छब्बीसवां दिन: रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, पाठ करने से पहले रखें इन बातों का ध्यान

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 14 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आज से आपके लिए लेकर आ रही हैं। आज से हम आपके लिए रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 14 चौपाई लेकर आते रहेंगे। आज से नववर्ष की शुरुआत हो रही हैं। इसलिए उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।

श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ

आज श्रीरामचरित मानस की 14 चौपाईयां | Today 14 Chaupais of Ramcharit Manas

दोहा
मज्जहिं सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर ।
जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर ॥34॥

भावार्थ: जहाँ अनेक सज्जनों का समूह पवित्र सरयू जल में स्नानकर श्रीरामचन्द्रजी के सुन्दर श्याम- शरीर को हृदय में धारणकर उनके नाम का जप करते हैं।। 34।।

चौपाई
दरस परस मज्जन अरु पाना। हरइ पाप कह बेद पुराना॥
नदी पुनीत अमित महिमा अति। कहि न सकइ सारदा बिमल मति॥1॥

भावार्थ: वेद-पुराण कहते हैं कि श्रीसरयूजी दर्शन, स्नान और जलपान आदि करने से सब प्रकार के पापों को हर लेती हैं। उस परम पुनीत सरयू की महिमा ऐसी अपार है कि जिसे निर्मल बुद्धिवाली शारदा (सरस्वतीजी) भी नहीं कह सकतीं, क्योंकि-

राम धामदा पुरी सुहावनि। लोक समस्त बिदित अति पावनि॥
चारि खानि जग जीव अपारा। अवध तजें तनु नहिं संसारा॥2॥

भावार्थ: वहाँ श्रीरामचन्द्रजी के धाम को देनेवाली अयोध्या अत्यन्त रमणीय है, इसकी पवित्रता जगत् के समस्त लोकों में विदित है। संसार में चार प्रकार के (स्वेदज, अण्डज, उद्भिज और जरायुज) जितने भी अपार जीव हैं, वे श्रीअयोध्या में शरीर त्यागने पर फिर संसार में नहीं उतरते।

सब बिधि पुरी मनोहर जानी। सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी॥
बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा। सुनत नसाहिं काम मद दंभा॥3॥

भावार्थ: अतः अयोध्यापुरी को सब प्रकार से मनोहर और समस्त सिद्धियों की प्रदाता और मंगल की खान जानकर इस विमल कथा को यहाँ आरम्भ कर दिया है, जिसके श्रवण करने से काम, मद और दम्भ का नाश हो जाता है।

रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥
मन करि बिषय अनल बन जरई। होई सुखी जौं एहिं सर परई॥4॥

भावार्थ: इसका नाम ‘राम-चरित मानस’ है, इसको श्रवण करने से विशेष आराम मिलता है। विषयरूपी दावाग्नि में जलता हुआ मनरूपी हाथी जब इसमें आकर पड़ जाता है, तब वह सुखे हो जाता है। क्योंकि-

रामचरितमानस मुनि भावन। बिरचेउ संभु सुहावन पावन॥
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन। कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन॥5॥

भावार्थ: इस परम पवित्र और सुहावने राम-चरित मानस की रचना श्रीशंकरजी ने की है, जो पहले मुनियों को बहुत अच्छा लग चुका है। यह दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों प्रकार के दोष, दुःख और दरिद्रता को भस्म करनेवाला और कलि की कुचालों सहित समस्त कलि के पापों का नाश करने वाला है।

रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥
तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥6॥

भावार्थ: इसे पहले शिवजी ने रचकर अपने मन में रखा और अच्छा समय पाकर श्रीपार्वतीजी से कहा था। इस कारण अपने मन में प्रसन्न होकर शिवजी ने इसका वही श्रेष्ठ नाम रामचरित मानस ही रखा।

कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई। सादर सुनहु सुजन मन लाई॥7॥

भावार्थ: मैं वही सुख देनेवाली सुहावनी कथा कहता हूँ, हे सज्जनो! मन लगाकर सुनो।

दोहा
जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु।
अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु॥35॥

भावार्थ: जिस प्रकार इस ‘रामचरित मानस’ की उत्पत्ति हुई है और जिस कारण इसका संसार में इतना प्रचार हुआ है, अब मैं उन सब प्रसंगों को श्रीशिवजी और श्रीपार्वतीजी का स्मरण करके कहता हूँ ।। 35।।

