जो पिछड़े हुए हैं, जिन्हें आरक्षण मिल रहा है।’
उन्होंने कहा कि भारत का संविधान तो एक सामाजिक दस्तावेज है। वह हमेशा सामाजिक न्याय की बात करता है। जस्टिस गवई ने कहा कि हमारा संविधान देश में गरीबी, जातिगत भेदभाव, अन्याय से अपना मुंह नहीं मोड़ता। हमारा संविधान भेदभाव को दूर करने की बात करता है और उसके लिए प्रयास भी उसके तहत होते हैं। जस्टिस गवई ने कहा कि हमारा संविधान सभी की गरिमा को बनाए रखने की बात करता है।
बता दें कि बीते साल ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि अनुसूचित जाति को मिलने वाले आरक्षण में भी जातियों के आधार पर वर्गीकरण किया जा सकता है। बेंच का कहना था कि अनुसूचित जातिवर्ग एकरूपता वाला नहीं है। इस वर्ग की अलग-अलग जातियों में भी सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से काफी अंतर हैं। ऐसे में सभी को समान अवसर देने के लिए उपवर्गीकरण करने में कुछ भी गलत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद से अब तक हरियाणा और ओडिशा जैसे राज्यों में एससी कोटे का उपवर्गीकरण किया जा चुका है। बेंच का कहना था कि अनुसूचित जाति वर्ग में भी काफी अंतर है। इसलिए सभी को समानता के तहत अधिकार मिलना चाहिए। बता दें कि तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में 7 जजों की बेंच ने 6-1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया था।
अदालत ने इसके साथ ही 2004 में आए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि दलित समुदाय एकरूपता वाला है और उसमें भी जातीय आधार पर अंतर है। इसलिए कोटे के अंदर कोटा दिया जा सकता है।