तेइसवां दिन: रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, पाठ करने से पहले रखें इन बातों का ध्यान
Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 9 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आज से आपके लिए लेकर आ रही हैं। आज से हम आपके लिए रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 9 चौपाई लेकर आते रहेंगे। आज से नववर्ष की शुरुआत हो रही हैं। इसलिए उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।
श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ।
आज श्रीरामचरित मानस की 9 चौपाईयां | Today 9 Chaupais of Ramcharit Manas
दोहा
मैं पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत।
समुझी नहिं तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत॥30 क॥
भावार्थ: इस प्रकार जब एक-दूसरे से लोग कहते-सुनते आपस में विचार करते चले आये, तब इधर के युग में, मैंने यह सुन्दर कथा शूकरक्षेत्र में अपने गुरु के मुख से सुनी; किन्तु उस समय मेरी बाल्यावस्था थी, जिससे जैसा समझना चाहिये था, वैसा ठीक रूप से समझ न सका, क्योंकि उस समय तक मैं बिल्कुल ही नासमझ था ।।30 (क) ।।
श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।
किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥30ख॥
भावार्थ: क्योंकि एक तो इस कथा के श्रोता-वक्ता ज्ञान के निधि, बहुत बड़े ज्ञानी और दार्शनिक थे और दूसरे श्रीरामचन्द्रजी की यह कथा बहुत गूढ़ अर्थात् कठिन है। तब भला कलियुग के पापों से ग्रस्त हुआ मैं जड़ जीव उसको समझने में कैसे समर्थ हो सकता था? ।।30 (ख) ।।
चौपाई
तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥
भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥1॥
भावार्थ: तो भी श्रीगुरुदेवजी मेरे समझने के लिए इस कथा को बारम्बार कहते ही रहे। तब जैसी कुछ मेरी बुद्धि रही, उसके अनुसार जो कुछ समझ पाया, समझा। अब उसी को मैं भाषा-बद्ध करके ऐसे लिख रहा हूँ कि जिससे मेरे मन को अच्छा बोध (ज्ञान) हो जावे।
जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें॥
निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी॥2॥
भावार्थ: जैसा कुछ मुझ में बुद्धि और ज्ञान का बल है, वैसा ही हरि (भगवान्) की प्रेरणा होने से कहूँगा। जिससे मेरे मन का मोह, भ्रम और सन्देह मिट जाय, इसलिए मैं संसाररूपी नदी को पार करने के लिए नौकारूपी श्रीरामचन्द्रजी की इस कथा की रचना करता हूँ।
बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि॥
रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी॥3॥
भावार्थ: यह श्रीराम-कथा पण्डित और बुद्धिमान् जनों को आराम देनेवाली और सर्व-साधारण लोगों को भी प्रसन्न करनेवाली तथा कलियुग के पापों का विशेष रूप से नाश करनेवाली है। यह राम-कथा (रामायण की कथा) कलियुगरूपी सर्प के नाश के लिए मोरनी है, फिर रामजी की कथा ऐसी है, मानो विवेकरूपी अग्नि को उत्पन्न करने लिए अरणी अर्थात् यज्ञ का वह काष्ठ है, जिससे अग्नि उत्पन्न की जाती है।
रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई॥
सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि॥4॥
भावार्थ: फिर रामजी की कथा कलि में कामदरूपी अर्थात् कलियुग के समस्त दुःखों को दूर करने के लिए साक्षात् कामधेनुरूपी गौ है और सुजन, अच्छे पुरुषों के लिए सुन्दर संजीवनी जड़ी है और वही श्रीरामचन्द्रजी की कथा इस पृथ्वीतल पर अमृत-नदी के समान है, जो संसार के दुःखों का नाश करनेवाली और भ्रमरूपी मेढक को निगलने के लिए सर्परूप है।
असुर सेन सम नरक निकंदिनि। साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि॥
संत समाज पयोधि रमा सी। बिस्व भार भर अचल छमा सी॥5॥
भावार्थ: यह रामकथा ‘दैत्यों की सेना के समान’ नरक का नाश करने के लिये गंगाजी के तुल्य है, साधु और देवताओं के कुल का हित करने के लिये प्रत्यक्ष रूप में गिरिनन्दिनी अर्थात् दुर्गास्वरूप और सत्पुरुषों के समाजरूप समुद्र में लक्ष्मी के समान और जगत् का भार धारण करने के लिए अचल पृथ्वी के समान है।
जम गन मुहँ मसि जग जमुना सी। जीवन मुकुति हेतु जनु कासी॥
रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी। तुलसिदास हित हियँ हुलसी सी॥6॥
भावार्थ: श्रीरामचन्द्रजी की यह कथा यमराज के गणों के मुँह में कालिख लगाने के लिए इस जगत् में यमुना (नदी) के समान है और जीवों को मोक्ष देने लिए मानो काशीपुरी है। यह कथा श्रीरामचन्द्रजी को तुलसी वृक्ष के समान प्रिय है और मुझ तुलसीदास के लिए तो माता हुलसी के समान हित करने वाली है।
सिवप्रिय मेकल सैल सुता सी। सकल सिद्धि सुख संपति रासी॥
सदगुन सुरगन अंब अदिति सी। रघुबर भगति प्रेम परमिति सी॥7॥
भावार्थ: यह कथा श्रीमहादेवजी को मेकल नामक पर्वत की कन्या नर्मदा के समान प्रिय है और समस्त सिद्धियों को प्रदान करनेवाली सम्पदा की खान है। फिर यह रामकथा सद्गुणों की माता है और श्रीरामचन्द्रजी के प्रेम-भक्ति की तो मानो सीमा ही है।
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श्रीरामचरित मानस कितने कांडों में विभक्त हैं?