चौपाई
संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी। रामचरितमानस कबि तुलसी॥
करइ मनोहर मति अनुहारी। सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी॥1॥

भावार्थ: श्रीशिवजी की कृपा से अब मेरी बुद्धि में सुन्दर उमंग (उत्साह) आ रहा है कि मैं तुलसीदास इस राम-चरित मानस का कवि हो रहा हूँ। मुझसे जहाँ तक हो सकेगा अपनी कल्पना से इसे अत्यन्त सुन्दर ही बनाऊँगा। तो भी, यदि इसमें कोई त्रुटि रह जाय तो आप सज्जन पुरुष स्थिर बुद्धि से इसे सुधार लीजियेगा। क्योंकि-

सुमति भूमि थल हृदय अगाधू। बेद पुरान उदधि घन साधू॥
बरषहिं राम सुजस बर बारी। मधुर मनोहर मंगलकारी॥2॥

भावार्थ: इस ‘राम-चरित-मानस’ का प्रबन्ध मानसरोवर के समान है, इसमें जो गम्भीर हृदय के भीतर सुन्दर बुद्धि है वही भूमितल (पृथ्वी) है, वेद और पुराण समुद्र हैं और सन्त लोग बादल के समान हैं। वे श्रीरामचन्द्रजी के सुयशरूपी श्रेष्ठ जल की वर्षा करते हैं, जो अत्यन्त ही मधुर और मन को हरने वाला तथा मङ्गलों का मूल कारण है। और-

लीला सगुन जो कहहिं बखानी। सोइ स्वच्छता करइ मल हानी॥
प्रेम भगति जो बरनि न जाई। सोइ मधुरता सुसीतलताई॥3॥

भावार्थ: इसमें जो भगवान् की सगुण-लीलाओं का वर्णन आयेगा, वही उस जल की स्वच्छता है, जो मल (पाप) का नाश करनेवाली है और इसमें जो भगवान् के प्रेम और भक्ति का वर्णन आयेगा वही उस जल की मधुरता और शीतलता है।

सो जल सुकृत सालि हित होई। राम भगत जन जीवन सोई॥
मेधा महि गत सो जल पावन। सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन॥4॥

भावार्थ: है और वही श्रीरामचन्द्रजी के भक्तजनों का वह जल पुण्यरूपी धान का हित करनेवाला जीवन है और वही पवित्र जल बुद्धिरूपी पृथ्वी पर फैलकर कर्णरूपी मार्ग से शोभायमान होता हुआ प्रवाहित होता है।

भरेउ सुमानस सुथल थिराना। सुखद सीत रुचि चारु चिराना॥5॥

भावार्थ: जिससे वह मानस भरकर सुन्दर हृदयरूपी स्थल में स्थिर होकर जैसे शरऋतु आ जाने से सरोवर का जल स्वच्छ हो जाता है, वैसे ही सत्संग आदि को पाकर वही निर्मल और शीतल हो जायगा।

Also Read: Hanuman Ji Mangal Vrat: मंगलवार के व्रत वालों को जान लेनी चाहिए ये जरूरी बातें

श्रीरामचरित मानस कितने कांडों में विभक्त हैं?

