बारहवां दिन: रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, पाठ करने से पहले रखें इन बातों का ध्यान

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 13 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आज से आपके लिए लेकर आ रही हैं। आज से हम आपके लिए रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 13 चौपाई लेकर आते रहेंगे। आज से नववर्ष की शुरुआत हो रही हैं। इसलिए उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।

श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ

आज श्रीरामचरित मानस की 13 चौपाईयां | Today 13 Chaupais of Ramcharit Manas

चौपाई
एहि प्रकार बल मनहि देखाई। करिहउँ रघुपति कथा सुहाई॥
ब्यास आदि कबि पुंगव नाना। जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना॥1॥

भावार्थ: इसी प्रकार के बल से मन को दृढ़ करके श्रीरघुनाथजी की सुहावनी कथा कहूँगा। व्यास आदि जो अनेक कवीश्वर हो गये हैं, जिन्होंने आदर से भगवान् का चरित्र कहा है॥1॥

चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे। पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे॥
कलि के कबिन्ह करउँ परनामा। जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा॥2॥

भावार्थ: मैं उनके चरण-कमलों की वन्दना करता हूँ, कि मेरे सब मनोरथ पूर्ण करें। कलियुग के कवियों को भी प्रणाम करता हूँ, जिन्होंने श्रीरघुनाथजी के अनेक गुणों का वर्णन किया है॥2॥

जे प्राकृत कबि परम सयाने। भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने॥
भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें। प्रनवउँ सबहि कपट सब त्यागें॥3॥

भावार्थ: और जो स्वाभाविक कवि चतुर हैं, जिन्होंने भाषा में भगवान् के चरित्र का गान किया है। ऐसे जो थे, वर्तमान में हैं और जो आगे होंगे, उनको मैं छल-कपट छोड़कर प्रणाम करता हूँ॥3॥

होहु प्रसन्न देहु बरदानू। साधु समाज भनिति सनमानू॥
जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं। सो श्रम बादि बाल कबि करहीं॥4॥

भावार्थ: वे सब प्रसन्न होकर यह वरदान दें कि साधुजनों की सभा में मेरी कविता का आदर हो। पण्डित लोग जिनकी कविता का आदर नहीं करते, वह परिश्रम बाल कवि वृथा ही करते हैं॥4॥

कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई॥
राम सुकीरति भनिति भदेसा। असमंजस अस मोहि अँदेसा॥5॥

भावार्थ: लोक में बड़ाई, कविता और सम्पत्ति वही अच्छी होती है कि जिससे गंगाजी की समान सबका हित होता है। श्रीरामजी की सुन्दर कीर्ति तो अच्छी है, पर मेरी कविता भद्दी है, जिससे मुझे असमंजस और सन्देह है कि भाषा में मैं राम-कथा कहूँ या नहीं? ॥5॥

तुम्हरी कृपाँ सुलभ सोउ मोरे। सिअनि सुहावनि टाट पटोरे॥6॥

भावार्थ: परन्तु आप लोगों की कृपा से वह भी मुझको सुलभ हो जायेगी, जैसे टाट से रेशम की सीयनि सुहावनी लगती है। (ऐसा अपने मन में जानकर मुझ पर ऐसी कृपा करें कि जिससे मेरी वाणी श्रीरामजी का निर्मल यश वर्णन करने के योग्य हो जाय।) ॥6॥

दोहा
सरल कबित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान।
सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान॥14 क॥

भावार्थ: क्योंकि जो कविता सीधी हो और उसमें वर्णित यश निर्मल हो तो उसी का आदर सज्जन करते हैं, शत्रु भी अपना स्वाभाविक बैर भूलकर उसकी सराहना करते हैं।।14(क)।।

सो न होई बिनु बिमल मति मोहि मति बल अति थोर।
करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर॥14 ख॥

भावार्थ: मुझ परन्तु ऐसी कविता शुद्ध-बुद्धि के बिना नहीं होती और मुझको बुद्धि का बल बहुत थोड़ा है। इससे पर कृपा करो, जिससे भगवान् का यश कहूँ, इसी से बार-बार मैं सबसे विनती करता हूँ।।14(ख)।।

कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल।
बालबिनय सुनि सुरुचि लखि मो पर होहु कृपाल॥14ग॥

भावार्थ: कवि और पण्डितजन श्रीरामचरितरूपी मानसरोवर के सुन्दर हंस हैं, जो मुझ बालक की विनती सुन और अच्छी रुचि देखकर मुझ पर दयालु होंगे।।14(ग)।।

सोरठा
बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित॥14 घ॥

भावार्थ: अब मैं श्रीवाल्मीकिजी के चरणारविन्दों की वन्दना करता हूँ, जिन्होंने रामायण बनायी है, वह रामायण ‘सखर’ खर राक्षस की कथा सहित है तथा ‘सुकोमल’ कोमलता से युक्त है, ‘मंजु’ सुन्दर और ‘दूषण’ राक्षस की कथा से युक्त है और दोष से रहित है ।।14(घ)।।

बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस।
जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु॥14 ङ॥

भावार्थ: फिर मैं चारों वेदों की वन्दना करता हूँ, जो भवसागर से पार होने के लिए बड़ी नौका के समान हैं, जिनको श्रीरामचन्द्रजी का निर्मल यश वर्णन करते हुए स्वप्न में भी क्लेश नहीं है।।14(ङ)।।

बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहिं कीन्ह जहँ।
संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी॥14च॥

भावार्थ: मैं ब्रह्माजी के चरण रज की वन्दना करता हूँ कि जिन्होंने यह संसार-सागर रचा है। जिसमें संतजन अमृत, चन्द्रमा और कामधेनुरूप में प्रकट हुए और दुष्टजन विष और मदिरारूप में प्रकट हुए हैं।।14(च)।।

दोहा
बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि।
होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि॥14 छ॥

भावार्थ: फिर मैं देवता, ब्राह्मण, पंडित और ग्रह के चरणों को हाथ जोड़, प्रार्थना करके कहता हूँ, कि सब लोग प्रसन्न होकर मेरा सुन्दर मनोरथ पूर्ण करें ।।14(छ)।।

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श्रीरामचरित मानस कितने कांडों में विभक्त हैं?

  • श्रीरामचरितमानस को पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं इस प्रकार हैं।
  • बालकाण्ड: रामचरितमानस का आरंभ बालकांड से होता है। इस कांड में श्री राम के जन्म और बाल्यकाल की कथा वर्णित है। शंकर-पार्वती का विवाह भी इसकी अन्य प्रमुख घटना है। इसमें कुल 361 दोहे हैं। बालकांड रामचरितमानस का सबसे बड़ा काण्ड है।
  • अयोध्याकाण्ड: अयोध्या की कथा का वर्णन अयोध्या काण्ड के अंतर्गत हुआ है। राम का राज्याभिषेक, कैकेयी का कोपभवन जाना और वरदान के रूप में राजा दशरथ से भरत के लिए राजगद्दी और राम को वनवास माँगना और दशरथ के प्राण छूटना आदि घटनाएँ प्रमुख हैं। इस कांड में 326 दोहे हैं।
  • अरण्यकाण्ड: राम का सीता लक्ष्मण सहित वन-गमन मारीचि-वध और सीता-हरण की कथा का वर्णन अरण्यकांड में हुआ है। इसमें 46 दोहे हैं।
  • किष्किन्धाकाण्ड: राम का सीता को खोजते हुए किष्किंधा पर्वत पर आना, श्री हनुमानजी का मिलना, सुग्रीव से मित्रता और बालि का वध इत्यादि घटनाएँ किष्किंधा काण्ड में वर्णित हैं। इसमें 30 दोहे हैं। किष्किंधाकांड रामचरितमानस का सबसे छोटा काण्ड है।
  • सुन्दरकाण्ड: सुंदरकांड का रामायण में विशेष महत्व है। इस कांड में सीता की खोज में हनुमानजी का समुद्र लाँघ कर लंका को जाना, सीताजी से मिलना और लंकादहन की कथा का वर्णन है।अशोक वाटिका सुंदर पर्वत के परिक्षेत्र में थी जहाँ हनुमानजी की सीताजी से भेंट होती है। इसलिए इस काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड है। सुंदरकांड सब प्रकार से सुंदर है। इसके पाठ का विशेष पुण्य है और इससे हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसमें कुल 60 दोहे हैं।
  • लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड): सेतुबंध करते हुए राम का अपनी वानरी सेना के साथ लंका को प्रस्थान, रावण-वध और फिर सीता को लेकर लौटना यह सब कथा लंकाकाण्ड के अंतर्गत आती है। इसमें कुल 121 दोहे हैं।वाल्मीकीय रामायण में लंकाकांड का नाम युद्धकांड है।
  • उत्तरकाण्ड: जीवनोपयोगी प्रश्नों के उत्तर इस उत्तरकाण्ड में मिलते हैं। इसका काकभुशुण्डि-गरुड़ संवाद विशेष है। इस कांड में 130 दोहे हैं। इसमें श्रीराम का चौदह वर्ष के वनवास के उपरांत परिवार वालों और अवधवासियों से पुनः मिलने का प्रसंग बहुत मार्मिक है।उत्तरकांड के साथ ही रामचरितमानस का समापन हो जाता है।

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श्रीरामचरित मानस का पाठ करने से पहले रखें इस बात का ध्यान

श्री रामचरितमानस (Shri Ramcharit Manas) का पाठ करने से पहले हमें श्री तुलसीदासजी, श्री वाल्मीकिजी, श्री शिवजी तथा श्रीहनुमानजी का आह्नान करना चाहिए तथा पूजन करने के बाद तीनो भाइयों सहित श्री सीतारामजी का आह्नान, षोडशोपचार ( अर्थात सोलह वस्तुओं का अर्पण करते हुए पूजन करना चाहिए लेकिन नित्य प्रति का पूजन पंचोपचार गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से संपन्न किया जा सकता है ) पूजन और ध्यान करना चाहिये। उसके उपरांत ही पाठ का आरम्भ करना चाहिये।

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Deepak Vishwakarma

दीपक विश्वकर्मा एक अनुभवी समाचार संपादक और लेखक हैं, जिनके पास 13 वर्षों का गहरा अनुभव है। उन्होंने पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं में कार्य किया है, जिसमें समाचार लेखन, संपादन… More »

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