- श्रीरामचरितमानस को पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं इस प्रकार हैं।
- बालकाण्ड: रामचरितमानस का आरंभ बालकांड से होता है। इस कांड में श्री राम के जन्म और बाल्यकाल की कथा वर्णित है। शंकर-पार्वती का विवाह भी इसकी अन्य प्रमुख घटना है। इसमें कुल 361 दोहे हैं। बालकांड रामचरितमानस का सबसे बड़ा काण्ड है।
- अयोध्याकाण्ड: अयोध्या की कथा का वर्णन अयोध्या काण्ड के अंतर्गत हुआ है। राम का राज्याभिषेक, कैकेयी का कोपभवन जाना और वरदान के रूप में राजा दशरथ से भरत के लिए राजगद्दी और राम को वनवास माँगना और दशरथ के प्राण छूटना आदि घटनाएँ प्रमुख हैं। इस कांड में 326 दोहे हैं।
- अरण्यकाण्ड: राम का सीता लक्ष्मण सहित वन-गमन मारीचि-वध और सीता-हरण की कथा का वर्णन अरण्यकांड में हुआ है। इसमें 46 दोहे हैं।
- किष्किन्धाकाण्ड: राम का सीता को खोजते हुए किष्किंधा पर्वत पर आना, श्री हनुमानजी का मिलना, सुग्रीव से मित्रता और बालि का वध इत्यादि घटनाएँ किष्किंधा काण्ड में वर्णित हैं। इसमें 30 दोहे हैं। किष्किंधाकांड रामचरितमानस का सबसे छोटा काण्ड है।
- सुन्दरकाण्ड: सुंदरकांड का रामायण में विशेष महत्व है। इस कांड में सीता की खोज में हनुमानजी का समुद्र लाँघ कर लंका को जाना, सीताजी से मिलना और लंकादहन की कथा का वर्णन है।अशोक वाटिका सुंदर पर्वत के परिक्षेत्र में थी जहाँ हनुमानजी की सीताजी से भेंट होती है। इसलिए इस काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड है। सुंदरकांड सब प्रकार से सुंदर है। इसके पाठ का विशेष पुण्य है और इससे हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसमें कुल 60 दोहे हैं।
- लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड): सेतुबंध करते हुए राम का अपनी वानरी सेना के साथ लंका को प्रस्थान, रावण-वध और फिर सीता को लेकर लौटना यह सब कथा लंकाकाण्ड के अंतर्गत आती है। इसमें कुल 121 दोहे हैं।वाल्मीकीय रामायण में लंकाकांड का नाम युद्धकांड है।
- उत्तरकाण्ड: जीवनोपयोगी प्रश्नों के उत्तर इस उत्तरकाण्ड में मिलते हैं। इसका काकभुशुण्डि-गरुड़ संवाद विशेष है। इस कांड में 130 दोहे हैं। इसमें श्रीराम का चौदह वर्ष के वनवास के उपरांत परिवार वालों और अवधवासियों से पुनः मिलने का प्रसंग बहुत मार्मिक है।उत्तरकांड के साथ ही रामचरितमानस का समापन हो जाता है।
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श्रीरामचरित मानस का पाठ करने से पहले रखें इस बात का ध्यान
श्री रामचरितमानस (Shri Ramcharit Manas) का पाठ करने से पहले हमें श्री तुलसीदासजी, श्री वाल्मीकिजी, श्री शिवजी तथा श्रीहनुमानजी का आह्नान करना चाहिए तथा पूजन करने के बाद तीनो भाइयों सहित श्री सीतारामजी का आह्नान, षोडशोपचार ( अर्थात सोलह वस्तुओं का अर्पण करते हुए पूजन करना चाहिए लेकिन नित्य प्रति का पूजन पंचोपचार गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से संपन्न किया जा सकता है ) पूजन और ध्यान करना चाहिये। उसके उपरांत ही पाठ का आरम्भ करना चाहिये।
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