  • श्रीरामचरितमानस को पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं इस प्रकार हैं।
  • बालकाण्ड: रामचरितमानस का आरंभ बालकांड से होता है। इस कांड में श्री राम के जन्म और बाल्यकाल की कथा वर्णित है। शंकर-पार्वती का विवाह भी इसकी अन्य प्रमुख घटना है। इसमें कुल 361 दोहे हैं। बालकांड रामचरितमानस का सबसे बड़ा काण्ड है।
  • अयोध्याकाण्ड: अयोध्या की कथा का वर्णन अयोध्या काण्ड के अंतर्गत हुआ है। राम का राज्याभिषेक, कैकेयी का कोपभवन जाना और वरदान के रूप में राजा दशरथ से भरत के लिए राजगद्दी और राम को वनवास माँगना और दशरथ के प्राण छूटना आदि घटनाएँ प्रमुख हैं। इस कांड में 326 दोहे हैं।
  • अरण्यकाण्ड: राम का सीता लक्ष्मण सहित वन-गमन मारीचि-वध और सीता-हरण की कथा का वर्णन अरण्यकांड में हुआ है। इसमें 46 दोहे हैं।
  • किष्किन्धाकाण्ड: राम का सीता को खोजते हुए किष्किंधा पर्वत पर आना, श्री हनुमानजी का मिलना, सुग्रीव से मित्रता और बालि का वध इत्यादि घटनाएँ किष्किंधा काण्ड में वर्णित हैं। इसमें 30 दोहे हैं। किष्किंधाकांड रामचरितमानस का सबसे छोटा काण्ड है।
  • सुन्दरकाण्ड: सुंदरकांड का रामायण में विशेष महत्व है। इस कांड में सीता की खोज में हनुमानजी का समुद्र लाँघ कर लंका को जाना, सीताजी से मिलना और लंकादहन की कथा का वर्णन है।अशोक वाटिका सुंदर पर्वत के परिक्षेत्र में थी जहाँ हनुमानजी की सीताजी से भेंट होती है। इसलिए इस काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड है। सुंदरकांड सब प्रकार से सुंदर है। इसके पाठ का विशेष पुण्य है और इससे हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसमें कुल 60 दोहे हैं।
  • लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड): सेतुबंध करते हुए राम का अपनी वानरी सेना के साथ लंका को प्रस्थान, रावण-वध और फिर सीता को लेकर लौटना यह सब कथा लंकाकाण्ड के अंतर्गत आती है। इसमें कुल 121 दोहे हैं।वाल्मीकीय रामायण में लंकाकांड का नाम युद्धकांड है।
  • उत्तरकाण्ड: जीवनोपयोगी प्रश्नों के उत्तर इस उत्तरकाण्ड में मिलते हैं। इसका काकभुशुण्डि-गरुड़ संवाद विशेष है। इस कांड में 130 दोहे हैं। इसमें श्रीराम का चौदह वर्ष के वनवास के उपरांत परिवार वालों और अवधवासियों से पुनः मिलने का प्रसंग बहुत मार्मिक है।उत्तरकांड के साथ ही रामचरितमानस का समापन हो जाता है।

Also Read: साल 2025 के लिए Dhirendra Krishna Shastri की चौकाने वाली भविष्यवाणी, वीडियो वायरल

श्रीरामचरित मानस का पाठ करने से पहले रखें इस बात का ध्यान

श्री रामचरितमानस (Shri Ramcharit Manas) का पाठ करने से पहले हमें श्री तुलसीदासजी, श्री वाल्मीकिजी, श्री शिवजी तथा श्रीहनुमानजी का आह्नान करना चाहिए तथा पूजन करने के बाद तीनो भाइयों सहित श्री सीतारामजी का आह्नान, षोडशोपचार ( अर्थात सोलह वस्तुओं का अर्पण करते हुए पूजन करना चाहिए लेकिन नित्य प्रति का पूजन पंचोपचार गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से संपन्न किया जा सकता है ) पूजन और ध्यान करना चाहिये। उसके उपरांत ही पाठ का आरम्भ करना चाहिये।

Grahan 2025: इस साल 4 ग्रहण, कब लगेगा पहला सूर्य और चंद्र ग्रहण? जानें सूतक काल…

Deepak Vishwakarma

दीपक विश्वकर्मा एक अनुभवी समाचार संपादक और लेखक हैं, जिनके पास 13 वर्षों का गहरा अनुभव है। उन्होंने पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं में कार्य किया है, जिसमें समाचार लेखन, संपादन और कंटेंट निर्माण प्रमुख हैं। दीपक ने कई प्रमुख मीडिया संस्थानों में काम करते हुए संपादकीय टीमों का नेतृत्व किया और सटीक, निष्पक्ष, और प्रभावशाली खबरें तैयार कीं। वे अपनी लेखनी में समाजिक मुद्दों, राजनीति, और संस्कृति पर गहरी समझ और दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। दीपक का उद्देश्य हमेशा गुणवत्तापूर्ण और प्रामाणिक सामग्री का निर्माण करना रहा है, जिससे लोग सच्ची और सूचनात्मक खबरें प्राप्त कर सकें। वह हमेशा मीडिया की बदलती दुनिया में नई तकनीकों और ट्रेंड्स के साथ अपने काम को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं।

Related Articles

Back to top button