रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, आज तेरहवां दिन

Ramcharit Manas: गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 11 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए पिछले 12 दिनों से रोज लेकर आ रहा हैं और रोज आपको गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 11 चौपाई लेकर आता रहेगा। उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।

श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ

आज श्रीरामचरित मानस की 11 चौपाईयां | Today 11 Chaupais of Ramcharit Manas

चौपाई
पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता॥
मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका॥1॥

भावार्थ: फिर मैं सरस्वती और गंगाजी की वन्दना करता हूँ; क्योंकि दोनों मनोहर और पवित्र चरित्रवाली हैं। एक (गंगाजी) तो स्नान, पान से पापों को हर लेती हैं और दूसरी अर्थात् सरस्वतीजी कहने-सुनने से अज्ञान को हर लेती हैं॥1॥

गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी॥
सेवक स्वामि सखा सिय पी के। हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के॥2॥

भावार्थ: फिर मैं गुरु और पिता-मातारूप शिवजी और पार्वतीजी को प्रणाम करता हूँ, जो दीनबन्धु और नित्य मनोरथ के देनेवाले हैं। जो शिवजी सीतापति के सेवक, स्वामी और सखा हैं और तुलसीदास के तो बिना किसी छल के सब प्रकार के हित करनेवाले हैं॥2॥

कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा। साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा॥
अनमिल आखर अरथ न जापू। प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू॥3॥

भावार्थ: कलियुग को देख जगत् के हितार्थ जिन शिव-पार्वतीजी ने बहुत से शाबर मन्त्रों का समूह रचा। जिनमें अनमेल अक्षर हैं और अर्थ भी कुछ नहीं, न जपने की कोई विधि है, परन्तु शिवजी के प्रताप से उनका प्रभाव प्रकट होता है॥3॥

सो उमेस मोहि पर अनुकूला। करिहिं कथा मुद मंगल मूला॥
सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ। बस्नउँ रामचरित चित चाऊ॥4॥

भावार्थ: वह शिवजी मुझ पर प्रसन्न हों कि मैं आनन्द-मंगल की मूल राम-कथा की रचना करूँ। अब श्रीपार्वतीजी और श्रीशिवजी का स्मरणकर उनकी प्रसन्नता प्राप्तकर मैं प्रसन्न चित्त से रामचरित्र का वर्णन करता हूँ॥4॥

भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती। ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती॥
जे एहि कथहि सनेह समेता। कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता॥5॥
होइहहिं राम चरन अनुरागी। कलि मल रहित सुमंगल भागी॥6॥

भावार्थ: मेरी कविता शिवजी की कृपा से ऐसी सुशोभित होगी कि जैसे तारागण सहित चन्द्रमा से रात्रि सुशोभित होती है। जो इस कथा को प्रेम से कहेंगे और ध्यान देकर समझेंगे, वे श्रीरामचन्द्रजी के चरणों में प्रेम करनेवाले और कलियुग के पापों से रहित होकर सुन्दर मंगल के भागी होंगे॥5॥ ॥6॥

दोहा
सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ।
तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ॥15॥

भावार्थ: यदि स्वप्न में भी सचमुच मुझ पर श्रीमहादेवजी और पार्वतीजी की प्रसन्नता हो तो इस भाषा कविता का प्रभाव जो मैं कहता हूँ, वह सब सत्य हो।।15।।

चौपाई
बंदउँ अवध पुरी अति पावनि। सरजू सरि कलि कलुष नसावनि॥
प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी। ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी॥1॥

भावार्थ: अब मैं पवित्र अयोध्यापुरी की वन्दना करता हूँ कि जहाँ कलियुग के पापों का नाश करनेवाली सरयू नदी बहती है। फिर मैं अयोध्यापुरी के उन नर-नारियों को प्रणाम करता हूँ, जिन पर प्रभु की थोड़ी ममता नहीं है अर्थात् बड़ी अधिक प्रीति है॥1॥

सिय निंदक अघ ओघ नसाए। लोक बिसोक बनाइ बसाए॥
बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची। कीरति जासु सकल जग माची॥2॥

भावार्थ: जिन्होंने सीताजी की निन्दा करनेवाले धोबी के पाप-समूह को नाशकर उसे शोकरहित वैकुण्ठलोक में बसा दिया। अब मैं पूर्व दिशारूपी कौसल्याजी की वन्दना करता हूँ, जिनकी कीर्ति सारे संसार में फैली है॥2॥

प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू। बिस्व सुखद खल कमल तुसारू॥
दसरथ राउ सहित सब रानी। सुकृत सुमंगल मूरति मानी॥3॥

भावार्थ: जहाँ जगत् को सुख देनेवाले और कमलरूप रावण आदि खलों के लिए तुषाररूप (पाला) के समान पूर्ण चन्द्रमा श्रीरघुनाथजी प्रकट हुए। सब रानियों सहित राजा दशरथ जो पुण्य और आनन्द की मूर्ति थे, ऐसा मानकर-

करउँ प्रनाम करम मन बानी। करहु कृपा सुत सेवक जानी॥
जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता। महिमा अवधि राम पितु माता॥4॥

भावार्थ: उनको कर्म, मन और वचन से मैं प्रणाम करता हूँ जिससे वे अपने पुत्र (श्रीरामजी) का सेवक जानकर मुझ पर कृपा करें। जिनको रचकर विधाता ने भी बड़ाई पायी; क्योंकि श्रीरामचन्द्रजी के माता-पिता महिमा की अवधि अर्थात् सीमा हैं॥4॥

Deepak Vishwakarma

दीपक विश्वकर्मा एक अनुभवी समाचार संपादक और लेखक हैं, जिनके पास 13 वर्षों का गहरा अनुभव है। उन्होंने पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं में कार्य किया है, जिसमें समाचार लेखन, संपादन और कंटेंट निर्माण प्रमुख हैं। दीपक ने कई प्रमुख मीडिया संस्थानों में काम करते हुए संपादकीय टीमों का नेतृत्व किया और सटीक, निष्पक्ष, और प्रभावशाली खबरें तैयार कीं। वे अपनी लेखनी में समाजिक मुद्दों, राजनीति, और संस्कृति पर गहरी समझ और दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। दीपक का उद्देश्य हमेशा गुणवत्तापूर्ण और प्रामाणिक सामग्री का निर्माण करना रहा है, जिससे लोग सच्ची और सूचनात्मक खबरें प्राप्त कर सकें। वह हमेशा मीडिया की बदलती दुनिया में नई तकनीकों और ट्रेंड्स के साथ अपने काम को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं।

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