रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, आज बत्तीसवां दिन
Ramcharit Manas: पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 10 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रहा हैं। हम रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 10 चौपाई आपके लिए लेकर आ रहे हैं ।वही उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।
श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ।
आज श्रीरामचरित मानस की 10 चौपाईयां | Today 10 Chaupais of Ramcharit Manas
दोहा
संत कहहिं असि नीति प्रभु श्रुति पुरान मुनि गाव।
होइ न बिमल बिबेक उर गुर सन किएँ दुराव॥45॥
भावार्थ: हे प्रभो ! सन्त-महात्मा ऐसी नीति कहते हैं और वेद-शास्त्रों ने भी ऐसा ही कहा है कि गुरु से दुराव और कपट करने से हृदय में विमल ज्ञान उत्पन्न नहीं होता ।।45।।
चौपाई
अस बिचारि प्रगटउँ निज मोहू। हरहु नाथ करि जन पर छोहू॥
राम नाम कर अमित प्रभावा। संत पुरान उपनिषद गावा॥1॥
भावार्थ: ऐसा विचारकर अपने अज्ञान एवं मोह को प्रकट करता हूँ, सो हे नाथ! मुझ अपने दास पर कृपा करके उसे दूर कीजिये। श्रीरामजी के नाम का प्रभाव अमित है अर्थात् उसका अन्त नहीं है, असीमित है-इस बात को सन्त, पुराण और उपनिषदों ने भी गाया है।
संतत जपत संभु अबिनासी। सिव भगवान ग्यान गुन रासी॥
आकर चारि जीव जग अहहीं। कासीं मरत परम पद लहहीं॥2॥
भावार्थ: जिस राम नाम को केवल सन्तजन ही नहीं जपते, वरन् ज्ञान और गुण के भण्डार अविनाशी शिवजी भी जपा करते हैं। संसार में चार प्रकार के जितने जीव हैं, सबको काशी में मरने पर परमपद प्राप्त होता है।
सोपि राम महिमा मुनिराया। सिव उपदेसु करत करि दाया॥
रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही। कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही॥3॥
भावार्थ: सो हे मुनीश्वर ! यह श्रीरामचन्द्रजी के नाम का प्रभाव है या शिवजी की कृपा है, जो वे राम-नाम का उपदेश देकर उनको अच्छी गति देते हैं। हे प्रभो! मैं आप से पूछता हूँ कि वे राम कौन हैं? कृपा करके मुझे समझाकर कहिये।
एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा॥
नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयउ रोषु रन रावनु मारा॥4॥
भावार्थ: एक राम तो अवधेश (श्रीदशरथ महाराज) के कुमार (पुत्र) हुए हैं, जिनके चरित्र को संसार जानता है कि वे स्त्री के विरह से अपार दुःख को प्राप्त हुए थे और फिर क्रोध के वश होकर उन्होंने युद्ध में रावण को मारा था।
दोहा
प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि।
सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह कहहु बिबेकु बिचारि॥46॥
भावार्थ: सो हे प्रभो! वह राम वही हैं या और कोई जिन्हें त्रिपुरारि (शिवजी) जपते रहते हैं। आप सत्य के धाम और समस्त बातों को जाननेवाले हैं, अतः ज्ञानपूर्वक विचारकर कहिये कि वे राम कौन हैं? ।।46।।
चौपाई
जैसें मिटै मोर भ्रम भारी। कहहु सो कथा नाथ बिस्तारी॥
जागबलिक बोले मुसुकाई। तुम्हहि बिदित रघुपति प्रभुताई॥1॥
भावार्थ: सो हे नाथ! जैसे यह मेरा बड़ा मोह और भ्रम मिट जाय, वही कथा विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये। तब याज्ञवल्क्य मुनि ने मुसकराकर कहा-तुम्हें श्रीरामचन्द्रजी की तो सारी प्रभुता ज्ञात है अर्थात् तुम सब कुछ जानते हो। क्योंकि-
रामभगत तुम्ह मन क्रम बानी। चतुराई तुम्हारि मैं जानी॥
चाहहु सुनै राम गुन गूढ़ा कीन्हिहु प्रस्न मनहुँ अति मूढ़ा॥2॥
भावार्थ: तुम मन-कर्म और वचन से रामजी के भक्त हो, तुम्हारी इस चतुरता को मैं जान गया। श्रीरामचन्द्र जी के गुप्त गुणों को सुनना चाहते हो, जिससे ऐसा प्रश्न कर रहे हो मानो अत्यन्त मूढ़ हो।
तात सुनहु सादर मनु लाई। कहउँ राम कै कथा सुहाई॥
महामोहु महिषेसु बिसाला। रामकथा कालिका कराला॥3॥
भावार्थ: (अच्छा) हे तात ! मन लगाकर सुनो, अब मैं श्रीरामचन्द्रजी की सुहावनी कथा कहता हूँ। श्रीरामचन्द्रजी की यह कथा महामोहरूपी विशाल महिषासुर के लिए कराल कालिका देवी हैं।
रामकथा ससि किरन समाना। संत चकोर करहिं जेहि पाना॥
ऐसेइ संसय कीन्ह भवानी। महादेव तब कहा बखानी॥4॥
भावार्थ: श्रीरामचन्द्रजी की कथा चन्द्रमा की किरणों के समान है, जिसको सन्तरूपी चकोर सर्वदा पान करते हैं। (हे भरद्वाज ! श्रीरामचन्द्रजी की कथा के सम्बन्ध में आज तुम जैसे पूछ रहे हो) इसी प्रकार पार्वतीजी ने भी शंका की थी, तब श्रीमहादेवजी ने जो कहा था-