रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, आज सोलहवां दिन
Ramcharit Manas: उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 10 चौपाई अर्थ सहित आपके लिए लेकर आ रही हैं। हम आपके लिए रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 10 चौपाई लेकर आ रहे हैं। उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।
श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ।
आज श्रीरामचरित मानस की 10 चौपाईयां | Today 10 Chaupais of Ramcharit Manas
दोहा
बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास।
राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास॥19॥
भावार्थ: श्रीरामचन्द्रजी की भक्ति वर्षाऋतुरूप है और अच्छे दास धान के स्वरूप हैं, जो श्रीराम नामरूपी श्रावण और भादों के दो महीनों को पाकर बढ़ते अर्थात् उन्नति करते हैं।।19।।
चौपाई
आखर मधुर मनोहर दोऊ। बरन बिलोचन जन जिय जोऊ॥
ससुमिरत सुलभ सुखद सब काहू। लोक लाहु परलोक निबाहू॥1॥
भावार्थ: क्योंकि रकार और मकार ये दोनों अक्षर अत्यन्त ही मधुर और मन को हरनेवाले हैं और जो सब वर्णों (अक्षरों) के ऊपर रहने से ये मन के नेत्ररूप हैं और भक्तों के तो जीवन (प्राण) ही हैं। जो स्मरण करने से सुलभ और सबको सुख देनेवाले हैं, क्योंकि इनसे सांसारिक लाभ तो होता ही हैं; साथ ही परलोक में भी निर्वाह हो जाता है।
कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके। राम लखन सम प्रिय तुलसी के॥
बरनत बरन प्रीति बिलगाती। ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती॥2॥
भावार्थ: ये कहने-सुनने और स्मरण करने से सभी प्रकार अच्छे हैं और मुझ तुलसीदास को तो श्रीराम और लक्ष्मणजी के समान प्यारे हैं। इनको यदि मैं अलग-अलग वर्णन करूँ तो प्रीति में भेद पड़ता है; क्योंकि इनका साथ तो ब्रह्म और जीव का-सा स्वाभाविक है।
नर नारायन सरिस सुभ्राता। जग पालक बिसेषि जन त्राता॥
भगति सुतिय कल करन बिभूषन। जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन॥3॥
भावार्थ: ये दोनों अक्षर नर-नारायण के समान सुन्दर भाई हैं, जो जगत् का पालनकर अपने भक्तों की विशेष रक्षा करते हैं। ये अक्षर भक्तिरूपी सुन्दर स्त्री के कानों के आभूषण हैं, और संसार के हित का कारणरूप साक्षात् सूर्य और चन्द्रमा स्वरूप हैं।
स्वाद तोष सम सुगति सुधा के। कमठ सेष सम धर बसुधा के॥
जन मन मंजु कंज मधुकर से। जीह जसोमति हरि हलधर से॥4॥
भावार्थ: फिर ये दोनों अक्षर अमृत के स्वाद और सन्तोष के समान हैं, जो कच्छप और शेषजी के समान ही पृथ्वी के भार को धारण किये रहते हैं और भक्तजनों के मनरूपी मनोहर कमल के लिए तो भ्रमररूप ही हैं और दोनों, जीह (जिह्वा) रूपी माता यशोदा को कृष्ण और बलराम के समान प्यारे हैं।
दोहा
एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ।
तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ॥20॥
भावार्थ: श्रीरामचन्द्रजी के नाम के ये दोनों अक्षर (रकार और मकार) सब वर्णों (अक्षरों) पर छत्र और मुकुट के समान शोभा देते हैं। रकार (‘) तो छत्र है, दूसरा मकार अर्थात् अनुस्वार (*) मुकुट के रूप में है।।20।।
चौपाई
समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी॥
नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी॥1॥
भावार्थ: नाम और नामी में कोई अन्तर नहीं है, नाम (शब्द) और नामी वह शक्ति है जिसका आवाहन किया जाता है। यह दोनों ही समान हैं; क्योंकि दोनों की परस्पर प्रीति स्वामी और सेवक की-सी है। नाम और रूप दोनों ईश्वर की उपाधियाँ हैं, जिनको उच्चकोटि के पुरुषों ने साधनों के द्वारा सिद्ध करके अकथ अनादि बतलाया है।
को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू॥
देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना॥2॥
भावार्थ: इससे इन दोनों में से किसी एक को छोटा और दूसरे को बड़ा कहकर कौन अपराध करे? हाँ इनके गुण और दोष को सुनकर संत लोग ही समझ सकते हैं; क्योंकि उन्होंने उस रूप को नाम के अधीन
रूप बिसेष नाम बिनु जानें। करतल गत न परहिं पहिचानें॥
सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें। आवत हृदयँ सनेह बिसेषें॥3॥
भावार्थ: बिना नाम जाने रूप की पहचान कठिन है, जैसे कोई चीज हाथ में रखी हो और जब तक उसका नाम न ज्ञात हो तो पहचान कैसे हो सके? वैसे ही रूप का नाम विशेषण है। इसलिए हे प्यारे ! रूप के बिना देखे ही,
नाम रूप गति अकथ कहानी। समुझत सुखद न परति बखानी॥
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी। उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी॥4॥
भावार्थ: नाम का सुमिरन करो, फिर तो वह आप ही आप विशेष स्नेह के साथ हृदय में आ बसेगा। नाम रूप गति अकथ कहानी। समुझत सुखद न परति बखानी अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी । उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी नाम और रूप की गति कैसी है? इसकी कथा अकथनीय और समझने में सुखदायक हैं; किन्तु उसका वर्णन (बखान) नहीं किया जा सकता। क्योंकि निर्गुण और सगुण के बीच में नाम ही साक्षी रूप दोनों पक्ष का चतुर दुभाषिया है।
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